चीन की आक्रामकता से निपटने का भारत के पास क्या है रास्ता? करने होंगे ये प्रयास

By शोभना जैन | Published: December 17, 2022 08:10 AM2022-12-17T08:10:32+5:302022-12-17T08:17:27+5:30

भारत ‘पड़ोस सबसे पहले’ की नीति के तहत चीन सहित पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापित करने पर जोर देता रहा है, लेकिन अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की इस नई आक्रामकता से फिर यह स्पष्ट हुआ है कि चीन भारत के लिए गंभीर चुनौती बना रहेगा।

What is the way for India to deal with China aggression Will have to try this | चीन की आक्रामकता से निपटने का भारत के पास क्या है रास्ता? करने होंगे ये प्रयास

चीन की आक्रामकता से निपटने का भारत के पास क्या है रास्ता? करने होंगे ये प्रयास

Highlightsपिछले हफ्ते अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन ने अतिक्रमण कर अपना विस्तारवादी एजेंडा उजागर किया। 9 दिसंबर को घटी इस घटना के बाद इस सीमा पर अनिश्चितता से भरी शांति बनी हुई है।चीन की इन हरकतों से जाहिर है कि बातचीत से सीमा विवाद के हल में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

लद्दाख  के गलवान में जून 2020 के चीन से संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच अप्रैल 2020 की यथास्थिति कायम करने के लिए 16  दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन न केवल चीन ने यथास्थिति कायम करने के वायदे को पूरा नहीं किया बल्कि पिछले हफ्ते अरुणाचल प्रदेश के तवांग में अतिक्रमण कर अपना विस्तारवादी एजेंडा उजागर किया। भारतीय सेना के जांबाज जवानों ने हालांकि इस अतिक्रमण को नाकाम कर चीनी सैनिकों को वापस पीछे खदेड़ दिया लेकिन चीन ने जिस तरह से सीमा के पश्चिमी सेक्टर  पर अतिक्रमण के बाद अब एक बार फिर से पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश पर अतिक्रमण करने की कोशिश की है, उससे साफ जाहिर है कि लद्दाख सीमा पर  2020 से पहले की यथास्थिति बहाल करने का मसला फिलहाल हल हो नहीं पाया है। 9 दिसंबर को घटी इस घटना के बाद इस सीमा पर अनिश्चितता से भरी शांति बनी हुई है।

चीन की इन हरकतों से जाहिर है कि बातचीत से सीमा विवाद के हल में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। निश्चय ही सीमा पर लगभग तीन दशक की शांति के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नए सिरे से बढ़ता तनाव एक सैन्य और राजनीतिक चुनौती है। भारत के लगातार शांति प्रयासों के बावजूद चीन के नापाक मंसूबों और विस्तारवादी एजेंडा को देखते हुए इस बात की जरूरत है कि चीन से निपटने के लिए नई रणनीति अपनाई जाए, जिसमें सुरक्षा तंत्र और चाक-चौबंद किया जाए।

यह स्थिति इसलिए और भी चिंताजनक है कि गलवान के बाद दोनों देशों के बीच इस सीमा पर जिन पांच क्षेत्रों में अपनी-अपनी फौजों को हटाने  पर सहमति हुई थी, चीन ने अपनी फितरत के अनुरूप वहां से हटने के बारे में वादाखिलाफी की। सहमति वाले ऐसे ही कुछ बिंदुओं के बावजूद वहां भारतीय सैनिक अभी तक गश्त शुरू नहीं कर पाए हैं जबकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के कुछ बिंदुओं पर सहमति के बावजूद चीन के सैनिक वहां बने हुए हैं।  

दरअसल 2017 में डोकलोम में करीब ढाई महीने तक चले सीमा तनाव और फिर 15 जून 2020 को लद्दाख के गलवान में बर्बर हिंसक झड़प, जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए, उसके बाद अब 9 दिसंबर 2022 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हिंसक झड़प दोनों देशों के सैन्य बलों के बीच ऐसी बड़ी घटनाएं हैं जब भारत और चीन के सैनिक सीमा पर आमने-सामने आ डटे थे। ऐसे में सवाल चीन के प्रति नीति पर पुनः विचार करने के लिए उठने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 2014 के बाद से करीब 18 बार मुलाकात हो चुकी है, लेकिन चीन की इसी आक्रामकता के चलते पिछले तीन वर्षों से दोनों शीर्ष नेताओं के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई, हाल ही में संपन्न जी-20 शिखर बैठक के दुआ-सलाम को छोड़ कर।

सिर्फ भारत ही ऐसा पड़ोसी देश नहीं है जिसके साथ चीन सीमा विवाद उछालता रहा है। चीन की सीमाएं 14  देशों से लगती हैं, पर क्षेत्रीय मसलों को लेकर उसके लगभग दो दर्जन देशों के साथ विवाद हैं। साउथ चाइना सी, ईस्ट चाइना सी, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, फिलीपींस आदि को लेकर उसकी विस्तारवादी नीति जगजाहिर है। अलबत्ता यूक्रेन युद्ध के चलते नए अंतरराष्ट्रीय शक्ति समीकरणों में चीन अपने को एक बड़ी ताकत के रूप में विश्व बिरादरी में रखने के जुगाड़ में खास तौर पर ऐसी हरकतों में तेजी से जुटा है। भारत के आस पड़ोस के देशों को जिस तरह से वह ऋण चक्र के जाल में उलझा कर अपनी पैठ बना रहा है, भारत उसे लेकर सतर्क है और अपनी चिंताएं, सरोकार उठाता रहा है।

भारत ‘पड़ोस सबसे पहले’ की नीति के तहत चीन सहित पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापित करने पर जोर देता रहा है, लेकिन अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की इस नई आक्रामकता से फिर यह स्पष्ट हुआ है कि चीन भारत के लिए गंभीर चुनौती बना रहेगा। भारत ने चीन के साथ द्विपक्षीय तौर पर संबंध सामान्य करने के प्रयासों और सीमा पर शांति बनाए रखने के प्रयासों के साथ अपने स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी वर्चस्व और आक्रामकता को रोकने के अनेक प्रयास किए हैं, लेकिन सबसे श्रेष्ठ विकल्प यही है कि भारत अपने को सैन्य स्तर पर और अर्थव्यवस्था के स्तर पर अधिक से अधिक विकसित करे, सभी स्तरों पर विकास ही इस तरह की आक्रामकता से निपटने का रास्ता है।

Web Title: What is the way for India to deal with China aggression Will have to try this

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