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आग लगने की घटनाओं में क्यों लाचार हैं हम?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 19, 2018 05:27 IST

बताते हैं कि इंसान ने करीब 10 लाख साल पहले आग पर काबू पाना सीख लिया था और यही वह मोड़ था, जब वह अपनी इस ताकत के बल पर पृथ्वी पर मौजूद दूसरे जीवधारियों से लड़ने और उनसे आगे निकलने की हैसियत में आ गया था

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(लेखक-अभिषेक कुमार सिंह)

 बताते हैं कि इंसान ने करीब 10 लाख साल पहले आग पर काबू पाना सीख लिया था और यही वह मोड़ था, जब वह अपनी इस ताकत के बल पर पृथ्वी पर मौजूद दूसरे जीवधारियों से लड़ने और उनसे आगे निकलने की हैसियत में आ गया था. लेकिन मुंबई के अंधेरी पूर्व इलाके में ईएसआईसी कामगार अस्पताल में सोमवार शाम को लगी आग और इस हादसे में हुई मौतों ने साबित किया है कि चंद लापरवाहियों के चलते हम आग के आगे आज भी कितने लाचार बने हुए हैं. गंभीर यह है कि देश में जैसे-जैसे शहरीकरण और बेतरतीब नियोजन के चलते ऊंची इमारतों की संख्या बढ़ रही है, आग का खतरा कई गुना ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहा है. 

मुंबई के ताजा हादसे से लेकर दिल्ली-नोएडा-बेंगलुरु आदि बड़े शहरों के हालिया हादसों को देखने से पता चलता है कि इसकी पहली बड़ी वजह खराब अर्बन मैनेजमेंट (शहरी प्रबंधन) है जिसके चलते ऊपर से लकदक दिखने वाली इमारतों में ऐसी-ऐसी कमियां और लापरवाहियां हमेशा मौजूद रहती हैं जो कभी भी कोई बड़ा अग्निकांड पैदा कर देती हैं.

असल में, यह शहरी प्रबंधन इमारतों को मौसम के हिसाब से ठंडा-गर्म रखने, वहां काम करने वाले लोगों की जरूरतों के मुताबिक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक साजो-सामान जुटाने में तो दिलचस्पी रखता है, पर विनाशकारी आग पैदा होने से रोकने के प्रबंध पर उसका ध्यान नहीं रहता है. हमारे ज्यादातर शहरों में इमारतों की लंबाई तो बढ़ गई है लेकिन संकरे रास्तों के कारण फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का उन तक पहुंचना मुश्किल है. यही नहीं, नोएडा-मुंबई-बेंगलुरु  आदि में कई इमारतें तो 40 से 60 मंजिल तक पहुंच गई हैं, लेकिन फायर ब्रिगेड के पास ऐसी सीढ़ियां नहीं हैं जो दमकल कर्मियों को आपात स्थिति में इन इमारतों की आधी ऊंचाई तक भी पहुंचा सकें. ऐसे में फायर ब्रिगेड के कर्मचारी सिर्फ किताबी ट्रेनिंग तक सीमित रह जाते हैं और वास्तविक हालात से मुकाबला होने पर उनका प्रशिक्षण और साधन बौने पड़ जाते हैं. 

एक गंभीर लापरवाही फायर ऑडिट के मामले में होती है. प्राय: हर बड़े अग्निकांड के बाद यह खुलासा होता है कि संबंधित इमारत, फैक्ट्री या सघन इलाके में बसे बाजार का अरसे से फायर ऑडिट नहीं हुआ था और दमकल कर्मियों की मिलीभगत से वहां आग से बचाव करने वाले उपकरण या तो लगाए ही नहीं गए थे या वर्षो से उन्हें बदला नहीं गया था. मुंबई के ईएसआईसी अस्पताल के बारे में पता चला है कि इसका करीब 10 साल से (2009 के बाद से) से फायर ऑडिट ही नहीं हुआ था. 

ज्यादातर मामलों में आग किसी बेहद छोटे कारण से शुरू होती है. जैसे मामूली शॉर्ट सर्किट या बिजली के किसी खराब उपकरण का आग पकड़ लेना. यह बात बहुत पहले समझ में आ गई थी, पर अफसोस है कि ऐसी मामूली वजहों की असरदार रोकथाम अब तक नहीं हो सकी.

टॅग्स :भीषण आगअग्नि दुर्घटना
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