वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सबके लिए एक जैसा कानून कब बनेगा?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 12, 2021 04:36 PM2021-07-12T16:36:55+5:302021-07-12T16:44:41+5:30

समान आचार संहिता का अर्थ यह नहीं है कि देश के 130 करोड़ नागरिक एक ही भाषा बोलें, एक ही तरह का खाना खाएं या एक ही ढंग के कपड़े पहनें। उस धारा का अभिप्राय बहुत सीमित है। वह है शादी, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने आदि की प्रक्रिया में एकता।

When will there be a common law for all? | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सबके लिए एक जैसा कानून कब बनेगा?

फाइल फोटो

Highlightsदिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकार देश के नागरिकों के लिए समान आचार संहिता बनाए। जैसे हिंदू कोड बिल बना, वैसे ही भारतीय कोड बिल भी बनना चाहिए।सभी नागरिकों के लिए समान कानून बन जाए तो राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बार फिर कहा है कि सरकार देश के नागरिकों के लिए समान आचार संहिता बनाए और संविधान की धारा 44 में जो अपेक्षा की है, उसे पूरा करे। समान आचार संहिता का अर्थ यह नहीं है कि देश के 130 करोड़ नागरिक एक ही भाषा बोलें, एक ही तरह का खाना खाएं या एक ही ढंग के कपड़े पहनें। उस धारा का अभिप्राय बहुत सीमित है। वह है शादी, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने आदि की प्रक्रिया में एकता। भारत में इन मामलों में इतना अधिक रूढ़िवाद चलता रहा है कि आम आदमी का जीना दूभर हो गया था। इसलिए 1955 में हिंदू कोड बिल पास हुआ लेकिन यह कानून भी कई आदिवासी और पिछड़े लोग नहीं मानते। वे अपनी घिसी-पिटी रूढ़ियों के मुताबिक शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के अपने ही नियम चलाते रहते हैं।

उच्च न्यायालय ने सिर्फ हिंदुओं के बारे में ही नहीं, प्रत्येक भारतीय के लिए समान आचार संहिता बनाने को कहा है। सभी धर्मों की अपनी-अपनी आचार-संहिता है, जो सैकड़ों या हजारों वर्ष पहले बनी थी। उस देश-काल के हिसाब से वे शायद ठीक रही होंगी लेकिन आज की बदली हुई परिस्थितियों में उन्हें आंख मींचकर अपने पर थोपे रहना कहां तक ठीक है? इसीलिए जैसे हिंदू कोड बिल बना, वैसे ही भारतीय कोड बिल भी बनना चाहिए।

सरकार ने तीन तलाक प्रथा को खत्म करके समान आचार संहिता का रास्ता जरूर खोला है लेकिन उससे उम्मीद की जाती है कि जैसे नेहरू और आंबेडकर ने घनघोर विरोध के बावजूद हिंदू कोड बिल को पुख्ता कानून बनवा दिया, वैसे ही सभी धर्मावलंबियों के लिए समान आचार संहिता बनाने का साहस वर्तमान सरकार को दिखाना चाहिए। यूरोप और अमेरिका में रहनेवाले किसी भी धर्म, किसी भी वंश, किसी भी जाति, किसी भी रंग के आदमी के लिए कोई अलग कानून नहीं है।

यदि सभी नागरिकों के लिए समान कानून बन जाए तो वह राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने में विशेष भूमिका अदा करेगा। तब अंतरधार्मिक, अंतरजातीय और अंतरभाषिक विवाह आसानी से होने लगेंगे। यदि गोवा में पुर्तगालियों द्वारा 1867 में बनाई समान आचार-संहिता लागू हो रही है तो हमारी अपनी समान आचार संहिता पूरे भारत में क्यों नहीं लागू हो सकती है? 

Web Title: When will there be a common law for all?

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