विजय दर्डा का ब्लॉग: कमाऊ पूत बन गया है हमारा चमकदार सितारा इसरो

By विजय दर्डा | Updated: September 25, 2018 08:00 IST2018-09-25T08:00:19+5:302018-09-25T08:00:19+5:30

इसरो का गठन तो वैसे 15 अगस्त 1969 को हुआ लेकिन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह डॉ।  विक्रम साराभाई इसरो के गठन की गतिविधियां 1963 में ही शुरू कर चुके थे।  उन्हें यह जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सौंपी थी।  

Vijay Darda's blog: ISRO become our earning source | विजय दर्डा का ब्लॉग: कमाऊ पूत बन गया है हमारा चमकदार सितारा इसरो

विजय दर्डा का ब्लॉग: कमाऊ पूत बन गया है हमारा चमकदार सितारा इसरो

इस आलेख के साथ जो चित्र आप देख रहे हैं, वह अप्रैल 1975 का है। तब रॉकेट के पुर्जों को साइकिल पर और भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को बैलगाड़ी पर लादकर लांचिंग स्टेशन तक ले जाया गया था। 

 तब से लेकर अब तक भारत ने लंबी और अभूतपूर्व यात्रा की है। अब भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जो अंतरिक्ष में अपना परचम लहरा रहे हैं।  इसके लिए इंडियन स्पेस रिसर्च आॅर्गनाइजेशन (इसरो) के वैज्ञानिकों की हम जितनी भी तारीफ करें, कम है। 

 इसरो का गठन तो वैसे 15 अगस्त 1969 को हुआ लेकिन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह डॉ। विक्रम साराभाई इसरो के गठन की गतिविधियां 1963 में ही शुरू कर चुके थे।  उन्हें यह जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सौंपी थी।  

दुर्भाग्यवश साराभाई बहुत समय तक हमारे साथ नहीं रह पाए लेकिन उनके बाद प्रो सतीश धवन, प्रो उडुपी रामचंद्र राव, प्रो  यूआर  राव, जी माधवन नायर,  डॉ  के राधाकृष्णन, एएस किरण कुमार और इसरो के मौजूदा अध्यक्ष के सिवान ने इसरो को जिस ऊंचाई पर पहुंचाया है वह काबिले तारीफ है। मैं यहां पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, अटल जी और अन्य प्रधानमंत्रियों को भी याद करना चाहूंगा जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का दिल से समर्थन किया। आज सैटेलाइट भेजने के लिए दुनिया के ज्यादातर देश भारत की मदद लेते हैं।  

यह हमारी गुणवत्ता का परिचायक है।  नि:संदेह ग्लोबल  सैटेलाइट मार्केट में 41 प्रतिशत के साथ आज भी अमेरिका ही बड़ा खिलाड़ी है लेकिन हम भी तेजी से बढ़ रहे हैं और करीब 4 प्रतिशत हिस्सेदारी तो हमने भी हासिल कर ही ली है।  

इसरो अब और तेजी से छलांग लगाएगा क्योंकि अंतरिक्ष में सैटेलाइट हम सबसे कम खर्च में भेज रहे हैं।  इसे इस तरह समझें कि अमेरिका जो काम 66 रुपए में कर रहा है, वह काम भारत केवल 1 रुपए में कर रहा है। रूस भी काफी सस्ता है लेकिन वह भी हमसे चार गुना महंगा तो है ही।  

दरअसल इसरो की गुणवत्ता के साथ प्रक्षेपण स्थल श्रीहरिकोटा की ग्लोबल पोेजिशनिंग भी उसे प्रक्षेपण के लिए सबसे बेहतरीन स्थल बनाता है। अब  दुनिया भर के देश चाहते हैं कि उनका सैटेलाइट भारत भेजे। भारत पर भरोसा तेजी से बढ़ रहा है।  

पिछले साल 15 फरवरी को भारत ने अंतरिक्ष में एक साथ 104 सैटेलाइट भेजकर पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया, नया कीर्तिमान रच दिया।  उससे पहले 2014 में रूस ने एक साथ 37 सैटेलाइट प्रक्षेपित किए थे। 
 
इसरो की गुणवत्ता और क्षमता की कहानी उसके आंकड़े भी कहते हैं।  इसरो अब तक 28 से ज्यादा देशों के 239 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज चुका है।  स्पष्ट आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उपलब्ध जानकारियों के अनुसार सैटेलाइट प्रक्षेपण से इसरो अभी तक करीब 5600 करोड़ रुपए कमा चुका है।

 यानी यह भारत का कमाऊ पूत साबित हो रहा है। अभी सैटेलाइट मार्केट करीब 13 लाख करोड़ रुपए का है।  वह दिन दूर नहीं जब इसरो इस मार्केट का सबसे वजनदार खिलाड़ी बन जाएगा। 

गुणवत्ता के मामले में इसरो के वैज्ञानिकों ने वाकई कमाल किया है। जब हमें दुनिया का कोई देश टेक्नोलॉजी देने को तैयार नहीं था तब हमारे वैज्ञानिकों ने खुद पर भरोसा किया और आज हम सब यह गर्व से कहते हैं कि हमारा अंतरिक्ष अभियान वास्तव में स्वदेशी है।  

जब अत्यंत कम खर्च में हमने मंगलयान को साकार कर लिया तो दुनिया देखती रह गई। भारत से मंगल ग्रह की कक्षा की दूरी करीब 67 करोड़ किलोमीटर है और इसरो ने खर्च किए केवल 450 करोड़ रुपए।  यानी कुल जमा 6 रुपए 71 पैसे प्रति कि। मी।  का खर्च आया। 

यह नासा के खर्च से 10 गुना कम है।  इतने कम खर्च में यह काबिलियत हासिल करने की क्षमता दुनिया के किसी और देश में नहीं है।  चंद्रयान-1 की सफलता के बाद अब भारत चंद्रयान-2 की छलांग लगाने वाला है।  इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो यह घोषणा भी कर दी है कि 2022 में भारत का कोई बेटा या बेटी अपने यान से अंतरिक्ष की सैर करेगा। 

भारतीय नागरिक राकेश शर्मा हालांकि पहले अंतरिक्ष में जा चुके हैं लेकिन उन्हें लेकर जाने वाला यान सोयूज सोवियत संघ का था। अंतरिक्ष में किसी व्यक्ति को भेजने की क्षमता अभी केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास है लेकिन अब भारत भी इस काबिलियत के करीब पहुंच चुका है।  

देश उम्मीद कर रहा है कि आने वाले वर्षों में इसरो चांद पर भी भारतीय नागरिक को उतारने की क्षमता हासिल कर लेगा। अगले साल इसरो पचास साल का हो जाएगा।  अपने इस चमकते सितारे पर भारत गौरवान्वित है। 

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