विजय दर्डा का ब्लॉगः आर्म्स फॉर पीस, लेकिन चाहिए बेहतर आर्म्स!

By विजय दर्डा | Updated: June 10, 2019 06:29 IST2019-06-10T06:29:04+5:302019-06-10T06:29:04+5:30

आज के आधुनिक युग में विमान का गायब होना और इतनी टेक्नोलॉजी होते हुए उसका पता नहीं चलना घनघोर आश्चर्य का विषय है. 

Vijay Darda's blog: Arms for Peace, but better Arms! | विजय दर्डा का ब्लॉगः आर्म्स फॉर पीस, लेकिन चाहिए बेहतर आर्म्स!

विजय दर्डा का ब्लॉगः आर्म्स फॉर पीस, लेकिन चाहिए बेहतर आर्म्स!

Highlightsजवाहरलाल नेहरू के समय से लेकर अब तक हमारा नारा आर्म्स फॉर पीस रहा है और यही रहेगा भी.आश्चर्यजनक है कि अत्याधुनिक युग में भी हम ज्यादातर 1960 और 70 के दशक के विमानों के भरोसे चल रहे हैं.

पिछले सप्ताह असम के जोरहाट से उड़कर अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा पर गायब हुए एएन-32 मालवाहक विमान का अभी तक कोई पता नहीं चला है. इसमें 13 लोग सवार थे. इससे पहले 2009 में इसी इलाके में एक विमान लापता हुआ था. 2016 में पोर्ट ब्लेयर के पास भी एक एएन-32 लापता हो गया था. उन दोनों विमानों का भी आज तक कुछ पता नहीं चला. जरा कल्पना कीजिए कि ऐसी ही कोई घटना यदि अमेरिका में हुई होती तो तूफान मच चुका होता. सरकार भी गिर जाती तो कोई आश्चर्य नहीं!  वहां जान की कीमत है लेकिन हमारे यहां तो इसे लेकर कोई गंभीर सवाल भी खड़ा नहीं हो रहा है. आज के आधुनिक युग में विमान का गायब होना और इतनी टेक्नोलॉजी होते हुए उसका पता नहीं चलना घनघोर आश्चर्य का विषय है.

जवाहरलाल नेहरू के समय से लेकर अब तक हमारा नारा आर्म्स फॉर पीस रहा है और यही रहेगा भी. हमने परमाणु विस्फोट भी किया तो शांति के लिए ही किया. तब हमारे दोस्त जापान ने हम पर प्रतिबंध लगा दिया था और उसे समझाने के लिए जाने वाले अशासकीय दल में मैं भी शामिल था. लेकिन आर्म्स फॉर पीस का मतलब यह कतई नहीं कि हम कमजोर रहें और सेना की जरूरतों को नजरअंदाज करें. आश्चर्यजनक है कि अत्याधुनिक युग में भी हम ज्यादातर 1960 और 70 के दशक के विमानों के भरोसे चल रहे हैं. वक्त के साथ टेक्नोलॉजी नहीं बदलने का ही परिणाम है कि अब तक मिग सीरीज के 500 से ज्यादा विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं. केवल मिग-21 की ही 210 दुर्घटनाएं हुई हैं. मिग-21 को तो अब उड़न ताबूत भी कहा जाने लगा है. 

विडंबना देखिए कि हम अभी भी इससे मुक्ति नहीं पा पाए हैं. हमेशा यही कहा जाता है कि विमानों का अपग्रेडेशन हो रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल अपग्रेडेशन से काम चलेगा? जो विमान 1960 या 1970 में बने उनकी टेक्नोलॉजी बहुत पुरानी हो चुकी है. नई टेक्नोलॉजी उसमें जोड़ भी दें तो वह काम के लायक भले ही हो जाएगा लेकिन अत्याधुनिक तो नहीं ही होगा. 

