विजय दर्डा का ब्लॉग: संकटों के बीच भारत के लिए यह बड़ा अवसर है

By विजय दर्डा | Published: April 27, 2020 06:43 AM2020-04-27T06:43:29+5:302020-04-27T06:43:29+5:30

कोरोना से जिस तरह से भारत ने जंग लड़ी है उससे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के प्रति दुनिया में विश्वास का वातावरण भी है. वे यदि कंपनियों को बुलाएंगे तो कंपनियां जरूर आएंगी. और सबसे अच्छी बात यह है कि हमारे पास न कच्चे माल की कमी है, न संसाधनों की कमी है और न ही श्रम का अभाव है. हम दुनिया के लिए बहुत बड़ा  बाजार भी हैं. कंपनियों को यही तो चाहिए!

Vijay Darda blog: This is a big opportunity for India in the midst of crises | विजय दर्डा का ब्लॉग: संकटों के बीच भारत के लिए यह बड़ा अवसर है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

एक बड़ी पुरानी कहावत है कि अंधेरा जरूर छंटता है और उजाला फिर फैलता है. तो इस मौजूदा संकट काल में पूरी दुनिया भी यही उम्मीद कर रही है. हमारे लिए उम्मीद बड़ी हो सकती है, यदि हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तैयार हो जाएं.

कोविड-19 के फैलाव को लेकर पूरी दुनिया चीन से नाराज चल रही है और इसी बीच में एक बड़ी खबर आई कि करीब 1000 कंपनियों ने वहां से निकलकर भारत में पांव जमाने की इच्छा जाहिर की है. इनमें से करीब 300 कंपनियों की तो किसी न किसी स्तर पर भारत सरकार से बातचीत भी शुरू हो गई है. यदि हम इन कंपनियों को अपने यहां ला पाने में सफल रहे तो हमारी आर्थिक स्थिति तो सुधरेगी ही, हम एक बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में दुनिया में अपनी जगह भी बना पाने में कामयाब होंगे. 17वीं शताब्दी में भारत दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत था. हम फिर से वही हैसियत प्राप्त कर सकते हैं.

जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने तो अपनी कंपनियों को चीन से बाहर निकालने की अपनी इच्छा का इजहार भी कर दिया है. जापान तो ऐसी कंपनियों को बड़ा आर्थिक पैकेज भी देने को तैयार है. जाहिर सी बात है कि चीन से निकलने वाली कंपनियों के लिए भारत एक बेहतर विकल्प है. कोरोना से जिस तरह से भारत ने जंग लड़ी है उससे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के प्रति दुनिया में विश्वास का वातावरण भी है. वे यदि कंपनियों को बुलाएंगे तो कंपनियां जरूर आएंगी. और सबसे अच्छी बात यह है कि हमारे पास न कच्चे माल की कमी है, न संसाधनों की कमी है और न ही श्रम का अभाव है. हम दुनिया के लिए बहुत बड़ा  बाजार भी हैं. कंपनियों को यही तो चाहिए!

मगर इन कंपनियों को भारत की तरफ आकर्षित करने के लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाने होंगे. सबसे पहली चीज है व्यवसाय करने की सहूलियत देना यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस! वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार हम 63वें पायदान पर हैं. हमारे भीतर तमन्ना ये होनी  चाहिए कि हम शुरुआती 10 देशों में हों. आखिर तानाशाहीपूर्ण वामपंथी शासन के बावजूद चीन 31वें स्थान पर है. छोटे-छोटे देश इस क्रम में हमसे बहुत ऊपर हैं. हमें ऊपर आना है तो सरकारी कार्यप्रणाली में आमूूलचूल परिवर्तन लाना होगा.

सबसे पहली जरूरत लेबर लॉ  में परिवर्तन करके उसे उद्योगों के अनुरूप बनाना होगा. आसान तरीके से जमीन उपलब्ध करानी होगी, अबाधित और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना होगा, सुरक्षा की बेहतरीन व्यवस्था करनी होगी. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना होगा, बैंकों को काम करने की आजादी देनी होगी. अभी तो उन्हें जांच एजेंसियों का भय सताता रहता है (बैंकों को आश्वासन मिला है लेकिन उनमें विश्वास नहीं है). ये सारी व्यवस्थाएं करेंगे तभी उद्योग आकर्षित होंगे. उद्योगों को विश्वास दिलाना होगा कि यह सब स्थायी है. टेलीकॉम के मामले में उद्योग जगत ने यह महसूस किया है कि जिन सहूलियतों का वादा किया गया था वे पूरी नहीं हुईं. यह स्थिति ठीक नहीं है. हमें ध्यान रखना होगा कि दोनों हाथों को काम केवल और केवल उद्योग ही दे सकते हैं.

