Year-End 2024: साल 2024 का मूल्यांकन करें तो नक्सलवाद पर नकेल बीते हुए साल की उपलब्धि कही जा सकती है. इसका श्रेय निश्चित तौर पर गृह मंत्री अमित शाह को जाता है, लेकिन इसमें भूमिका राज्यों की भी कम नहीं रही है. बीते साल सुरक्षा बलों की कार्रवाई में भारी संख्या में नक्सली या तो मारे गए हैं या फिर गिरफ्तार किए गए हैं. इसके साथ ही कई नक्सलियों ने समर्पण करके मुख्यधारा की जिंदगी को अपनाया है. नक्सली आतंक पर कामयाबी के पीछे तीन-स्तरीय रणनीति रही, जिसके तहत सबसे पहले नक्सलियों पर समर्पण का दबाव बनाया गया.
अगर इसके बावजूद नक्सली नहीं मानता तो उसकी पहले गिरफ्तारी के लिए रणनीति बनाई गई. फिर भी अगर नक्सलवादी नहीं माने तो उनके खिलाफ निर्णायक मुठभेड़ की तैयारी की गई. इसी का असर रहा कि बीते साल अकेले छत्तीसगढ़ राज्य में ही करीब एक हजार से ज्यादा नक्सलियों ने या तो आत्मसमर्पण किया या फिर उनकी गिरफ्तारी की गई है, जबकि करीब 287 नक्सली मारे गए.
इनमें झारखंड में मारे गए नक्सलियों की संख्या सिर्फ नौ रही, जबकि सबसे ज्यादा नक्सली छत्तीसगढ़ में मारे गए. नक्सलवाद के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण नक्सल प्रभावित इलाकों में बुनियादी ढांचे की कमी को माना जाता रहा है. नक्सलवाद का समूल नाश करने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार ने सबसे पहले इसी समस्या को खत्म करने पर जोर दिया.
इसके तहत केंद्र सरकार ने विकास और बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान केंद्रित किया. बस्तर समेत तमाम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के हजारों गांवों को सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से जोड़ा गया. इन गांवों में बुनियादी सहूलियतों को बहाल किया गया. इसकी वजह से इन इलाकों के स्थानीय निवासियों की जिंदगी की कठिनाइयां कम हुईं.
इसकी वजह से उन्होंने विकास की धारा को अपनी आंख से देखा और भारतीय राष्ट्र राज्य के बारे में उनकी धारणा बदली. इस धारणा को बदलने के बाद सुरक्षा बलों के लिए नक्सलियों को रोकने के लक्ष्य में बड़ी सफलता मिली. नक्सलियों को लोक समर्थन कम हुआ.
इसके साथ ही सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजनाओं की शुरुआत की. इसके तहत 15,000 आवास बनाने का फैसला लिया गया, साथ ही नक्सल प्रभावित इलाकों में रोजगार को लेकर विशेष योजनाएं चलाई गईं. इससे न केवल हिंसा में कमी आई, बल्कि स्थानीय लोगों की जिंदगी की दुश्वारियां कम हुईं.
इसकी वजह से उन लोगों का मन बदला, जो माओवाद की राह पर नक्सलवादी वैचारिक बहकावे में चल पड़े थे. बुनियादी ढांचा सुधारने, रोजगार की स्थितियां बेहतर बनाने और विकास की धारा को बहाने के बावजूद लंबे समय से नक्सल प्रभावित रहे लोगों के लिए मुख्यधारा में लौटना या मुख्यधारा के प्रति भरोसा बनाना बिना सुरक्षा सुनिश्चित किए संभव नहीं था. सरकार ने इस मोर्चे पर भी काम किया और सुरक्षा बलों की प्रभावी उपस्थिति हरसंभव स्तर पर की.