वैसे अपग्रेडेशन के मामले में भी भारत का रिकार्ड बहुत खराब है. जो विमान अभी लापता हुआ है, उस सीरीज के 100 विमान हमने सोवियत संघ से खरीदे थे. उनकी उम्र 35 साल से ज्यादा हो चुकी है. 2002 में यह सवाल उठा था कि एएन-32 विमानों को बदला जाए या अपग्रेड किया जाए? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अपग्रेडेशन का निर्णय लेने में ही दस साल लग गए. सभी विमानों का अपग्रेडेशन अभी तक नहीं हो पाया है. मामला केवल एएन-32 का ही नहीं है. इससे भी पुराने विमान हॉकर सिडले एवरो 748 की स्थिति भी सवालों के घेरे में रही है. इसे उड़ाना खतरनाक हो चुका है क्योंकि यह 1960 का विमान है. इसे बदलने की फाइल कोई 10 साल से धूल खा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण रक्षा सौदों को लेकर उठने वाला विवाद ही है. जब भी कोई रक्षा सौदा होता है तो विपक्षी पार्टियां सवाल खड़ा करती हैं. आपको याद होगा कि राजीव गांधी के समय बोफोर्स सौदे को लेकर पूरे देश में इतना तूफान मचा था कि राजीव गांधी की सरकार तक चली गई. ध्यान देने वाली बात है कि उसी बोफोर्स की बदौलत हम कारगिल की जंग जीत पाए. 

स्वाभाविक सी बात है कि यदि हम अपने आप को आर्थिक और रक्षा मामलों में शक्तिशाली नहीं बनाएंगे तो खुद की रक्षा कैसे कर पाएंगे? आज हमारी सेना के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. हम केवल एयरफोर्स की ही तुलना करें तो पड़ोसियों के मुकाबले हम कमजोर होते जा रहे हैं क्योंकि वायु सेना की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं. भारत के पास 42 स्क्वाड्रन स्वीकृत हैं लेकिन मौजूदा दौर में हमारे पास हैं केवल 31 स्क्वाड्रन. चीन के पास अभी 42 और पाकिस्तान के पास 22 स्क्वाड्रन हैं. रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि विमानों की खरीद नहीं हुई तो 2022 तक हमारे पास केवल 26 स्क्वाड्रन रह जाएंगे जबकि पाकिस्तान के पास 25 स्क्वाड्रन होंगे. यानी हमारी स्थिति बहुत कमजोर हो जाएगी. 

जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब मैंने संसद में कहा था कि यदि अपनी सेना का हम आधुनिकीकरण नहीं कर सकते तो फिर सेना खत्म ही क्यों नहीं कर देते? जैसा कि स्विट्जरलैंड में है! आधुनिकीकरण के बिना सेना का मतलब क्या है? 

निजी तौर पर मैं कभी युद्ध का पक्षधर नहीं रहा. मैं शांति का पक्षधर हूं, लेकिन आज के दौर में यदि आपके पास शक्ति नहीं है तो कोई भी आंखें दिखाने लगेगा. हमारे पड़ोस में चीन और पाकिस्तान जैसे देश हैं जिनसे खुली दुश्मनी है. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल भी भरोसेमंद दोस्त नहीं रहे. ऐसी स्थिति में हमें अपने आपको मजबूत करना ही होगा. नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत से जीतकर आए हैं और वे हर तरह के फैसले लेने में सक्षम हैं. मुङो लगता है कि उन्हें किसी विवाद की परवाह किए बगैर सभी पेंडिंग रक्षा सौदों को ग्रीन सिग्नल देना चाहिए. रक्षा सौदों से जुड़े डर से बाहर आना सबसे पहली जरूरत है. इसके साथ ही हथियारों के मामले में भी हमें मेक इन इंडिया का रास्ता अपनाना चाहिए. हम अपना सैटेलाइट मंगल ग्रह पर भेज सकते हैं, मानव को चांद पर उतारने की तैयारी शुरू कर सकते हैं तो अत्याधुनिक हथियार क्यों नहीं बना सकते! जरूरत केवल दृढ़ इच्छाशक्ति की है. 

Web Title: Vijay Darda's blog: Arms for Peace, but better Arms!

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