ब्लॉग: मतदाता नहीं चाहते कि चुनाव में दलबदलू नेता जीतें !
By राजकुमार सिंह | Published: June 17, 2024 11:44 AM2024-06-17T11:44:13+5:302024-06-17T11:46:02+5:30
सत्तापक्ष और विपक्ष की जीत-हार से इतर मतदाताओं ने ज्यादातर दलबदलुओं को नकार कर बड़ा संदेश दिया है
सत्तापक्ष और विपक्ष की जीत-हार से इतर मतदाताओं ने ज्यादातर दलबदलुओं को नकार कर बड़ा संदेश दिया है। सत्ता को ही राजनीति का पहला और अंतिम सच मानने वाले नेता चुनाव जीतने के लिए दलबदल में संकोच नहीं करते। दलों को भी दलबदलुओं पर दांव लगाने से परहेज नहीं, पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मतदाताओं का आभारी होना चाहिए, जिन्होंने ज्यादातर दलबदलुओं को नकार दिया।
दलबदल की बीमारी किस तरह नासूर बनती जा रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अठारहवीं लोकसभा के चुनाव में डेढ़ सौ से भी ज्यादा दलबदलुओं पर दलों ने दांव लगाया। भाजपा ने सौ से भी ज्यादा दलबदलुओं को टिकट दिया। उत्तर प्रदेश में यह खेल बड़े पैमाने पर खेला गया। बसपा ने 11 दलबदलुओं को टिकट दिया।
जीतना तो बहुत दूर, सभी तीसरे स्थान पर रहे। पिछली बार 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली बसपा का इस बार खाता तक नहीं खुला। वैसे सपा द्वारा चुनाव मैदान में उतारे गए नौ में से सात और भाजपा द्वारा टिकट दिए गए तीन में से दो दलबदलू जीत भी गए। दिल्ली के तीन ओर बसे हरियाणा में भाजपा ने दलबदलू अशोक तंवर पर दांव लगाया, पर सिरसा के मतदाताओं ने उन्हें नकारते हुए कांग्रेस की कुमारी शैलजा को चुना। पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह तो कांग्रेस द्वारा 2021 में अपमानजनक तरीके से मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के कुछ अरसा बाद ही भाजपा में चले गए थे। उनकी सांसद पत्नी परनीत कौर लोकसभा चुनावों से कुछ ही पहले गईं।
भाजपा ने टिकट भी दे दिया, पर पटियाला के मतदाताओं ने कांग्रेस की केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुकीं परनीत कौर को तीसरे स्थान पर रखा। लुधियाना से भी भाजपा ने तीन बार के कांग्रेसी सांसद रवनीत सिंह बिट्टू पर दांव लगाया, पर मतदाताओं ने नकार दिया और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग सांसद बन गए।
झारखंड में ईडी द्वारा गिरफ्तारी के चलते मुख्यमंत्री पद से हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बावजूद जब सरकार नहीं गिरी, तब भाजपा ने उनकी भाभी सीता सोरेन से दलबदल करवाया। सीता सोरेन को दुमका से लोकसभा टिकट भी दिया, पर मतदाताओं ने नकार दिया।
प. बंगाल में तृणमूल से भाजपा में शामिल हुए पांच बड़े दलबदलुओं में से मात्र एक शुभेंदु अधिकारी जीत पाए। यह सूची बहुत लंबी बन सकती है, पर सबक यही है कि दलबदलुओं को सबक सिखाने का संकल्प खुद मतदाताओं को लेना होगा। सुखद संकेत यह है कि दलबदलुओं की चुनावी सफलता की दर लगातार गिर रही है। एक अध्ययन के मुताबिक यह दर 2014 और 2019 में क्रमश: 66.7 और 56.5 थी, जो 2024 में 32.7 रह गई यानी मतदाताओं ने दो-तिहाई दलबदलुओं को नकार दिया।