लाइव न्यूज़ :

राजेश बादल का ब्लॉग: सफल नहीं होगा गांधी जी को नकारने का षड्यंत्र

By राजेश बादल | Updated: May 21, 2019 07:06 IST

अंग्रेजों ने हमें समान रूप से गुलामी की राष्ट्रीय चुभन दी. गांधीजी  ने उस चुभन या तीखी धार को अपने प्रभाव से न केवल हल्का किया, बल्कि यह अहसास भी कराया कि उनकी जादू की छड़ी से ही आजादी का द्वार खुलता है.

Open in App

सत्नहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव के दरम्यान महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जिस तरह महिमामंडन किया गया, वह हमें झकझोरता है. आज हम यह भी पाते हैं कि महात्मा गांधी से उपकृत राष्ट्र में उनका पुण्य स्मरण करते हुए वह हार्दिक कृतज्ञता बोध नहीं पाया जाता. कर्तव्य की तरह हम उन्हें याद करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ उनके योगदान को शापित करने का षड्यंत्न भी हो रहा है. अब गांधी को अनेक ऐसी घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है, जिनका वास्तव में उनसे लेना-देना ही नहीं है. अहिंसक संघर्ष के बाद संसार के सबसे बड़े साम्राज्य की भारत से विदाई के बाद हम गांधी से और क्या चाहते थे.

गुलामी से मुक्त एक विराट देश को शासन संचालन का भी मंत्न गांधीजी देकर जाएं- हम ऐसा क्यों चाहते थे? गांधी की कोख से निकले सत्याग्रह ने आजादी का फल हमें दिया. इसके बाद शासन संचालन की जिम्मेदारी तो हमारी थी. हम अपने सपनों का भारत नहीं बना सके तो उसके लिए भी राष्ट्रपिता को जिम्मेदार मानने लगे हैं. 

हम यह कैसे हिंदुस्तानी समाज की रचना कर रहे हैं, जिसमें अपने राष्ट्रनायकों और शहीदों के लिए स्थान सिकुड़ता जा रहा है. क्या हम भारत के लोग इस मुल्क और महात्मा के रिश्ते को अब तक नहीं समझ पाए हैं? वह रिश्ता, जो देह और आत्मा की तरह है. क्या हमें और हमारी नई पीढ़ियों को मोहनदास करमचंद गांधी के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रूप में परिवर्तन के पीछे की दास्तान पता है? एक दुबला पतला हमारे जैसा ही हाड़-मांस का आदमी अफ्रीका से आता है और भारत के इतिहास में पहली बार करोड़ों लोगों को प्रेरित करता है कि वे अपने राजनीतिक हित के लिए संघर्ष करें.

असंख्य पोखरों में विभाजित देश में वह समंदर की लहरों का ऐसा आवेग पैदा करता है जिसकी बाढ़ में समूची गोरी हुकूमत बह जाती है. याद करें कि उन दिनों भारत छोटे छोटे अनगिनत तालाबों में बंटा था. ये तालाब राष्ट्रीय आंदोलन की शक्ल नहीं ले सकते थे क्योंकि तब ये तालाब वास्तव में राष्ट्र के आकार पर असर डालने वाले नहीं थे. हिंदुस्तान जैसा देश दरअसल समंदर ही है और समंदर की समग्रता में ही ज्वार आता है. सतही ढंग से सोचने वाले कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि बरतानवी सत्ता ने ही वास्तव में ढेरों शासन प्रणालियों के सहारे चल रहे छोटे-छोटे उप राष्ट्रों को भारत जैसे एक महा राष्ट्र का आकार दिया है. पर उनसे कौन सहमत हो सकता है.

अंग्रेजों ने हमें समान रूप से गुलामी की राष्ट्रीय चुभन दी. गांधीजी  ने उस चुभन या तीखी धार को अपने प्रभाव से न केवल हल्का किया, बल्कि यह अहसास भी कराया कि उनकी जादू की छड़ी से ही आजादी का द्वार खुलता है. इस धारणा पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों ने यकीन किया. इसके बाद ही ढेर सारे तारों ने आसमान को अपना मानना शुरू कर दिया. आज अपने इसी आसमान पर हम क्या गर्व नहीं कर रहे हैं? तो फिर गांधी को दिन-रात कोसने वालों को अहिंसक उत्तर प्रत्येक भारतीय को क्यों नहीं देना चाहिए? 

टॅग्स :महात्मा गाँधीनाथूराम गोडसे
Open in App

संबंधित खबरें

भारतPutin India Visit: पुतिन ने राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी, देखें वीडियो

भारतराहुल गांधी नहीं हो सकते जननायक?, तेज प्रताप यादव ने कहा-कर्पूरी ठाकुर, राम मनोहर लोहिया, डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी में कैसे शामिल कर सकते

कारोबारMake In India: आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए लौटना होगा स्वदेशी की ओर, स्वदेशी 2.0 का समय

भारतGandhi Jayanti 2025: पीएम मोदी ने महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री को किया नमन, कहा, 'हम उनके बताए रास्ते पर चलते रहेंगे'

भारतGandhi Jayanti 2025: महात्मा गांधी की लिखी ये किताबें, जो हर भारतीय को जरूर पढ़नी चाहिए

भारत अधिक खबरें

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की

भारतसिरसा जिलाः गांवों और शहरों में पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल, जानिए खासियत