ब्लॉग: ईरान के हमले से एक और संकट की ओर दुनिया
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 15, 2024 11:17 AM2024-04-15T11:17:12+5:302024-04-15T11:20:19+5:30
सीरिया में वाणिज्य दूतावास पर हमले के बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए बड़े पैमाने पर इजराइल पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए. माना जा रहा है कि दोनों प्रमुख विरोधी देशों के बीच सालों से छद्म युद्ध के बाद यह पहली बार आमने-सामने की लड़ाई आरंभ हुई है
सीरिया में वाणिज्य दूतावास पर हमले के बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए बड़े पैमाने पर इजराइल पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए. माना जा रहा है कि दोनों प्रमुख विरोधी देशों के बीच सालों से छद्म युद्ध के बाद यह पहली बार आमने-सामने की लड़ाई आरंभ हुई है। इसके जवाब में इजराइली सेना ने 300 से ज्यादा क्रूज मिसाइलों और ड्रोन्स को निष्क्रिय किया। मध्य पूर्व की इस नई लड़ाई में इजराइल का अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने साथ दिया है। एक अंदाज के अनुसार ईरान के हमले में इराक और यमन ने भी उसका साथ दिया है। कोविड संकट के बाद आर्थिक संकट से गुजर रही दुनिया के लिए यह चुनौती अधिक मुश्किल पैदा करने वाली है।
पहले ही रूस और यूक्रेन का युद्ध सिमटने का नाम नहीं ले रहा, जिससे अनेक देशों की अर्थव्यवस्था को खासी हानि पहुंची है। भारत के संदर्भों को देखा जाए तो रूस हो या यूक्रेन या फिर ईरान और अमेरिका हो, सभी देशों के साथ अच्छे संबंध हैं। सभी देशों के साथ मित्रवत व्यवहार है। कोविड महामारी के बाद नई संभावनाओं को लेकर द्विपक्षीय व्यापार की अच्छी स्थितियां बन रही थीं, जिनके बीच युद्ध का आरंभ होना काफी परेशानी का कारक है।भारत ने कोविड और रूस-यूक्रेन युद्ध को ठीक तरह से संभाला है। मगर अनेक देशों के सामने आर्थिक संकट है।
पेट्रोलियम पदार्थों से लेकर अनाज का संकट है। यदि युद्ध में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन भी हिस्सा लेंगे तो विश्व के सामने नया संकट होगा, क्योंकि लंबे समय से रूस के युद्धरत रहने से व्यापार और उद्योग जगत के सामने संकट है। वहीं दूसरी ओर सीरिया, जार्डन और इराक जैसे मध्य पूर्व के देश भी लड़ाई में अपनी अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी दिखाते हैं तो उससे भी दुनिया प्रभावित होगी। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सभी प्रभावशाली और ताकतवर देश अपने हितों की रक्षा के साथ दुनिया के समक्ष संकट को समझने की कोशिश करें।
दुनिया के अनेक विकासशील देशों के समक्ष मूलभूत समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। वहीं विकसित देशों की महत्वाकांक्षा और अहंकार थमने का नाम नहीं ले रहा। वे किसी संकट या समस्या को सुलझाने की बजाय आग में घी डालने का काम कर रहे हैं, जिससे पूरे विश्व की स्थिति बिगड़ रही है। कोविड महामारी का संकट प्राकृतिक था, लेकिन युद्ध का संकट मानवीय रूप से पैदा किया गया है, जिसे टाला जा सकता है। आपस में मिल बैठकर सुलझाया जा सकता है। विश्व के विकसित देशों को इन परिस्थितियों में परिपक्वता का परिचय देते हुए युद्ध के संकटों से दुनिया को बाहर निकालना चाहिए। इससे मानव जाति और दुनिया का भला हो सकता है। वर्ना एक और युद्ध जान-माल के साथ विश्व को एक और परेशानी में ढकेल देगा।