मैंने संसद में यह मुद्दा उठाया था कि अपनी नीतियों में कमी के कारण हम हार्डवेयर सेक्टर में पिछड़ते चले गए और चीन अपनी नीतियों के कारण हार्डवेयर उद्योगों को अपने यहां आकर्षित करने में सफल हो गया. जब हम सॉफ्टवेयर के मामले में दुनिया में वर्चस्व कायम कर सकते हैं तो हमारी क्षमता हार्डवेयर में भी वर्चस्व स्थापित करने की है लेकिन नीतियां साथ नहीं देतीं इसलिए हम पिछड़ गए हैं.

महाराष्ट्र के लिए तो यह और भी बड़ा अवसर है. ज्यादातर बड़े उद्योगपति महाराष्ट्र में हैं. यहां मुकेश अंबानी हैं, टाटा हैं, आनंद महिंद्रा हैं, कुमार मंगलम बिड़ला हैं, सचिन जिंदल हैं, यूनीलीवर के संजीव मेहता हैं, बजाज ग्रुप है, गौतम सिंघानिया हैं, फायनांस सेक्टर के धुरंधर दीपक पारेख और उदय कोटक हैं. और भी बहुत सारे नाम हैं जिनकी क्षमता का उपयोग किया जा सकता है.

हमारे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सभी से संबंध हैं. उन्हें वित्त मंत्री और उद्योग मंत्री को साथ में लेकर एक ऐसा पूल बनाना चाहिए जो इस बात पर ध्यान केंद्रित करे कि महाराष्ट्र में औद्योगिक निवेश ज्यादा से ज्यादा कैसे आए. इस काम में उद्धवजी को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, देवेंद्र फडणवीस और पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा उद्योगपति प्रफुल्ल पटेल को भी शामिल करना चाहिए. उद्धवजी की हर दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत होती रहती है. केंद्रीय स्तर पर भी उन्हें सहयोग मिलेगा. स्वाभाविक तौर पर इस मामले में सभी नेता राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे. आखिर अपने प्रदेश का विकास कौन नहीं चाहता?

उद्धवजी के साथ बहुत अच्छे अधिकारियों की टीम भी है. हमारे पास कर्मठ चीफ सेक्रेटरी अजय मेहता हैं और उनकी पूरी टीम है. खासतौर पर मैं प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंडस्ट्री वेणु गोपाल रेड्डी और उद्योग विकास आयुक्त हर्षदीप कांबले की चर्चा करना चाहूंगा. वेणु गोपाल रेड्डी को मैंने नागपुर में कमिश्नर के रूप में और हर्षदीप कांबले को यवतमाल में कलेक्टर के रूप में काम करते हुए बहुत करीब से देखा है और मैं कह सकता हूं कि इनकी क्षमताएं अपार हैं.

महाराष्ट्र का पॉजिटिव प्वाइंट ये है कि यहां योग्य और समर्पित अधिकारियों की बड़ी टीम है. उद्योगों को आकर्षित करना है तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को प्रो-एक्टिव होना होगा, उद्योगों के लिए सिंगल विंडो प्रणाली को कारगर बनाना होगा, तभी सफलता मिल सकती है. किया मोटर्स और मारुति के महाराष्ट्र से चले जाने को हम कैसे भूल सकते हैं. ऐसे उद्योगों की तो हमें अगवानी करनी चाहिए.  

मेरे मन में यह खयाल आ रहा है कि इस वक्त दुनिया को बड़े पैमाने पर पीपीई (सुरक्षा कवच), मास्क और सैनिटाइजर की जरूरत है. ऐसे कम से कम पचास प्रोडक्ट को हम आइडेंटिफाई कर सकते हैं और महाराष्ट्र में उसका उत्पादन करके देश की जरूरतें भी पूरी कर सकते हैं तथा दुनिया भर को सप्लाई कर सकते हैं. जरूरत इच्छाशक्ति की है. इसका लाभ विदेशी पूंजी निवेश में भी मिलेगा क्योंकि कंपनियां जब भारत आएंगी तो वे यह जरूर देखेंगी कि भारत का कौन सा राज्य उनके लिए ज्यादा बेहतर साबित हो सकता है. हमें अवसर गंवाना नहीं चाहिए.

Web Title: Vijay Darda blog: This is a big opportunity for India in the midst of crises

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