एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: टोक्यो ओलंपिक...एक स्वर्णिम युग की ओर कदम

By एम वेंकैया नायडू | Published: August 10, 2021 09:58 AM2021-08-10T09:58:47+5:302021-08-10T10:13:03+5:30

रियो ओलंपिक में 118 सदस्यों वाले भारतीय दल में से केवल 20 ही क्वार्टर फाइनल और उससे ऊपर तक पहुंच सके. टोक्यो में 120 एथलीटों में से 55 ने क्वार्टर फाइनल और उससे ऊपर के मुकाबलों तक जगह बनाई.

M Venkaiah Naidu blog: Tokyo Olympics 2020 step towards India's golden era | एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: टोक्यो ओलंपिक...एक स्वर्णिम युग की ओर कदम

टोक्यो ओलंपिक में भारत का शानदार सफर (फाइल फोटो)

टोक्यो ओलंपिक में भारत ने क्या शानदार समापन किया! तिरंगा, हर भारतीय का गौरव 13 साल के लंबे अंतराल के बाद ओलंपिक क्षेत्र में फहराया गया. भाला फेंक में बहुप्रतीक्षित स्वर्ण पदक के लिए युवा नीरज चोपड़ा को हार्दिक बधाई. उन्होंने स्वतंत्र भारत के लिए एथलेटिक्स में पहला ओलंपिक पदक जीता और वह भी स्वर्णिम अंदाज में. 2008 में अभिनव बिंद्रा की जीत के बाद यह अब तक का दूसरा व्यक्तिगत स्वर्ण पदक है. 

भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक के महत्व को समुचित परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है. पिछले 24 ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में, जिसमें हमारे देश ने भाग लिया था और निराशाजनक दिख रहे भविष्य के बीच, भारत ने टोक्यो में एक जोरदार संदेश दिया कि ‘हम भी यह कर सकते हैं’. 

आकांक्षाओं से भरा भारत हर चार साल में कुछ अधिक पदकों की उम्मीद करता है, लेकिन हर बार केवल निराशा हाथ लगती है. टोक्यो ने इस तरह के एक भूलने योग्य अतीत का पटाक्षेप किया, न केवल पदकों की संख्या के संदर्भ में, बल्कि पदक के लिए प्रतिस्पर्धा के उच्च स्तर पर दिखाई गई दृढ़ता और अभूतपूर्व गहरी पैठ के जरिये भी.

निराशाजनक रिकॉर्ड

एक उपनिवेश के रूप में, भारत ने पहली बार 1900 में पेरिस ओलंपिक में भाग लिया और दो पदक जीते. इसे 3 पदक तक पहुंचने में 108 साल और 2012 में लंदन ओलंपिक में छह पदक तक पहुंचने में 4 साल और लग गए. फिर 2016 के रियो ओलंपिक में दो पदक ही मिले. कोई आश्चर्य नहीं कि भारत हर चार साल में मिलने वाली असफलता के साथ अपना आत्मविश्वास खोता गया.  

टोक्यो-सबसे अच्छा पल

2016 में, पिछले रियो ओलंपिक में 118 सदस्यों वाले मजबूत भारतीय दल में से केवल 20 ही क्वार्टर फाइनल और उससे ऊपर तक पहुंच सके. इसके विपरीत, टोक्यो में 120 एथलीटों में से 55 ने क्वार्टर फाइनल और उससे ऊपर के मुकाबलों तक पहुंच कर पदकों के लिए प्रतिस्पर्धा की. 

भारत ने जिन 18 खेलों में भाग लिया, उनमें से करीब दस खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने क्वार्टर फाइनल और उससे आगे तक अपनी जगह बनाई. इनमें गोल्ड की स्पर्धा में पांच, हॉकी समेत चार स्पर्धाओं के सेमीफाइनल में 43 और तीन स्पर्धाओं के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाले सात खिलाड़ी शामिल हैं.

बहुप्रतीक्षित स्वर्ण सहित टोक्यो में जीते गए 7 पदकों के जरिये, 2012 के लंदन के प्रदर्शन को पार करते हुए हमारे एथलीटों ने जो दृढ़ता दिखाई, उसने पदक के लिए तरसते भारतीयों को खुश कर दिया. भारत के लिए एक दुर्लभ उपलब्धि के रूप में, नीरज चोपड़ा ने तीन थ्रो में से पहले थ्रो के साथ जैवलिन क्वालिफायर में शीर्ष स्थान हासिल किया. 

