विजय दर्डा का ब्लॉग: इन मयखानों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं..!

By विजय दर्डा | Published: May 11, 2020 06:51 AM2020-05-11T06:51:56+5:302020-05-11T06:51:56+5:30

पियक्कड़ों ने सरकार के लालची हो जाने का भी बुरा नहीं माना. अगले दिन शराब की कीमत 70 फीसदी तक बढ़ चुकी थी लेकिन जांबाज कहां पीछे हटने वाले थे. वे फिर दुकानों के सामने डटे थे! अब कहने वाले भले ही यह कहते रहें कि शराब की दुकानें खोलने से लॉकडाउन का तो लक्ष्य ही खत्म हो गया! शराबियों का तो एकमात्र लक्ष्य है कि इस कोरोना काल में जब सरकारों के सामने पैसे की किल्लत हो गई है तो पूरी क्षमता के साथ खजाने की मदद की जाए! सरकार को भी इन तलबगारों पर पूरा भरोसा रहता है.

Vijay Darda blog: There are thousands of liquor lovers of wine shops..! | विजय दर्डा का ब्लॉग: इन मयखानों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं..!

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

जहां देखो, वहीं लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर मदिरा की दुकानें खोलने की क्या जल्दी थी? भाई ये सवाल ही गलत है. आप नहीं पीते तो क्या आप यह चाहते हैं कि हमारी सरकार पियक्कड़ों का ध्यान ही न रखे! क्यों न रखे भाई? वो भी इस देश के नागरिक हैं. उनका भी अधिकार है! अजी किसने कहा कि वे अपने लिए पीते हैं? वो तो राष्ट्र निर्माण  के लिए पीते हैं. क्या आपको पता है कि कई राज्य सरकारों के खजाने के लिए 10 से 15  प्रतिशत हिस्सा पियक्कड़ों के हलक से बाहर निकलता है!

अपने महाराष्ट्र में यह आंकड़ा थोड़ा कम है. कम इसलिए नहीं है कि यहां कोई पंकज उधास की बात मान रहा है कि ‘हुई महंगी बहुत शराब कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो’!  यहां पीते तो तबियत से ही हैं लेकिन सरकार मेहरबान है. टैक्स थोड़ा कम है. यानी तलबगारों ने अर्थव्यवस्था में अपनी तरफ से सहयोग में कोई कमी नहीं रखी है. जहां भी कमी है, सरकार की तरफ से है. गुजरात में, वर्धा में, चंद्रपुर में और दूसरी जगहों पर गांधी का नाम लेकर ‘तलब लगने’ को गुनाह बना दिया तो क्या फर्क पड़ गया? 
तलबगारों ने तो सहयोग जारी ही रखा! अब ये अलग बात है कि राज्य को मुनाफा न मिला, मुनाफा अवैध कारोबारियों और उन्हें संरक्षण देने वालों की जेब में चला गया! जाहिर सी बात है कि मदिरा प्रेमियों की मेहरबानी पर शंका करना ठीक नहीं है! ..और ये अन्ना हजारे और डॉ. अभय बंग कितना भी आंदोलन कर लें, कोई फर्क नहीं पड़ता! शराबी गैंग किसी से कमजोर नहीं पड़ती! लॉकडाउन में क्या ये गैंग कमजोर पड़ी? जी नहीं, 500 की बोतल 5 हजार में खरीदने से पीछे नहीं हटी!  

करीब 41 दिन बाद शराब की दुकानें खुलीं तो कोरोना वायरस से बिना डरे ये जांबाज दुकानों की तरफ उमड़ पड़े. उधर अमेरिका ने अपने सैटेलाइट से देखा तो वहां जैसे हंगामा मच गया. अमेरिका को लगा कि भारत ने चोरी-छिपे कोरोना की कोई दवाई बना ली है या जड़ी-बूटी ढूंढ़ ली है. अमेरिका में इमर्जेसी मीटिंग हुई, तत्काल जांच-पड़ताल की गई तो पता चला कि ये तो पियक्कड़ों की भीड़ है.

पियक्कड़ों ने सरकार के लालची हो जाने का भी बुरा नहीं माना. अगले दिन शराब की कीमत 70 फीसदी तक बढ़ चुकी थी लेकिन जांबाज कहां पीछे हटने वाले थे. वे फिर दुकानों के सामने डटे थे! अब कहने वाले भले ही यह कहते रहें कि शराब की दुकानें खोलने से लॉकडाउन का तो लक्ष्य ही खत्म हो गया! शराबियों का तो एकमात्र लक्ष्य है कि इस कोरोना काल में जब सरकारों के सामने पैसे की किल्लत हो गई है तो पूरी क्षमता के साथ खजाने की मदद की जाए! सरकार को भी इन तलबगारों पर पूरा भरोसा रहता है. भरोसा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के सोलह बड़े राज्यों ने 2020-21 के बजट अनुमान में बताया था कि वे मदिरा से कुल मिलाकर 1.65 लाख करोड़ रुपए राजस्व हासिल करना चाहते हैं.

