विजय दर्डा का ब्लॉग: कोरोना के साथ उपजा जैविक युद्ध का सवाल!

By विजय दर्डा | Published: February 10, 2020 05:35 AM2020-02-10T05:35:10+5:302020-02-10T05:35:10+5:30

जैविक हथियार का इतिहास बहुत पुराना है. 1932 में जापान ने चीन पर हवाई जहाज से कुछ कीटाणुओं से संक्रमित गेहूूं के दानों का छिड़काव किया था. उसके बाद वहां फैले प्लेग ने करीब 3 हजार चीनियों की जान ले ली थी. जैविक हथियारों को सबसे खतरनाक इसलिए माना जाता है कि वे कुछ ही समय में एक बड़े क्षेत्र को बीमार कर देते हैं और बहुत सारे लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं.

Vijay Darda blog: The question of biological warfare with Coronavirus! | विजय दर्डा का ब्लॉग: कोरोना के साथ उपजा जैविक युद्ध का सवाल!

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

कोरोना वायरस के कहर के बीच कुछ बातें ऐसी हैं जिन पर गौर करें तो भयावह तस्वीर उभरकर सामने आती है. अमेरिकी सीनेटर टॉम कॉटन ने यह कह कर सनसनी फैला दी है कि चीन ने वुहान के सीफूड मार्केट से कोरोना वायरस के फैलने की बात करके दुनिया को बरगलाने की कोशिश की है. हो सकता है कि यह वायरस वुहान की ही ‘सुपर लेबोरेटरी’ वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से निकला हो! टॉम ने कोई प्रमाण तो नहीं दिया है लेकिन उनकी बात को सिरे से दरकिनार भी नहीं किया जा सकता. चीन के रवैये और वुहान सेंट्रल हॉस्पिटल के डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत ने बहुत गहरा संदेह पैदा किया है.

डॉक्टर वेनलियांग ने अपने सहकर्मियों को दिसंबर में ही बताया था कि एक गंभीर किस्म का वायरस फैला है जिसका इलाज हमारे पास नहीं है. यह तब की बात है जब वुहान में कोरोना के मरीज अस्पताल पहुंचने लगे थे. वेनलियांग ने सोशल मीडिया पर भी इसके बारे में लिखा. इसके बाद 1 जनवरी 2020 को पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. उन्हें 3 जनवरी को तब छोड़ा गया जब उन्होंने लिखकर दिया कि जो उन्होंने कहा था वह गलत था. इसके बाद वे अस्पताल लौटे लेकिन अभी पिछले सप्ताह कोरोना वायरस ने ही उनकी जान ले ली! सवाल यह है कि चीन ने आखिर उन्हें हिरासत में क्यों लिया था जबकि कोरोना महामारी का रूप ले चुकी थी? क्या चीन कुछ छिपाना चाहता था जिसे डॉक्टर वेनलियांग जानते थे? सच्चई जो भी हो, कहीं यह चर्चा तो होने ही लगी है कि चीन इसे अपनी सुपर लेबोरेटरी वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में विकसित कर रहा था जो गलती से बाहर आ गया!

दरअसल ये आशंका इसलिए व्यक्त की जा रही है क्योंकि इस वक्त दुनिया जैविक हथियारों को लेकर भारी चिंता में है. अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन जैसे देश पहले ही जैविक हथियार ईजाद कर चुके हैं. उत्तर कोरिया भी तेजी से जैविक हथियार बना रहा है. एक देश से दूसरे देश में जैविक हथियारों की स्मगलिंग का भी खतरा बना हुआ है. अभी पिछले सप्ताह ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रमुख चाल्र्स लीवर को चीन की मदद के मामले में गिरफ्तार किया गया तो सवाल उठा था कि क्या चीन ने अमेरिका तक पैठ बना ली है?

