जम्मू कश्मीर: आतंकियों के बुरे दिन आएंगे?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: June 21, 2018 05:12 IST2018-06-21T05:12:02+5:302018-06-21T05:12:02+5:30
सीमा पर घुसपैठ जारी रही और सुरक्षा बलों के सामने एक विकट परिस्थिति निर्मित हुई। रमजान के पाक महीने में जिसकी उम्मीद थी उस तरह का माहौल बन नहीं पाया, अलगाववादी और आतंकवादी अपनी करनी पर उतारू थे।

जम्मू कश्मीर: आतंकियों के बुरे दिन आएंगे?
सारंग थत्ते
पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के लिए गठबंधन के टूटने की खबर एक तरह से जोर का झटका धीरे से दे गई है। जम्मू कश्मीर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने से सीमा पर और राज्य के भीतर सेना और अर्ध सैनिक बलों को अब कुछ खुलकर हाथ दिखाने का मौका मिलेगा, ऐसा नजर आता है। रमजान के महीने में संघर्ष विराम के दौर में विशेष लाभ सुरक्षा बलों को नहीं मिला, साथ ही ऑपरेशन ऑल आउट को भी रोक दिया गया था।
सीमा पर घुसपैठ जारी रही और सुरक्षा बलों के सामने एक विकट परिस्थिति निर्मित हुई। रमजान के पाक महीने में जिसकी उम्मीद थी उस तरह का माहौल बन नहीं पाया, अलगाववादी और आतंकवादी अपनी करनी पर उतारू थे। औरंगजेब को अगवा करने की कहानी ने नाटकीय मोड़ लिया जब उसका गोलियों से भूना हुआ शव जंगल में मिला। श्रीनगर में हुए कायराना हमले में प्रसिद्ध पत्रकार शुजात बुखारी की मौत ने इस आतंकवाद की करतूतों में घी का काम किया। घाटी दहल उठी !
कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन यानी इलाके की घेराबंदी के बाद खोजबीन की कार्रवाई जिसे सेना की भाषा में ‘कासो’ कहते हैं, में अपने पहले ही दिन दो आतंकियों को मार गिरने में कामयाबी मिली, सुरक्षा बलों ने कश्मीर के कुलगाम जिले में स्थानीय लोगों के साथ भी दो-दो हाथ करने पड़े थे, जो सेना की कार्रवाई में बाधा पहुंचा रहे थे। पत्थरबाजों की हरकत एक बार फिर गति पकड़ रही है और अब समय आ गया है कि इस पर नकेल कसी जाए। शायद हमारे कानून में बदलाव करना पड़ेगा। इस किस्म के पत्थरबाज जो कानून का मखौल उड़ा रहे हैं, उन्हें किसी भी रहम की जरूरत नहीं है।
इस साल एक नया प्रयोग किया जा रहा है। ख़ु़फिया जानकारी के अनुसार अमरनाथ यात्र के रास्ते में मुख्य आधार शिविर भगवती नगर में महिला आतंकी घुसपैठ कर सकती हैं। इसे देखते हुए सीआरपीएफ की एक महिला कंपनी जिसमे 90 महिला कर्मी होंगी। तैनात की जा रही है। सीआरपीएफ किसी भी चुनौती से निबटने के लिए पुख्ता इंतज़ाम कर रही है। सुरक्षा बलों की आपसी सलाह मशिवरा के बाद ही यह फ़ैसला किया गया था कि आतंकवाद से निपटने की कार्रवाई को और ज्यादा दिन बंद नहीं रखा जा सकता। इतने बड़े इलाके में जानकारी जुटाना और फिर घेराबंदी करने से माकूल नतीजे मिलना, अपने आप में बहुत बड़ी सफलता होती है।
आज घाटी में जहां सुरक्षा बल सीमा पार से आने वाले आतंकियों को एलओसी पर ही रोक रही है-चौबीसों घंटे गश्त और अन्य साधनों से सीमा पार से आने वालों की खबर लेती रहती है लेकिन अमूमन पाक समर्थित आतंकवादी घाटी में घुसने में कामयाब हो रहे हैं। इनका साथ देने के लिए स्लीपर सेल के स्थानीय नागरिक मददगार के रूप में कश्मीर में फैले हुए हैं। इन सबको ढूंढ़ना कोई आसान काम नहीं है। दक्षिण कश्मीर के शोपिया, कुलगाम, अनंतनाग और पुलवामा के आतकियों के गढ़ कहे जाने वाले इलाक़ों पर पैनी नज़र रखी जा रही है।
अब यह उम्मीद की जा रही है कि आतंक के खिलाफ एक तगड़ी मुहिम अमल में लाई जाएगी जिसके नतीजे जनता को बहुत जल्द देखने को मिलेंगे। यह भी एक विडंबना ही है कि सरकारी महकमे की ओर से सेना, अर्ध सैनिक दस्तों और पुलिस की कार्रवाई के चलते सीमा पार से की जा रही हरकत और तेज हो जाएगी एवं इसका असर अमरनाथ यात्र पर पड़ सकता है। इसलिए बेहद सोच समझ कर सुरक्षा बलों को अपने प्लान अमल में लाने होंगे।
पुलिस और सेना के पास मिली जानकारी के अनुसार घाटी में अब भी लगभग 144 आतंकी मौजूद हैं जिनमे 131 स्थानीय हैं और बाकी सीमा पार से आए हुए हैं। 2017 में सुरक्षा बलों ने 140 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया था। यह काम जितना नज़र आता है उतना आसान नहीं है। अब घड़ी है कश्मीर में जब सेना की ताकत को सीमा पार के आतंकी महसूस करें और 30 साल से चल रही इस छद्म लड़ाई को समेटने के लिए कड़े कदम लिए जाएं। गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में है-देखना होगा क्या कोई गुगली फेंकी जाती है या वैसे ही ऑल आउट किया जा सकेगा-आतंक के सूरमाओं का।
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