विजय दर्डा का ब्लॉग: नए साल में सब मिल सृजन का नवगीत रचें..!
By विजय दर्डा | Published: December 31, 2018 05:45 AM2018-12-31T05:45:30+5:302018-12-31T05:45:30+5:30
देश की रक्षा के लिए जवान शहीद होते रहे और इधर सीमाओं की राजनीति होती रही. देश आतंकवाद की चपेट में रहा. यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि लोगों का दिल टूटा. दिल टूटने की आह बड़ी खतरनाक होती है.
हमारी भारतीय संस्कृति और परंपरा में हमेशा इस बात का जिक्र किया जाता है कि जो हमारे बीच उपस्थित न हो उसकी शिकायत नहीं करनी चाहिए. इसलिए तकाजा यही है कि 2018 की कोई शिकायत हम न करें. अब आखिरी दिन यह कहने से क्या फायदा कि सामाजिक और वैचारिक विघटन के कई बुरे दिन इसी 2018 में हमें देखने को मिले! हमें वास्तव में यह कहना चाहिए कि इस सामाजिक और वैचारिक विघटन के खिलाफ इसी बीत रहे साल में बुलंद आवाजें भी उठीं.
निश्चय ही इन बुलंद आवाजों का श्रेय मैं सन् 2018 को देता हूं. मुङो उम्मीद है कि बुलंद आवाजों की जो शुरुआत हुई है वह 2019 में परवान चढ़ेगी और बेहतर कल की ओर हम सबके पांव बढ़ते चले जाएंगे.
हां, 2018 के संदर्भ में यह तो जिक्र करना ही होगा कि उम्मीदें अधूरी रह गईं. उम्मीद थी कि हर हाथ को काम मिले, अनाज का दाम मिले, धरती मालामाल हो जाए. युवा नई खोज की राह देखते रहे. परेशानहाल किसान और मजदूर उम्मीद करते रहे कि कोई उनकी समस्याओं पर भी ध्यान दे. छोटे व्यापारी ब्यूरोक्रेसी से मुक्ति चाहते रहे. भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले उद्योगपति परेशान होते रहे और अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाले उद्योगपति मौज में रहे. लोगों की दिवाली और होली खराब हो गई.
देश की रक्षा के लिए जवान शहीद होते रहे और इधर सीमाओं की राजनीति होती रही. देश आतंकवाद की चपेट में रहा. यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि लोगों का दिल टूटा. दिल टूटने की आह बड़ी खतरनाक होती है. तीन राज्यों के चुनाव में लोगों ने अपने गुस्से का इजहार कर दिया. उम्मीद करें 2019 उम्मीदों को पूरा करने वाला वर्ष बने.
तकनीक के क्षेत्र में जिस तेजी से हमारे कदम बढ़ रहे हैं, उसी तेजी से हम सामाजिक समरसता की ओर भी वापस लौटें, यह उम्मीद मैं 2019 से कर रहा हूं. मैं ‘वापस लौटें’ शब्द का उपयोग इसलिए कर रहा हूं क्योंकि सामाजिक समरसता हमारी सांस्कृतिक पहचान रही है. इसी की बदौलत हजारों हजार साल से हमारी संस्कृति जिंदा है. हमारी संस्कृति पर न जाने कितने हमले हुए लेकिन हस्ती है कि मिटती नहीं हमारी! तो इसका कारण हमारे समाज के उस ताने-बाने में छिपा है जो सबको जोड़कर रखता रहा है.
कुछ उपद्रवी सोच समय-समय पर इसे विखंडित करने की कोशिश करती रही हैं लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारा समाज अपने ताने-बाने को दुरुस्त कर लेता है. सृजन ही हमारी ताकत है. जब हमें आजादी मिली थी तब भी समाज बुरी तरह टूटा था लेकिन हम फिर सही-सलामत रास्ते पर आ गए! इसलिए आ गए क्योंकि हमने धर्मनिरपेक्षता का रास्ता चुना. इसे नष्ट करने की कोशिशें हिंदुस्तान में कभी सफल नहीं हो सकतीं, यह मेरा दृढ़
विश्वास है.
