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ऑपरेशन सिंदूर: नुकसान पर क्यों विलाप करना चाहते हैं कुछ लोग ?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: June 5, 2025 07:01 IST

दुनिया में और भी जंगों को यदि हम देखें तो इसी तरह का विश्लेषण उभर कर सामने आता है कि सवाल नुकसान का नहीं बल्कि जीत का है! इसलिए जो लोग भारत को हुए नुकसान की बात कर रहे हैं, वे पूरी तरह राजनीति कर रहे हैं.

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राजनीति बड़ी अजीब चीज है! जब बात देश की हो तब भी राजनीति करने वाले राजनीति करने से नहीं चूकते. ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भी राजनीतिक दल बाज नहीं आ रहे हैं. भाजपा सेना के शौर्य का श्रेय लेना चाह रही है. यह स्वाभाविक सी बात है क्योंकि जो दल सत्ता में होगा, उसकी नीतियां परिणाम तय करती हैं इसलिए जीत का श्रेय वह लेगा. 1971 में भी भारतीय सेना ने ही शौर्य दिखाया था लेकिन शौर्य दिखाने की अनुमति इंदिरा गांधी ने दी थी, इसलिए पाकिस्तान को तोड़ने और बांग्लादेश के निर्माण का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है. 

ऑपरेशन सिंदूर के वक्त नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं तो सफलता का श्रेय स्वाभाविक रूप से उनकी सरकार ही लेगी! मगर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ घंटों की सैन्य तकरार में भारत को वास्तविक रूप से कितना नुकसान हुआ? क्या हमारे राफेल विमानों को पाकिस्तान ने मार गिराया? इस पर अभी तक कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी गई है लेकिन जानकारियां कभी छिपी नहीं रहतीं. सामने आ जाती हैं. जैसे पाकिस्तान ऑपरेशन सिंदूर से हुए नुकसान को पहले छुपाता रहा लेकिन अब पाकिस्तान का अधिकृत डोजियर ही सच उगल रहा है कि भारत ने पाकिस्तान के 28 ठिकाने तबाह किए. इनमें पाकिस्तानी सेना के 11 एयरबेस भी शामिल थे. 

जहां तक भारत का सवाल है तो हमारी सेना ने पाकिस्तानी ड्रोन हमलों को पूरी कुशलता के साथ अप्रभावी बना दिया. उनके ड्रोन हवा में ही मार गिराए गए. जहां तक राफेल विमान का या फिर कुछ दूसरे नुकसानों का सवाल है तो भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने बहुत सटीक बात की है कि सवाल नुकसान का नहीं है बल्कि सवाल यह है कि परिणाम क्या रहा और आप कैसे कार्य करते हैं! यदि हम इतिहास के पन्ने पलट कर देखें और 1965 की जंग का ही उदाहरण लें तो हमारे 59 विमान नष्ट हो गए जबकि पाकिस्तान के 43 विमान नष्ट हुए. 

आंकड़ों की दृष्टि से देखें तो भारतीय वायुसेना का नुकसान ज्यादा हुआ लेकिन जीत भारत की हुई. यदि हम दूसरे विश्वयुद्ध का आंकड़ा देखें तो मित्र राष्ट्रों (अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, सोवियत संघ इत्यादि) के 18 करोड़ से ज्यादा सैनिक मारे गए और 91 हजार से ज्यादा विमान नष्ट हुए जबकि धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, जापान, इटली इत्यादि) के करीब 60 लाख सैनिक मारे गए और करीब 70 हजार विमान नष्ट हुए. आंकड़े की दृष्टि से मित्र राष्ट्रों को ज्यादा नुकसान हुआ लेकिन जीत उन्हीं की हुई. 

दुनिया में और भी जंगों को यदि हम देखें तो इसी तरह का विश्लेषण उभर कर सामने आता है कि सवाल नुकसान का नहीं बल्कि जीत का है! इसलिए जो लोग भारत को हुए नुकसान की बात कर रहे हैं, वे पूरी तरह राजनीति कर रहे हैं. उन्हें यह बात शायद समझ में नहीं आ रही है कि जब जंग होती है तो नुकसान दोनों तरफ से होता है. कोई कितना भी पहलवान हो, कुछ नुकसान तो उसका भी होगा ही! हम यह कल्पना कैसे कर सकते हैं कि हम जंग में जाएं और हमारा कोई नुकसान न हो? 

सीडीएस अनिल चौहान की यह बात भी बहुत मायने रखती है कि जंग में नुकसान का पेशेवर सैन्य बलों पर कोई असर नहीं पड़ता. स्वाभाविक सी बात है कि भारतीय सेना जब जंग लड़ रही होती है तो क्या यह देखेगी कि उसका कितना नुकसान हुआ है? हमारे वीर सैनिक घायल होते हैं और उन्हें लगता है कि वे अब शहीद होने वाले हैं तो भी वे परम शौर्य दिखाते हुए दुश्मन के कुछ सैनिकों को तो जरूर मार गिराते हैं. 

1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान तवांग के पास भारतीय सेना के अधिकांश जवान शहीद हो चुके थे. केवल जसवंत सिंह नेगी और उनके एक साथी जिंदा बचे थे. उन्हें पीछे लौटने का हुक्म मिला लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. उसी रात उन्होंने चीनी फौज के एक बंकर पर हमला करके लाइट मशीनगन छीनी और शहीद होने से पहले चीन के 300 से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया. नेगी ने यदि खुद के नुकसान की बात सोची होती तो क्या वे शौर्य दिखा पाते? उन्होंने दुश्मन को क्षति पहुंचाने का लक्ष्य हासिल किया! जंग में लक्ष्य महत्वपूर्ण है, नुकसान नहीं!

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