अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: 'विश्व गुरु' और उसकी अंतर्निहित कमियां

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: May 31, 2024 10:57 AM2024-05-31T10:57:55+5:302024-05-31T11:00:37+5:30

भारत को ‘विश्व गुरु’ बनाने का विचार सराहनीय है। लेकिन क्या हमारे राजनीतिक नेता या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे सांस्कृतिक संगठन या शीर्ष सामाजिक और धार्मिक नेता (बाबा और गुरु) सार्वजनिक मूल्यों में लगातार और तेज गिरावट से अवगत नहीं हैं?

'Vishwa Guru' and its inherent shortcomings India | अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: 'विश्व गुरु' और उसकी अंतर्निहित कमियां

(फाइल फोटो)

Highlightsकई ऐसी घटनाएं घटी हैं जो बेहद परेशान करने वाली हैं जो बताती हैं कि भारतीय समाज और सरकारी व्यवस्थाएं कितनी बेहाल हैंएक सरसरी नजर डालने से ही प्रथम दृष्टया पता चल जाता है कि हमारी व्यवस्था कितनी सड़-गल गई है

पिछले कुछ हफ्तों में कई ऐसी घटनाएं घटी हैं जो बेहद परेशान करने वाली हैं और जो बताती हैं कि भारतीय समाज और सरकारी व्यवस्थाएं कितनी बेहाल हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी नहीं हैं, लेकिन इनमें कुछ समानताएं हैं - कानून के प्रति शून्य सम्मान, व्यवस्था की घोर विफलता और कॉर्पोरेट जगत और सरकारी या न्यायपालिका के अधिकारियों का पैसे कमाने का अंतहीन लालच। इन पर एक सरसरी नजर डालने से ही प्रथम दृष्टया पता चल जाता है कि हमारी व्यवस्था कितनी सड़-गल गई है।

* नई दिल्ली के एक निजी अस्पताल में सात शिशुओं की मौत हो गई। अस्पताल का लाइसेंस समाप्त हो चुका था; मूल लाइसेंस केवल पांच बिस्तरों के लिए था, 12 के लिए नहीं. ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर एक आयुर्वेदिक चिकित्सक था, नवजात शिशुओं की गहन देखभाल का विशेषज्ञ नहीं।

* गुजरात के राजकोट में एक मनोरंजन पार्क में आग लगने से कम से कम 33 लोगों की मौत हो गई, जहां अग्निशमन की कोई व्यवस्था नहीं थी। गुजरात उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे ‘मानव निर्मित आपदा’ बताया।

* मध्य प्रदेश में सीबीआई ने फर्जी नर्सिंग कॉलेजों के एक बड़े गिरोह का पदार्फाश किया, जिसमें सीबीआई और मध्य प्रदेश पुलिस के निरीक्षक स्वयं ही ‘भ्रष्ट’ पाए गए, क्योंकि उन्होंने दोषियों - कॉलेज मालिकों - को बचाने की कोशिश की थी।

* पुणे में नशे में धुत एक नाबालिग ने महंगी, अपंजीकृत कार चलाई और आधी रात के बाद दो विद्यार्थियों को सड़क पर मौत के घाट उतार दिया। उस ‘बच्चे’ के अमीर परिवार ने उसे बचाने की कोशिश की; पहले तो अपने ड्राइवर पर दबाव डाला कि वह यह स्वीकार करे कि कार वह चला रहा था, न कि 17 वर्षीय लड़का और फिर, सरकारी ससून अस्पताल में, पोर्श कार के मालिक अग्रवाल परिवार द्वारा कथित तौर पर रक्त के नमूनों में हेराफेरी का दबाव डाला गया. इसमें डाक्टर भी मिले हुए थे।

* महाराष्ट्र के नासिक में एक जौहरी को भारी मात्रा में बेहिसाबी नगदी के साथ पकड़ा गया, ठीक वैसे ही जैसे कुछ महीने पहले झारखंड के राजनेता को पकड़ा गया था - मोदी सरकार द्वारा काले धन पर अंकुश लगाने ( नोट बंदी) के बाद यह सब हो रहा है।

