ब्लॉग: काश! हमारा खेल मंत्रालय पहले जागता

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 29, 2023 10:27 AM2023-12-29T10:27:39+5:302023-12-29T10:27:46+5:30

ब्रिटिश और स्पेनिश मीडिया की तरह ही भारतीय मीडिया ने भी बृजभूषण के गंदे कृत्यों को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन हैरानी की बात है कि केंद्रीय खेल मंत्रालय को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

Our Sports Ministry was the first to wake up to the allegations and protest of women wrestlers against the Indian Wrestling Fed | ब्लॉग: काश! हमारा खेल मंत्रालय पहले जागता

ब्लॉग: काश! हमारा खेल मंत्रालय पहले जागता

पिछले अगस्त में, जैसे ही स्पेन की लड़कियों ने विश्व कप फुटबॉल का खिताब जीता, एक अनुचित विवाद छिड़ गया था। रॉयल स्पैनिश फुटबॉल फेडरेशन (आरएफईएफ) के 46 वर्षीय प्रमुख लुइस रुबियल्स ने सिडनी में सबके सामने अपने देश की स्टार फुटबॉलर जेनी हर्मोसो के होंठों पर चुंबन जड़ दिया। विश्व कप में स्पेन ने इंग्लैंड को हरा दिया लेकिन चुंबन विवाद ने स्पेनिश महिलाओं के जश्न को एक बड़े और अप्रिय विवाद में बदल दिया।

कहा जाता है कि वे अपने देश की जीत पर इतने ‘खुश’ थे कि उन्होंने दुनिया भर में सीधे प्रसारित होने वाले पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान जेनी को बेशर्मी से चूम लिया। उनके इस आकस्मिक चुबंन कांड से खेल जगत में भारी आक्रोश फैल गया।

लंबी कहानी को संक्षेप में कहें तो, रुबियल्स को एक सप्ताह के भीतर पद छोड़ना पड़ा क्योंकि स्पेन सरकार ने उस बेशर्म खेल प्रशासक के अपमानजनक कृत्य, जिसने महिला फुटबॉलर और राष्ट्र को अपमानित किया, को खुले तौर पर अस्वीकार करते हुए तुरंत कदम उठाया और फिर फुटबॉल की विश्व नियामक संस्था फीफा ने उन्हें फुटबॉल संबंधी सभी गतिविधियों से तीन साल के लिए निलंबित कर दिया।

जब यह सब हुआ, मैं लंदन में ब्रिटिश मीडिया की प्रतिक्रियाओं और रुबियल्स की ‘मी टू’ अधिनियम की आलोचना को पढ़ और देख रहा था। याद रखें, स्पेन या इंग्लैंड अधिक खुले और उदार समाज हैं जहां चुंबन को वास्तव में अपराध के रूप में नहीं लिया जाता, जैसा कि हम इसे भारत में देखते हैं फिर भी रुबियल्स के उस कृत्य की पूरे यूरोप में सभी स्तरों पर निंदा की गई और उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

अब आइए नई दिल्ली की ओर नजर दौड़ाएं।

पिछले एक साल से शीर्ष भारतीय महिला पहलवान अपने महासंघ के एक असाधारण शक्तिशाली प्रमुख के खिलाफ उनकी गरिमा के साथ बार-बार खिलवाड़ करने के कारण आवाज उठा रही हैं। वे धरने पर बैठीं, सरकार से हस्तक्षेप की मांग की, अपने ओलंपिक पदक गंगा नदी में फेंकने की धमकी दी, कुश्ती से संन्यास लिया, किसी ने पद्मश्री लौटा दी लेकिन न्याय के पहिये ने घूमने से इनकार कर दिया।

भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर शायद स्पेनिश चुंबन से भी कहीं अधिक गंभीर और जघन्य अपराध का आरोप लगाया गया था। उन पर कईं बार महिला एथलीटों द्वारा यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए लेकिन सरकार ने उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद पर लगाम लगाने के लिए कुछ नहीं किया. कुछ भी नहीं जबकि अपेक्षा यह थी कि आरोपों की तत्काल जांच की जाएगी और सरकार अगर उन्हें सांसद के रूप में नहीं तो कम से कम कुश्ती महासंघ के शीर्ष पद से हटने के लिए तो कहेगी। याद कीजिये एम. जे. अकबर को मंत्री पद से कैसे हटाया था। स्पष्टतः सरकार अपने आदमी बाहुबली की रक्षा करना चाहती थी।

ब्रिटिश और स्पेनिश मीडिया की तरह ही भारतीय मीडिया ने भी बृजभूषण के गंदे कृत्यों को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन हैरानी की बात है कि केंद्रीय खेल मंत्रालय को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ा। जरा सोचिए अगर वह कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के सांसद होते तो क्या सरकार ने बिजली की गति से कार्रवाई नहीं की होती?

इस आलोक में, हम ‘बाहुबली’ और उसकी कठपुतली के खिलाफ देर से की गई कार्रवाई के लिए केंद्रीय खेल मंत्रालय की सराहना नहीं करते।

डब्ल्यूएफआई की नवनिर्वाचित टीम को निलंबित करते समय खेल मंत्रालय ने पीड़ित महिलाओं के गंभीर आरोपों की तुलना में कमजोर बहाने दिए हैं।

साफ है कि भाजपा सरकार बृजभूषण से डरती थी और उस समय कड़ी कार्रवाई करने से कतराती थी जब वह ‘वन-मैन फेडरेशन’ के रूप में जानी जाने वाली खेल संस्था का नेतृत्व कर रहे थे। वास्तव में, अगर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया होता और गोंडा सीट से इस्तीफा देने के लिए कहा गया होता तो भाजपा को हर जगह से वाहवाही मिलती।

आखिरकार ‘कार्रवाई’ तब हुई जब वह प्रमुख नहीं थे और उनके सहायक संजय सिंह ने फेडरेशन की बागडोर संभाली थी लेकिन सिंह एक ‘प्रॉक्सी’ थे और यह बृजभूषण ही थे जो अभी भी ‘दबदबा’ दिखा रहे थे, जिसने अब खेल मंत्रालय का ध्यान आकर्षित किया।
रोहतक की साक्षी मलिक (2016 की ओलंपिक कांस्य विजेता), संगीता और विनेश फोगाट सहित कई अन्य महिलाओं ने शक्तिशाली राजनेता के खिलाफ लगातार जोरदार प्रदर्शन किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दर्ज की गई दिल्ली पुलिस की एफआईआर को छोड़कर, भाजपा के इस दबंग के खिलाफ कुछ नहीं हुआ।

यदि ऐसे दागी खेल अधिकारी शासन करते रहेंगे और सरकार से संरक्षण पाते रहेंगे तो माता-पिता अपनी बेटियों को खेल के मैदान में कैसे भेजेंगे? अनुराग ठाकुर, जो स्वयं एक पूर्व खेल प्रशासक हैं, के नेतृत्व वाले मंत्रालय द्वारा बृजभूषण शरण सिंह को उनके अपराध के लिए सबक सिखाने और पहलवानों को न्याय दिलाने के लिए बहुत पहले ही कार्रवाई की जाना थी।

अब बहुत हल्की कार्रवाई हुई है और बहुत देर से हुई है; मुख्य अपराधी को खुला छोड़ दिया गया है। क्या उन्हें अब भी भाजपा से टिकट मिलेगा? मैं इसे आपके अनुमान पर छोड़ता हूं।

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