जैविक हथियार का इतिहास बहुत पुराना है. 1932 में जापान ने चीन पर हवाई जहाज से कुछ कीटाणुओं से संक्रमित गेहूूं के दानों का छिड़काव किया था. उसके बाद वहां फैले प्लेग ने करीब 3 हजार चीनियों की जान ले ली थी. जैविक हथियारों को सबसे खतरनाक इसलिए माना जाता है कि वे कुछ ही समय में एक बड़े क्षेत्र को बीमार कर देते हैं और बहुत सारे लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं. यह रासायनिक हथियारों से भी घातक होता है और इसे अनाज से लेकर मांस-मछली और यहां तक कि फल के माध्यम से भी दूसरी जगह पहुंचाया जा सकता है. इसने रासायनिक हथियारों को पीछे छोड़ दिया है. कोरोना वायरस के बारे में अभी तक जो पड़ताल हुई है, उससे पता चला है कि यह वायरस इतनी तेजी से मल्टिप्लाई हो रहा है कि करोड़ों लोगों को जल्दी ही यह गिरफ्त में ले लेगा. यहां बिल गेट्स की उस चेतावनी को भी याद करें जिसमें उन्होंने कहा था कि वायरस केवल 6 महीने की अवधि में तीन करोड़ 30 लाख लोगों की जान ले लेगा.  

जैविक हथियारों पर प्रतिबंध को लेकर जो भी पहल अभी तक हुई है वह किसी काम की नहीं है. 1925 में जेनेवा में एक संधि हुई थी जिसमें इस्तेमाल को लेकर प्रतिबंध की बात हुई लेकिन भंडारण पर कोई रोक नहीं लगाई गई. 1972 में भंडारण पर प्रतिबंध का नया नियम जोड़ा गया जो 1975 में लागू हुआ. इस संधि में 180 से ज्यादा देश शामिल भी हैं लेकिन किसके पास जैविक हथियार हैं या नहीं हैं या कौन विकसित कर रहा है आदि की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है. अमेरिका, रूस और चीन ही नहीं चाहते कि ऐसी कोई जांच एजेंसी हो क्योंकि उन्हें अपना भांडा फूटने का डर है. आज यदि ऐसी कोई जांच एजेंसी होती तो इस बात की जांच हो सकती थी कि कोरोना वायरस क्या चीन की सुपर लेबोरेटरी में वाकई तैयार हुआ?

इससे भी बड़ी चिंता दुनिया के सामने यह है कि यदि आतंकी समूहों तक जैविक हथियार पहुंच गया तो क्या होगा? 2016 में अंतर्राष्ट्रीय खुफिया संगठनों ने आशंका जताई थी कि खूंखार आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट जैविक हथियारों तक पहुंच बनाने में लगा हुआ है और आतंकवादियों को ट्रेनिंग भी दे रहा है. उस वक्त अमेरिकी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी जेम्स स्टॅवरिडिस ने चेतावनी दी थी कि इबोला और जीका जैसे रोगों के वायरस यदि आतंकवादियों के हाथ लग गए तो दुनिया में कोहराम मच जाएगा. 40 करोड़ से ज्यादा लोग मारे जाएंगे.

जाहिर सी बात है कि हमारे लिए भी यह गंभीर चिंता की बात है क्योंकि हमारा देश आतंकवाद का सामना कर रहा है और चीन तथा पाकिस्तान जैसे देशों से हम बॉर्डर साझा करते हैं. अफगानिस्तान में 2017 में जब कुछ इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों के शरीर पर फफोले होने लगे थे तब रासायनिक हमले की बात उठी थी. तब तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि रासायनिक और जैविक हथियारों से मुकाबला करने की तैयारी हमारे पास भी होनी चाहिए. अब सवाल है कि हम कितने तैयार हैं? ..और दुनिया के सामने चुनौती है कि वह जैविक तथा रासायनिक हथियारों पर कैसे रोक लगा पाती है!
 

Web Title: Vijay Darda blog: The question of biological warfare with Coronavirus!

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