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विजय दर्डा का ब्लॉग: क्या राजनीति में नया रंग भरेंगे राहुल ?

By विजय दर्डा | Updated: August 7, 2023 07:33 IST

भाजपा निश्चय ही खुश होगी कि राहुल गांधी के पक्ष में भावनाओं की आंधी आने की आशंका फिलहाल टल गई है. अब सवाल है कि राहुल की सजा स्थगित होने के बाद राजनीतिक नजारा कैसा होगा?

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राहुल गांधी की सजा पर रोक के मायने निश्चय ही बहुत व्यापक हैं. इससे भारतीय राजनीति भी जरूर प्रभावित होगी. खासकर आने वाले विधानसभा चुनावों और उसके बाद लोकसभा चुनावों में यह मसला जरूर चर्चा में रहेगा. चर्चा में तो सजा भी थी लेकिन उस पर रोक ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि देश की सर्वोच्च अदालत ने वाजिब सवाल खड़े किए हैं और खास टिप्पणी भी की है.

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक में एक चुनावी सभा में राहुल गांधी ने मोदी उपनाम को लेकर टिप्पणी की थी. इसके खिलाफ गुजरात के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा कर दिया था. मार्च 2023 में गुजरात की एक अदालत ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी. इसके साथ ही उनकी लोकसभा की सदस्यता चली गई. 

इसे लेकर न केवल राजनीतिक दलों बल्कि आम आदमी के मन में भी कई आशंकाएं पैदा हुईं. लोग यह सोचने भी लगे और बोलने भी लगे कि यदि सजा दो साल से एक दिन भी कम होती तो लोकसभा की उनकी सदस्यता नहीं जाती. लेकिन यह मामला न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का था. हमारे देश में अदालतों को भरोसे की नजर से देखा जाता है और अदालतों को न्याय का मंदिर भी कहा जाता है. 

राहुल गांधी गुजरात हाईकोर्ट गए लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली तो उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. राहुल गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच ने सुनवाई की और राहुल गांधी की सजा को स्थगित कर दिया है. सर्वोच्च न्यायालय को लेकर आम आदमी के मन में भरोसा और पुख्ता हुआ है लेकिन लोगों के मन में एक सवाल बना रहता है कि ट्रायल कोर्ट से चूक कैसे हो जाती है? कोई निर्दोष सजायाफ्ता क्यों हो जाता है?

राहुल गांधी की सजा को स्थगित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जो कहा है, वह बहुत महत्वपूर्ण है. ट्रायल कोर्ट के निर्णय के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का यह कहना मायने रखता है कि जब आप अधिकतम सजा देते हैं तो आप कुछ तर्क देते हैं कि अधिकतम सजा क्यों दी जानी चाहिए. 

मानहनि के मामले में राहुल गांधी को अधिकतम दो साल की सजा दी गई लेकिन निचली अदालत ने कारण नहीं बताया कि क्यों पूरे दो साल की सजा दी गई? उच्च न्यायालय ने भी इस पर पूरी तरह से विचार नहीं किया. राहुल गांधी को हुई सजा केवल एक व्यक्ति को दी गई सजा नहीं है बल्कि इससे एक पूरा संसदीय क्षेत्र प्रभावित हो रहा है. एक संसदीय क्षेत्र अपना प्रतिनिधि चुनता है तो क्या उसकी अनुपस्थिति ठीक है? 

हालांकि इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक और महत्वपूर्ण तथा वाजिब बात कही कि राहुल गांधी की टिप्पणी ‘गुड टेस्ट’ में नहीं थी. सार्वजनिक जीवन में इस पर बहुत सतर्क रहना चाहिए. कितने नेताओं को यह याद रहता है कि वे क्या भाषण देते हैं? वो लोग एक दिन में 10 से 15 सभाओं को संबोधित करते हैं.

सर्वोच्च अदालत की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि भाषा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. भाषा से कोई आहत न हो, इस बात का खयाल रखना जरूरी है लेकिन इससे कौन इनकार कर सकता है कि राजनीति में आक्षेप लगाने के दौरान व्यवहार प्रमुख होता है. इस बात के कई प्रमाण मौजूद हैं कि व्यवहार ने पूरी राजनीति को बदल कर रख दिया. 

अपनी प्रशासनिक दक्षता और दृढ़ता के लिए मशहूर और 1971 की जंग में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर देने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब 1975 में आपातकाल लगाया और आम आदमी के साथ दुर्व्यवहार हुआ तो 1977 में इंदिरा गांधी सहित बड़े-बड़े दिग्गजों को बैलट पेपर ने उखाड़ फेंका. 

जनता पार्टी सत्ता में आई लेकिन कमाल देखिए कि उस जनता पार्टी ने जब इंदिरा गांधी और उनके सुपुत्र संजय गांधी के साथ दुर्व्यवहार किया, उन्हें प्रताड़ित किया तो ढाई साल के बाद क्या हुआ? मतदाताओं ने जनता पार्टी को उखाड़  फेंका और इंदिराजी फिर से सत्ता में आ गईं. यही भारतीय लोकतंत्र की ताकत है.

मुझे अभी भी याद है कि इंदिरा गांधी के साथ कैसा अमानवीय बर्ताव हुआ था. वे नागपुर एयरपोर्ट पर उतरीं तो एयरपोर्ट का शौचालय बंद करवा दिया गया. महाराष्ट्र के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नासिकराव तिरपुड़े, मेरे बाबूजी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जवाहरलाल दर्डा, एन.के.पी. साल्वे, रिखबचंद शर्मा, वसंत साठे और जांबुवंतराव धोटे सहित कई दिग्गज नेता उनके साथ थे. उनकी लाख मिन्नतों के बाद भी शौचालय नहीं खुला. 

आपको जानकर हैरत होगी कि इंदिराजी को एक खेत में जाना पड़ा. यह बात पूरे देश में फैली थी. संजय गांधी को कनॉट प्लेस दिल्ली में घसीटा गया. देश के मतदाता इस बात से नाराज हो गए. हमारा देश किसी के प्रति भी अपमान को बर्दाश्त नहीं करता है. राजनीति से बदला लेने के लिए उसके पास वोट का ब्रह्मास्त्र है.

राहुल गांधी को मिली सजा ने उनके प्रति सहानुभूति का भाव भरना शुरू कर दिया था. यह बात भारतीय जनता पार्टी भी अच्छी तरह से समझ रही थी. हाल के वर्षों में राहुल गांधी ने पहले पदयात्रा और फिर अपने व्यवहार से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू किया है. वे सामान्य लोगों के घर में जाकर खाना खाते हैं. चार्टर विमान से नहीं चलते हैं. उनके विरोधी भी इस बात को समझ रहे हैं. कांग्रेस कितनी भी कमजोर दिखाई देती हो लेकिन जड़ें उसकी पूरे देश में फैली हुई हैं. 

ऐसे हालात में यदि मतदाताओं की सहानुभूति राहुल के साथ चली जाए तो भाजपा के लिए चिंता का सबब है. भाजपा के शिखर पुरुष नरेंद्र मोदी और अमित शाह को राहुल की सजा पर रोक से निश्चय ही बहुत सुकून मिला होगा. भावनाओं की आंधी की आशंका टल गई है. सजा के बाद राजनीतिक परिदृश्य अलग था. सजा स्थगित होने के बाद परिदृश्य अलग होगा. राहुल गांधी संसद में पहुंचेंगे तो उनका रुख विपक्ष की राजनीति के मायने तय करेगा. राजनीति का अगला रंग देखने के लिए इंतजार कीजिए.

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