..और सबसे बड़ी बात यह है कि पियक्कड़ कभी निराश भी नहीं करता! 2019 में राज्यों को 2.48 लाख करोड़, 2018 में 2.17 लाख करोड़ और 2017 में 1.99 लाख करोड़  रुपए पियक्कड़ों ने दिए. लॉकडाउन के प्रारंभिक 40 दिनों के दौरान राज्यों को शराब न बिकने के कारण करीब 27 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. यानी हर दिन औसतन 679 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. इसके लिए लॉकडाउन जिम्मेदार है. 

तलबगार तो सरकार का खजाना भरने के लिए एक पांव पर खड़े थे. सरकार ही मौका नहीं दे रही थी. देखिए, मौका दिया तो किस कदर कूदते-फांदते शराब की दुकानों तक जा पहुंचे! अरे हां, मैं यह तो भूल ही गया कि शराब की होम डिलिवरी की बात भी हो रही है! अब यह सरकार से कौन पूछे कि अखबार घर तक पहुंचने से यदि कोरोना पहुंचेगा तो शराब पहुंचने से क्या अमृत छलकेगा?

बहरहाल, शराबियों की और भी बहुत सारी खासियतें हैं जिन्हें अमूमन दरकिनार किया जाता है. अब देखिए न! पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें थोड़ी सी बढ़ जाती हैं तो लोग हाय-तौबा मचाने लगते हैं लेकिन हमारी शराबी कौम कभी कोई एतराज नहीं करती. क्या कभी आपने शराबियों को शराब की महंगाई के खिलाफ मोर्चा निकालते हुए देखा है? नहीं देखा होगा क्योंकि हमारे देश के तलबगार बहुत सहनशील हैं.

देश को गर्व करना चाहिए कि हमारे शराबी बड़े जिगर वाले हैं. बिल्कुल निडर हैं. वे इस बात से कभी नहीं घबराते कि शराब पीने से उनका फेफड़ा खराब हो जाएगा या किडनी पर कोई असर होगा! विश्व स्वास्थ्य संगठन भले ही कहता हो कि एक दिन में साढ़े सात यूनिट यानी 187.5 मिलीलीटर से ज्यादा शराब पीना ओवरड्रिंकिंग है, हमारे ज्यादातर मधुसारथियों का तो इससे आचमन तक नहीं होता! छक कर पीते हैं ताकि कोई ये न कहे कि अंगूर की बेटी से मोहब्बत करने वाला कमजोर जिगर का है! मोहब्बत करने वाले तो किसी भी सीमा तक जा सकते हैं.

वे इन आंकड़ों से नहीं डरते कि लिवर सिरोसिस से हर साल एक लाख चालीस हजार लोगों की जान चली जाती है या शराब पीकर ड्राइविंग से करीब एक लाख लोग मर जाते हैं या दूसरों को मार डालते हैं. ऐसे मदिरा प्रेमी भला कोरोना से क्या डरेंगे? आपने तस्वीरों में देखा होगा कि शराब दुकानों के आगे धक्कामुक्की से उन्हें कोरोना भी नहीं डरा पाया! दुकानों पर एक दूसरे के इतने करीब थे कि प्यार बस फूटने ही वाला था. अरे भाई! मधुशाला लिखते वक्त हरिवंश राय बच्चन को भी पता नहीं होगा कि उनकी मधुशाला को लोग इस कदर ‘समझ’ लेंगे.. मेल कराती मधुशाला!

समस्या यह है कि अंगूर की बेटी के बहुत से चाहने वालों को अपनी मोहब्बत के इजहार का अभी मौका नहीं मिल रहा है. रेड जोन ने अड़ंगा डाल रखा है. ऐसे ही किसी दिल जले की पंक्तियां सोशल मीडिया पर घूम रही हैं. किसने लिखा पता नहीं..

मैं रेड जोन का बंधक,
तुम ग्रीन जोन की मधुशाला.
हृदय विदारक चाहत मय की,
जब तक खाली मेरा प्याला.
कब तक ये लक्ष्मण रेखाएं,
तरसाएंगी कब तक हाला.
मैं रेड जोन का बंधक
तुम ग्रीन जोन की मधुशाला!

तो चलिए एक गाना गाते हैं- झूम बराबर झूम शराबी..!

Web Title: Vijay Darda blog: There are thousands of liquor lovers of wine shops..!

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे