ब्लॉग: भारत-अमेरिका युद्धाभ्यास पर ड्रैगन को आपत्ति! आखिर चीन की क्या है दलील
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 2, 2022 12:53 PM2022-12-02T12:53:42+5:302022-12-02T12:53:42+5:30
चीनी शासकों से पूछा जाना चाहिए कि अगर उसे भारत के साथ चिंता की इतनी ही फिक्र है तो वह हिंद महासागर क्षेत्र में अपने जंगी जहाज क्यों रखता है? वह श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार और नेपाल में भी अपना सामरिक वर्चस्व कायम करने की कोशिश क्यों कर रहा है?
भारत, चीन और अमेरिका के बीच आजकल जो कहासुनी चल रही है, वह बहुत मजेदार है. उसके तरह-तरह के अर्थ लगाए जा सकते हैं. चीनी सरकार के प्रवक्ता ने एक बयान देकर कहा है कि उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा पर अमेरिकी और भारतीय सेना का जो ‘युद्धाभ्यास’ चल रहा है, वह बिल्कुल अनुचित है और वह 1993 और 1996 के भारत-चीन समझौतों का सरासर उल्लंघन है.
सच्चाई तो यह है कि मई 2020 में चीन ने गलवान-क्षेत्र में अपने सैनिक भेजकर ही उक्त समझौतों का उल्लंघन कर दिया था. वास्तव में भारत-अमेरिका का यह युद्धाभ्यास चीन-विरोधी हथकंडा नहीं है. दोनों राष्ट्र इस तरह के कई युद्धाभ्यास जगह-जगह कर चुके हैं. यह तो वास्तव में हिमालय-क्षेत्रों में अचानक आनेवाले भूकंप, बाढ़, पहाड़ों की टूटन, जमीन फटने जैसी विपत्तियों का सामना करने का पूर्वाभ्यास है.
प्राकृतिक संकट से ग्रस्त लोगों की मदद के लिए अस्पताल तुरंत कैसे खड़े किए जाएं, हेलिपैड कैसे बनाए जाएं, पुल और सड़कें आनन-फानन कैसे तैयार किए जाएं और घायलों की जीवन-रक्षा कैसे की जाए- इन सब कामों का अभ्यास ये दोनों सेनाएं मिलकर कर रही हैं. यह सब काम चीन की सीमा से लगभग 100 मील दूर भारत की सीमा में हो रहा है लेकिन लगता है कि चीन इसीलिए चिढ़ा हुआ है कि अमेरिका के साथ उसके संबंध आजकल काफी कटुताभरे हो गए हैं.
यह तथ्य चीनी प्रवक्ता के इस कथन से भी सत्य साबित होता है कि अमेरिका की कोशिश यही है कि भारत और चीन के रिश्तों में बिगाड़ हो जाए. चीन नहीं चाहता कि उसके पड़ोसी भारत के साथ उसके रिश्ते खराब हों.
यदि सचमुच ऐसा है तो चीनी शासकों से पूछा जाना चाहिए कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन अपने जंगी जहाज क्यों रखता है? वह श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार और नेपाल में भी अपना सामरिक वर्चस्व कायम करने की कोशिश क्यों कर रहा है?
भारत की नीति तो यह है कि वह अमेरिका और चीन तथा अमेरिका और रूस के झगड़ों में तटस्थ रहता है. न तो वह चीन-विरोधी और न रूस-विरोधी बयानों का समर्थन करता है. अमेरिका से उसके द्विपक्षीय संबंध शुद्ध अपने दम पर हैं. इसीलिए चीन का चिंतित होना अनावश्यक है.