* दूरसंचार विभाग (डीओटी) एसएमएस घोटालेबाजों से जूझ रहा है, जिन्होंने 10000 धोखाधड़ी वाले संदेश भेजे - जो साइबर अपराध का एक नया तरीका है। 
शिक्षा, शहरी विकास, पर्यावरण या खाद्य विभाग आदि क्षेत्रों में अन्य गंभीर गड़बड़ियां तो इतनी आम हो गई हैं कि कोई भी अवैध मकान या हर जगह परोसे जा रहे दूषित भोजन या नकली दवाइयों की आपूर्ति आदि के बारे में बात ही नहीं करता, न सरकार कुछ करती है।

बेशक मैं अन्य शर्मनाक कृत्यों, उप्र या कर्नाटक के ‘माननीय’ सांसदों के यौन अपराधों एवं कई अन्य रोके जा सकने वाले अपराधों और बढ़ते बलात्कारों का जिक्र तो यहां कर ही नहीं रहा। भोले-भाले आम भारतीय के लिए तो कानून का शासन पूरी तरह से अदृश्य है, यह चित्र आज साफ देखने को मिलता है।

क्या उपरोक्त कुछ घटनाएं एक समाज के रूप में हमारी सामूहिक छवि को स्याह दाग से खराब नहीं करतीं - एक ऐसा समाज जहां शायद बेईमान लोग ही राज कर रहे हैं? लोकायुक्त या लोकपाल के डर के बिना हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार जम कर बढ़  रहा है, यहां तक कि भाजपा शासित सरकारों में भी और समाज असहाय है।

भारत को ‘विश्व गुरु’ बनाने का विचार सराहनीय है। लेकिन क्या हमारे राजनीतिक नेता या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे सांस्कृतिक संगठन या शीर्ष सामाजिक और धार्मिक नेता (बाबा और गुरु) सार्वजनिक मूल्यों में लगातार और तेज गिरावट से अवगत नहीं हैं? क्या उन्हें भारत की शासन प्रणाली में स्पष्ट कमियों पर शर्म नहीं आती? आखिरकार, कोई भी व्यवस्था पुरुषों और महिलाओं से ही बनती है, न कि केवल मशीनों से।

अलग-अलग शहरों और अलग-अलग क्षेत्रों से आए उपरोक्त कुछ उदाहरण इस देश में लगातार जो कुछ गलत हो रहा है, उसका एक छोटा सा हिस्सा मात्र हैं, जबकि देश को ‘विश्व गुरु’ बनाने का दिवास्वप्न दिखाया जा रहा है। क्या हम वाकई इस देश के ऐसे संदिग्ध चरित्र के साथ उस उच्च दर्जे को प्राप्त कर सकते हैं? मैं किसी एक राजनीतिक पार्टी को दोष नहीं देना चाहता या यह नहीं कहना चाहता कि सभी नागरिक और अधिकारी बेईमान हैं। ऐसे लोग भी हैं जो उच्च निष्ठा और सिद्धांतों वाले हैं. परंतु ऐसे लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।

व्यवस्था को सही व सुदृढ़ करने में विफल रहने के लिए सभी सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों को दोषी ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने देश के कानून को इतना लचर बना दिया है कि आम आदमी की पीड़ा कम होने का नाम ही नहीं लेती। हजारों लोगों को ‘ज्ञान का मार्ग’ दिखाने का दावा करने वाले तथाकथित बाबाओं और गुरुओं से भी प्रश्न किया जाना चाहिए कि वे अपने शिष्यों को सही संदेश देने में पूरी तरह विफल क्यों रहे हैं? वे लोग जो पांचसितारा आश्रमों में प्रवचनों में शामिल होते हैं, क्या संदेश लेते है? 

अधिकांश बाबा और गुरु अपने अंध भक्तों को आशीर्वाद या मुफ्त रुद्राक्ष देने के नाम पर अपने आश्रम की भूमि का विस्तार और पैसे इकट्ठा करते हुए देखे जाते हैं. नेताओं और बाबाओं का गठबंधन एक अलग व दुःखद कहानी है। ऐसी अप्रभावी व कमजोर व्यवस्थाओं, कानूनविहीन और मूल्यहीन समाज के साथ, क्या हम विश्व-गुरु के दर्जे के करीब पहुंच सकते हैं? यह समय रुकने, विचार करने और फिर ठोस कार्य करने का है जिससे कानून से लोग डरें व ‘सिस्टम’ सुदृढ़ हो सके। सरकारों को राजनीति पर कम और समाज सुधार पर अधिक ध्यान देना होगा।

Web Title: 'Vishwa Guru' and its inherent shortcomings India

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