कमलप्रीत कौर डिस्कस थ्रो में ऑटोमैटिक क्वालिफायर के रूप में दूसरे स्थान पर रहीं. अनुभवी 39 वर्षीय अचंता शरत कमल टेबल टेनिस क्वार्टर फाइनल में स्वर्ण पदक विजेता मा लॉन्ग से भले ही हार गए लेकिन उन्हें कड़ी चुनौती दी. 

मनिका बत्रा ने प्री-क्वार्टर में शानदार वापसी की. पहलवान बजरंग पुनिया और दीपक दहिया ने शानदार वापसी करते हुए अगले दौर में प्रवेश किया. भवानी देवी ने तलवारबाजी में पहले दौर में जीत हासिल करने के साथ ही इतिहास रच दिया. गोल्फर अदिति अशोक ने बहुत ही कम अंतर से कांस्य पदक गंवाया. 

पुरुषों की 800 मीटर दौड़ और लंबी कूद में राष्ट्रीय रिकॉर्ड को बेहतर बनाने के अलावा पुरुषों की 4 गुणा 400 मीटर रिले में नया एशियाई रिकॉर्ड बना. पदक के भूखे भारतीयों के चेहरों पर इस तरह की कड़ी लड़ाई ने मुस्कान ला दी. अगर हमारे खिलाड़ी तीरंदाजी और निशानेबाजी में उम्मीदों पर खरे उतरे होते तो पदकों की संख्या और बेहतर हो सकती थी. ओलंपिक में भारी दबाव होता है. यदि वहां पदक जीतने की संभावनाओं वाले खिलाड़ियों को बड़ी स्पर्धाओं के समय खुद पर नियंत्रण रखने के लिए मार्गदर्शन दिया जा सके तो हम अपनी पदक तालिका को समृद्ध कर सकते हैं.

‘चक दे’ का क्षण

यह टोक्यो में हॉकी में शानदार ‘चक दे’ क्षण था जिसने भारतीयों के गिरते मनोबल को थामा. 8 ओलंपिक स्वर्ण पदकों के साथ हमारे राष्ट्रीय गौरव का हिस्सा बन चुके खेल में पिछले 41 वर्षो में पदक जीतने में विफलता ने हमारे राष्ट्र के आत्मविश्वास और स्वाभिमान को गहरा आघात पहुंचाया था. 

आत्मसम्मान की कमी वाले किसी भी देश से किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती है. ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर वापसी करते हुए पुरुष और महिला-दोनों हॉकी टीमों ने शानदार प्रदर्शन किया, जो भारतीय खेल और राष्ट्रीय गौरव के पुनरुत्थान की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा. क्रिकेट हमारे देशवासियों के दिमाग में है जबकि हॉकी उनके दिलों में रहती है. यह ‘चक दे’ भावना टोक्यो खेलों के हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ समय होने का एक और कारण है.

आगे का मिशन

टोक्यो गेम्स ने हमारे भविष्य के मिशन को परिभाषित किया है. 4 स्वर्ण पदक भारत को पदक तालिका में शीर्ष 20 में और अन्य चार शीर्ष दस में रख सकते हैं. जैसा कि ऊपर बताया गया है, टोक्यो में हमारे प्रदर्शन को देखते हुए यह जल्द ही संभव है. भारत सरकार द्वारा 2015 से खेल उत्कृष्टता को पहचानने और बढ़ावा देने पर दिया गया जोर टोक्यो में दिखाई दिया. 

इस मिशन को देश भर में खेल की संस्कृति को पोषित करके और हमारे भविष्य के सितारों को आवश्यक पेशेवर और वैज्ञानिक सहायता देने के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. इस दिशा में केंद्र सरकार पहले ही सही कदम उठा चुकी है. टोक्यो खेलों में 121 वर्षो के हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ने दिखाया है कि भारत यह कर सकता है.

थोड़ा और ‘फास्टर, हायर, स्ट्रांगर’ होना खेल में अग्रणी राष्ट्रों की लीग में प्रवेश पाने की कुंजी है. यह समय 2024 के ओलंपिक का लक्ष्य तय करने का है. तभी 140 करोड़ भारतीयों की प्रार्थना और इच्छाएं पूरी हो सकती हैं.

Web Title: M Venkaiah Naidu blog: Tokyo Olympics 2020 step towards India's golden era

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