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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: इनकम टैक्स की दरों में कटौती का औचित्य

By भरत झुनझुनवाला | Updated: January 29, 2020 17:31 IST

वास्तव में टैक्स में कटौती से निवेश में वृद्धि होना जरूरी नहीं है. निवेश करने का निर्णय मूल रूप से बाजार में मांग पर निर्भर रहता है.

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ठळक मुद्देकॉर्पोरेट टैक्स में कटौती का अंतिम प्रमाण यह है कि बड़ी कंपनियों के हाथ में रकम अधिक है और आम आदमी के हाथ में रकम कम हैवित्त मंत्नी ने जो कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की है, उसके कारण सरकार के बजट में 1 लाख 45 हजार करोड़ रुपए की आय कम होगी.

बड़ी कंपनियों द्वारा अदा किए गए इनकम टैक्स को कॉर्पोरेट टैक्स कहा जाता है. बीते समय में वित्त मंत्नी ने कॉर्पोरेट टैक्स की दरों को 29-30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया. अब बड़ी कंपनियों द्वारा देश में अर्जित किए गए मुनाफे में से टैक्स कम देना होगा.

तद्नुसार उनके हाथ में अर्जित आय का अब 75 प्रतिशत हिस्सा बचा रहेगा जो कि पूर्व में बच रहे 70 प्रतिशत से अधिक होगा. सोच थी कि कॉर्पोरेट टैक्स घटने से कंपनियों के हाथ में आय अधिक रहेगी और वे निवेश ज्यादा करेंगे. लेकिन ऐसा नहीं होता दिख रहा है. देश में निवेश शिथिल ही पड़ा हुआ है.

वास्तव में टैक्स में कटौती से निवेश में वृद्धि होना जरूरी नहीं है. निवेश करने का निर्णय मूल रूप से बाजार में मांग पर निर्भर रहता है. उनके हाथ में रकम है या नहीं, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है. जैसे यदि बाजार में मांग है और आप के द्वारा बनाए गए स्टील के बर्तन आसानी से बिक रहे हैं और आप सप्लाई कम कर पा रहे हैं लेकिन आपके पास निवेश करने के लिए रकम नहीं है तो आप ऋण लेकर भी फैक्ट्री लगाते हैं. बढ़ी हुई मांग की पूर्ति करने के लिए आप अधिक मात्ना में उत्पादन करते हैं और उस उत्पादन को आसानी से बाजार में बेच लेते हैं और अर्जित लाभ से ऋण को अदा कर देते हैं. इसके विपरीत यदि बाजार में मांग ना हो और आपके गोदाम में स्टील के बने बर्तन भरे पड़े हों क्योंकि वे बिक नहीं रहे हों तब यदि आपके हाथ में रकम भी हो तो भी आप निवेश नहीं करते हैं चूंकि मांग के अभाव में लगाई गई बर्तन की फैक्ट्री घटा देती है. वित्त मंत्नी ने जो कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की है, उसके कारण सरकार के बजट में 1 लाख 45 हजार करोड़ रुपए की आय कम होगी. प्रश्न है कि इस रकम की भरपाई सरकार कहां से करेगी? इस रकम का भार अंतत: आम आदमी पर पड़ेगा.

मान लीजिए कि सरकार जीएसटी में वृद्धि नहीं करती है और ऋण लेकर इस रकम की भरपाई कर लेती है, ऐसी स्थिति में ऋण पर जो ब्याज दिया जाएगा उसकी अदायगी भी सरकार को करनी होगी. उस समय यह रकम आम आदमी पर येन-केन- प्रकारेण टैक्स लगाकर ही अर्जित की जाएगी. दूसरा उपाय है कि सार्वजनिक इकाइयों की बिक्री करके सरकार इस रकम को अर्जित कर सकती है. यह भी जनता पर ही बोझ होगा.  

मूल बात यह है कि यदि सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की है तो तद्नुसार आम आदमी से वसूले गए टैक्स में उतनी ही वृद्धि करनी पड़ेगी अथवा आम आदमी के लिए किए जाने वाले सरकारी खर्च जैसे मनरेगा, इंदिरा आवास में कटौती करनी पड़ेगी. कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती का अंतिम प्रमाण यह है कि बड़ी कंपनियों के हाथ में रकम अधिक है और आम आदमी के हाथ में रकम कम है

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