बीत रहे साल के प्रति मैं शुक्रिया इसलिए कहना चाहता हूं क्योंकि इस साल तकनीक के कई तोहफे भी हमें मिले हैं. कश्मीर में 14 किलोमीटर लंबा जोजिला पास टनल और असम के बोगीबील में 4.9 किलोमीटर लंबा रेल व सड़क मार्ग हमें मिला है. इसरो ने सैटेलाइट छोड़ने का कीर्तिमान कायम किया है और 2018 के आखिरी हफ्ते में ही गगनयान प्रोजेक्ट को मंजूरी भी मिली जिसमें तीन भारतीयों को अपने यान में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. ऐसे साल से कोई शिकवा क्यों करें?
चलिए, अब हम आने वाले कल की बात करें. नववर्ष की बात करें. नए संकल्पों की बात करें. एक बेहतर इंसान, एक बेहतर परिवार और बेहतर समाज का निर्माण करेंगे तो देश स्वाभाविक तौर पर बेहतर होता चला जाएगा. सृजन का यह नवगीत रचने के लिए हम सबको निजी स्तर पर प्रयास करने होंगे. हम केवल यही सोचते रहे कि हमारे अकेले से क्या होगा तो गीत के स्वर कभी उभर नहीं पाएंगे.
कुछ छोटी-छोटी बातें हैं जिन्हें हम बेहतर समाज की रचना के लिए टूल्स के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. मुङो लगता है सबसे पहली जरूरत तो स्वयं को स्वस्थ रखने की है, सुरक्षित रखने की है. हमारी युवा पीढ़ी में जोश और बुद्धि तो बहुत है लेकिन स्वास्थ्य के मामले में पिछड़ापन नजर आता है. इसका सबसे बड़ा कारण वर्जिश से दूर होते जाना है. नतीजा यह है कि हमारी युवा पीढ़ी में भी मधुमेह जैसी बीमारी तेजी से फैल रही है. जवानी जब ढलती है तब पछतावा होता है कि हमने वर्जिश क्यों नहीं किया? तो हमारी युवा पीढ़ी को संकल्प लेना चाहिए कि थोड़ा वक्त अपने शरीर के लिए भी निकालें. स्वस्थ युवा ही देश की असली पूंजी हैं!
बेहतर व्यक्तित्व के लिए जितना महत्वपूर्ण स्वास्थ्य है, उतना ही महत्वपूर्ण है स्वयं का अनुशासन. हमारे समाज में इसकी कमी होती जा रही है. अनुशासन तोड़ने की पहली शुरुआत वक्त से होती है. हिंदुस्तान में कम लोग हैं जो वक्त के पाबंद होते हैं. जब आप अनुशासित होंगे तो बेवजह की बेचैनी और हड़बड़ी आपके भीतर नहीं होगी. हड़बड़ी नहीं होगी तो सड़क पर वाहन दौड़ाते हुए आप बेलगाम नहीं होंगे और दुर्घटना से बचेंगे. क्या आपको पता है कि भारत में हर घंटे 16 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और इनमें से ज्यादातर युवा होते हैं? नए साल में संकल्प लीजिए कि बाइक चलाने से पहले हेलमेट पहनेंगे और बिना सीटबेल्ट के कार में नहीं बैठेंगे!
नए साल में एक और संकल्प लीजिए कि चाहे आप किसी भी उम्र में हों, कुछ पढ़िए जरूर. मानसिक स्वास्थ्य के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है. बहुत सारी बुराइयां अशिक्षा से आती हैं. अपने आसपड़ोस को भी शिक्षित जरूर कीजिए. लेकिन साथ में कबीरदास की इन पंक्तियों को अपने जेहन में हर वक्त रखिए..
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय/ ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय!
कहने का आशय यह है कि अपने भीतर प्रेम पैदा कीजिए. प्रकृति के लिए प्रेम, पशु-पक्षियों के लिए प्रेम, कीट-पतंगों के लिए प्रेम, हर इंसान के प्रति प्रेम! हम सब प्रेम व स्नेह की डोर में बंधेंगे तभी बेहतर समाज के सृजन का नवगीत रचेंगे. मैं उम्मीद करता हूं कि नए साल में हम सबकी व्यक्तिगत स्वतंत्नता कायम रहे. मीडिया लोकतंत्न की रखवाली करता रहे.
आप सबको नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं.