ब्लॉग: कश्मीर में देर से बर्फबारी के क्या हैं मायने?
By पंकज चतुर्वेदी | Updated: February 28, 2024 10:13 IST2024-02-28T10:11:34+5:302024-02-28T10:13:19+5:30
यह बात गौर करने की है कि बीते कुछ सालों में कश्मीर लगातार असामान्य और चरम मौसम की चपेट में है। अभी 21 फरवरी को गुलमार्ग में बर्फीले तूफान का आना भी चौंकाने वाला है। जान लें कि देर से हुई बर्फबारी से राहत तो है लेकिन इससे उपजे खतरे भी हैं।

फोटो क्रेडिट- (एक्स)
इस साल का जनवरी महीना कश्मीर के लिए अभी तक का सबसे गरम रहा। वहीं फरवरी जाते-जाते इस राज्य को बर्फ की घनी चादर में लपेट चुकी है। मौसम विभाग की मानें तो फरवरी के आखिरी दिनों में फिर से जम कर बर्फबारी होगी। 23 फरवरी की रात गुलमर्ग में शून्य से 10.4 और पहलगाम में 8.6 डिग्री नीचे तापमान वाली रही। धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर में क्या देर से हुई बर्फबारी महज एक असामान्य घटना है या फिर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का संकेत ?
यह बात गौर करने की है कि बीते कुछ सालों में कश्मीर लगातार असामान्य और चरम मौसम की चपेट में है। अभी 21 फरवरी को गुलमार्ग में बर्फीले तूफान का आना भी चौंकाने वाला है। जान लें कि देर से हुई बर्फबारी से राहत तो है लेकिन इससे उपजे खतरे भी हैं।
कश्मीर घाटी को सुंदर, हराभरा, जलनिधियों से परिपूर्ण और वहां के बाशिंदों के लिए जीवकोपार्जन का मूल आधार है–जाड़े का मौसम। यहां जाड़े के कुल 70 दिन गिने जाते हैं। 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक 'चिल्ला–ए–कलां' यानी शून्य से कई डिग्री नीचे वाली ठंड। इस बार यह 45 दिनों का समय बिल्कुल शून्य बर्फबारी का रहा। उसके बाद बीस दिन का 'चिल्ला-ए–खुर्द' अर्थात छोटा जाड़ा, यह होता है-31 जनवरी से 20 फरवरी। इस दौर में बर्फ शुरू हुई लेकिन उतनी नहीं जितनी अपेक्षित है। और उसके बाद 20 फरवरी से 02 मार्च तक बच्चा जाड़ा यानी 'चिल्ला ए बच्चा'। इस बार बर्फबारी इस समय में हो रही है।
सत्तर दिन की बर्फबारी 15 दिन में सिमटने से दिसंबर और जनवरी में हुई लगभग 80-90 प्रतिशत कम बर्फबारी की भरपाई तो हो नहीं सकती। उसके बाद गर्मी शुरू हो जाने से साफ जाहिर है कि जो थोड़ी सी बर्फ पहाड़ों पर आई है, वह जल्दी ही पिघल जाएगी। अर्थात आने वाले दिनों में ग्लेशियर पर निर्भर नदियों में अचानक बाढ़ आ सकती है और फिर अप्रैल में गर्मी आते-आते वहां पानी का अकाल हो सकता है।
भारत में हिमालयी क्षेत्र का फैलाव कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (अर्थात जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल) में है, जो लगभग 2500 किमी है। भारत के मुकुट कहे जाने वाले हिमाच्छादित पर्वतमाला की गोदी में कोई पांच करोड़ लोग सदियों से रह रहे हैं। चूंकि यह क्षेत्र अधिकांश भारत के लिए पानी उपलब्ध करवाने वाली नदियों का उद्गम है, साथ ही यहां के ग्लेशियर धरती के गरम होने को नियंत्रित करते हैं, सो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से यह सबसे अधिक संवेदनशील है।