विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः सही प्राथमिकताओं को कब समझेगी सरकार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 17, 2018 08:17 IST2018-11-17T08:17:48+5:302018-11-17T08:17:48+5:30
अयोध्या में एक दिन तीन लाख दीया जलाने से एक नया रिकार्ड तो बन गया, पर सवाल देश के हर घर में विकास का दीया जलाने का है.

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः सही प्राथमिकताओं को कब समझेगी सरकार
विश्वनाथ सचदेव
ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन, बीबीसी, के एक अध्ययन के अनुसार भारत में ‘फेक न्यूज’ यानी झूठी खबरों की बाढ़-सी आई हुई है और इसका एक बड़ा कारण राष्ट्रवाद है. खबर में यह भी बताया गया है कि इस कथित राष्ट्रवाद का रिश्ता दक्षिणपंथी विचारधारा से अधिक है. इस अध्ययन के निष्कर्षो पर बहस हो सकती है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले एक अर्से में देश में राष्ट्रवाद के नाम पर ऐसा बहुत कुछ परोसा जा रहा है, जिसे जन-भावनाओं से खेलने, उनका लाभ उठाने की कोशिश कहा जा सकता है. राष्ट्रवाद का पनपना अच्छी बात है, पर राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीतिक हितों को साधने की कोशिश के खतरों को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए.
राष्ट्रवाद का एक मतलब अपने राष्ट्र पर गर्व करना होता है. यह गर्व सही चीजों पर होना चाहिए. मसलन कोई इस बात पर यदि गर्व करता है कि उसका देश दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, तो इसे छद्म गौरव ही कहा जाएगा. हां, यदि सबसे अधिक आबादी वाला देश यह भी कह सके कि उसकी आबादी दुनिया की सर्वाधिक सुखी आबादी है तो निश्चित रूप से यह गर्व की बात हो सकती है. लेकिन हमारे देश में तो इस गर्व के नए-नए रूप खोजे जा रहे हैं. मसलन, हाल ही में गुजरात में स्थापित की गई सरदार पटेल की मूर्ति को ही ले लें. यह दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है. गर्व की बात तो है यह, पर सवाल तो उठता ही है कि क्या गर्व करने का यह कारण हमारी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप है?
इसी बीच एक समाचार और भी आया है- चीन ने दुनिया का सबसे बड़ा शुद्ध वायु संयंत्न (एयर प्यूरिफायर)स्थापित किया है. शंघाई प्रांत के जियान में सौ मीटर ऊंचा वायु शुद्ध करने का टॉवर बना है, जो प्रतिदिन दस मिलियन क्यूबिक मीटर शुद्ध वायु देता है. वायु-प्रदूषण से सारी दुनिया जूझ रही है. हमारे देश की राजधानी दिल्ली शायद दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है. चीन भी इस प्रदूषण का शिकार हो रहा है. पर हमारी स्थिति कुछ भिन्न है- चीन इस बात पर गर्व करना चाहता है कि उसके पास दुनिया का सबसे ऊंचा शुद्ध वायु का संयंत्न है और हमें इस बात पर गर्व करने के लिए कहा जा रहा है कि हमारे पास दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है.
इस सबके बावजूद सबसे ऊंची मूर्ति पर गर्व किया जाना चाहिए. उपलब्धि तो है यह. सरदार पटेल देश के सबसे ऊंचे कद के नेताओं में से एक थे. इसे उनके प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में भी स्वीकारा जा सकता है. लेकिन और भी बहुत कुछ है हमारे देश में, जो दुनिया में ऊंचे स्थान का हकदार है. मसलन, भूख सूचकांक की दृष्टि से हमारा देश दुनिया में 103 वें स्थान पर है यानी सबसे भूखे राष्ट्रों में गणना होती है हमारी. हमारा लैंगिक समानता स्थान 188 देशों में 125 वां है. मानव विकास सूचकांक की सूची में हम 130 वें नंबर पर हैं. प्रति व्यक्ति जीडीपी की दृष्टि से हमारी गणना दुनिया के सबसे निचले एक तिहाई देशों में होती है. सवाल उठता है कि सरदार पटेल आज होते तो इन आंकड़ों के बारे में क्या सोचते?
सवाल प्राथमिकताओं का है. ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारा तो अच्छा है, पर सवाल क्रि यान्वयन का है. विकास की दौड़ में पीछे रह गई देश की पच्चीस करोड़ जनता इस सब में कब आएगी. इस तबके को साथ लेकर आगे बढ़ने की दिशा में क्या काम हुआ है? विधायकों और सांसदों की पेंशन की चिंता करने वाले हमारे राजनेता देश की उस जनता की चिंता कब करेंगे जिसकी दो वक्त की रोटी की गारंटी भी नहीं है? वह समय कब आएगा जब हम कह सकें कि हमारे देश का हर नागरिक भर पेट सोता है, सही शिक्षा पाता है. हर नागरिक के पास पर्याप्त काम है, हर नागरिक की बुनियादी जरूरतें पूरी होती हैं? वह समय गर्व करने का होगा.
बदलाव न मूर्ति की ऊंचाई से आएगा, न शहरों के नाम बदलकर प्राचीन गौरव प्राप्त करने के भ्रम से. बदलाव तब आएगा जब देश की आबादी का पीछे छूट गया पांचवां हिस्सा अपने आप को विकास का समान रूप से भागीदार समङोगा. आज पटेल की मूर्ति सबसे ऊंची है संभव है कल भगवान राम की मूर्ति सबसे ऊंची बने. लेकिन इस तरह की ऊंचाइयां विकास का भ्रम ही करा सकती हैं. अयोध्या में एक दिन तीन लाख दीया जलाने से एक नया रिकार्ड तो बन गया, पर सवाल देश के हर घर में विकास का दीया जलाने का है. गर्व की बात तो तब होगी जब हर घर का अंधेरा मिटेगा. राजनीति वादे भी करती है, और दावे भी. पर सही राजनीति सही प्राथमिकताओं वाली होती है.
झूठा राष्ट्रवाद एक झूठे समाज को विकसित करता है, हमें सच्चा समाज चाहिए- वह समाज जिसमें सर्वे भवंतु सुखिन: का मतलब सौ प्रतिशत का सुख हो, 80 प्रतिशत का नहीं. यह तब होगा जब हम किसी चीन से सबसे ऊंची मूर्ति नहीं, सबसे ऊंचे स्वच्छ हवा के टॉवर के लिए सहायता मांगेंगे. हमारा नेतृत्व सही प्राथमिकताओं की जरूरत कब महसूस करेगा?