डॉ. आस्था कांत का ब्लॉग: महाराष्ट्र में बाल कुपोषण की चिंताजनक स्थिति पर दें ध्यान
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 29, 2020 12:56 IST2020-12-29T12:56:14+5:302020-12-29T12:56:38+5:30
बाल पोषण निर्धारित करने में मातृ स्वास्थ्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ज्यादातर मातृ स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार हुए हैं जो सीधे बाल पोषण को प्रभावित करते हैं. 2015 में महाराष्ट्र में लगभग आधी गर्भवती महिलाएं एनिमिक थीं, जबकि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यह आंकड़ा 49.3} से गिरकर 45.7} हो गया है.

महाराष्ट्र में तीन में से एक बच्चे (35}) का अविकसित (स्टंटेड) रहना जारी है, तीन में से एक (36}) का वजन कम है और चार बच्चों में से एक (26}) कमजोर है
स्वास्थ्य शून्य में मौजूद नहीं होता बल्कि जैविक व व्यावहारिक कारकों के अलावा, व्यापक सामाजिक स्थितियों से प्रभावित होता है. जनस्वास्थ्य में पोषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर बच्चों के मामले में क्योंकि वे राष्ट्र के भविष्य को तय करते हैं. सतत विकास लक्ष्य 2030 के अनुसार देश की प्रगति के आकलन के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) जैसे सर्वेक्षणों के माध्यम से जनस्वास्थ्य, परिवार नियोजन और पोषण संबंधी प्रमुख संकेतकों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है. हाल ही में, एनएफएचएस-5 के पहले चरण के मुख्य निष्कर्ष जारी किए गए हैं जिसमें महाराष्ट्र सहित 17 राज्य और 5 केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं. सर्वेक्षण के निष्कर्ष महाराष्ट्र में बाल कुपोषण के संबंध में चिंताजनक स्थिति को दर्शाते हैं.
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की पोषण की स्थिति को मापने के लिए महत्वपूर्ण संकेतक स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से लंबाई), वेस्टिंग (लंबाई के हिसाब से वजन), कम वजन (उम्र के हिसाब से वजन) और अधिक वजन (बॉडी मास इंडेक्स/बीएमआई ) हैं. कुपोषण किसी भी रूप में, कम या अधिक पोषण, बच्चे के विकास को बाधित करता है और भविष्य के मानव संसाधन पर नकारात्मक असर डालता है. महाराष्ट्र में, इन संकेतकों में 2015-16 (एनएफएचएस-4) से 2019-2020 (एनएफएचएस-5) में कोई बदलाव नहीं हुआ है और वे स्थिर बने हुए हैं.
महाराष्ट्र में तीन में से एक बच्चे (35}) का अविकसित (स्टंटेड) रहना जारी है, तीन में से एक (36}) का वजन कम है और चार बच्चों में से एक (26}) कमजोर है. हालांकि, एनएफएचएस-4 से एनएफएचएस-5 तक के पांच वर्षो में अधिक वजन वाले बच्चों का प्रतिशत दोगुना अर्थात 2} से 4} हो गया है. लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक संकेतकों में कुछ सुधार हैं जो बाल पोषण को प्रभावित करते हैं. 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादी के मामलों में कमी आई है (एनएफएचएस-4 के 26.3} की तुलना में यह एनएफएचएस-5 में 22} ही है).
महाराष्ट्र राज्य में भी कम उम्र में गर्भधारण की संख्या में कमी देखी गई है, जो 2015-16 के 8.3} से घटकर 2019-2020 में 7.6} रह गई. शिक्षा का उच्च स्तर इन सकारात्मक रुझानों के संबद्ध कारणों में से एक हो सकता है. जैसा कि एनएफएचएस-5 (2019-2020) में देखा गया है, सभी लड़कियों में से आधी अब महाराष्ट्र में न्यूनतम 10 साल की स्कूली शिक्षा पूरी करती हैं.
सामाजिक-पारिस्थितिक कारक भी बच्चे के स्वास्थ्य का निर्धारण करने में भूमिका निभाते हैं. सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 2015-2016 में आधे घरों में सैनिटाइजेशन की सुविधा थी, जो 2019-2020 में चार में से तीन घरों तक बढ़ गई है. एनएफएचएस-4 के बाद से बेहतर पेयजल स्नेत वाले घरों में थोड़ी वृद्धि हुई है और यह संख्या 92.5} से बढ़कर 93.5} हो गई है. साथ ही जल जनित बीमारियों को कम करने में जल और स्वच्छता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. बच्चों की खराब पोषण स्थिति में पानी से होने वाली बीमारियों के बार-बार होने का भी योगदान है.
बाल पोषण निर्धारित करने में मातृ स्वास्थ्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ज्यादातर मातृ स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार हुए हैं जो सीधे बाल पोषण को प्रभावित करते हैं. 2015 में महाराष्ट्र में लगभग आधी गर्भवती महिलाएं एनिमिक थीं, जबकि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यह आंकड़ा 49.3} से गिरकर 45.7} हो गया है. एनएफएचएस-4 (67.6}) की तुलना में अधिक महिलाएं (71}) गर्भावस्था की पहली तिमाही में अब प्रसवपूर्व जांच का सहारा ले रही हैं. एक और सकारात्मक संकेतक 100 दिनों में आयरन और फोलिक एसिड की खपत है, जो 2015-16 के 40.6} से बढ़कर 2019-2020 में 48.2} हो गई है. संस्थागत प्रसव का बढ़ना जारी है और केवल पांच प्रतिशत महिलाएं ही घर पर प्रसव करवा रही हैं. लगभग 94} प्रसव कुशल कर्मियों द्वारा करवाया जाता है और अधिकांश माताओं को प्रसव के दो दिनों के भीतर स्वास्थ्य पेशेवर से प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई है.
बच्चों को अच्छा पोषण मिले, तभी वे वयस्कों के रूप में देश के समग्र विकास में अधिक कुशलता से योगदान करने में सक्षम होंगे. भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया पोषण अभियान बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य की दिशा में एक पहल है. सरकार को बच्चों के पोषण में सुधार के सभी कार्यक्रमों को जारी रखना चाहिए. बाल पोषण में सुधार के लिए निवेश किए गए पैसे का अच्छा दीर्घकालिक रिटर्न मिलेगा, जिसे हम एनएफएचएस के अगले दौर में देखने की उम्मीद कर सकते हैं.