वेंकैया नायडू का कॉलमः समावेशी भारत की दिशा में उठा बड़ा कदम 

By एम वेंकैया नायडू | Published: August 18, 2019 05:45 AM2019-08-18T05:45:07+5:302019-08-18T05:45:07+5:30

आम धारणा के अनुसार देश के अधिकांश लोग मानते हैं कि यह एक सराहनीय कदम है. वे यह भी मानते हैं कि सरकार के इस कदम को संकीर्ण राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह देश की एकता और अखंडता से जुड़ा हुआ मुद्दा है.

Venkaiah Naidu's column: A big step towards inclusive India | वेंकैया नायडू का कॉलमः समावेशी भारत की दिशा में उठा बड़ा कदम 

वेंकैया नायडू का कॉलमः समावेशी भारत की दिशा में उठा बड़ा कदम 

अनुच्छेद 370 के उपबंधों को हटाने के सरकार के हालिया फैसले ने इस विषय पर देश भर में जोरदार बहस को जन्म दे दिया है. आम धारणा के अनुसार देश के अधिकांश लोग मानते हैं कि यह एक सराहनीय कदम है. वे यह भी मानते हैं कि सरकार के इस कदम को संकीर्ण राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह देश की एकता और अखंडता से जुड़ा हुआ मुद्दा है. वास्तव में, इसे समावेशी भारत की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. इस मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले हमें अनुच्छेद 370 के निचोड़ के बारे में जान लेना चाहिए, जिसे केवल एक अस्थायी, संक्रमणकालीन व्यवस्था माना गया था और इसे कभी भी स्थायी प्रावधान बनाने के बारे में सोचा नहीं गया था. भारतीय संविधान के भाग 21, जो अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान से संबंधित है, के अंतर्गत महाराजा हरि सिंह के 27 अक्तूबर 1947 को विलय के समझौते पर दस्तखत करने के बाद, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था.

हालांकि गौर करने लायक एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अनुच्छेद 370 विलय के समय लागू नहीं किया गया था. इसे अक्तूबर 1949 में शेख अब्दुल्ला के आग्रह पर संविधान में शामिल किया गया था. अनुच्छेद 370 के अंतर्गत, जम्मू-कश्मीर राज्य को अलग संविधान बनाने और झंडा रखने की अनुमति दी गई थी. पहले इसकी संविधान सभा और बाद में राज्य विधानसभा को अधिकार दिया गया कि वे भारतीय संसद द्वारा पारित कानूनों को चाहें तो अपनाएं और चाहें तो न अपनाएं. रक्षा, विदेशी मामले और संचार को छोड़कर, जैसा कि विलय की शर्तो में कहा गया था, भारतीय संसद को जम्मू-कश्मीर की सहमति के बिना अपने विधानों को उस राज्य में लागू करने का अधिकार नहीं था. जब संविधान में इसे शामिल करने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा था, तब प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को सलाह दी थी कि वे डॉ. बी.आर. आंबेडकर को विश्वास में लें, जो जाहिरा तौर पर इसके पक्ष में नहीं थे. डॉ. एस.एन. बसी ने अपनी किताब ‘डॉ. बी.आर. आंबेडकर फ्रेमिंग ऑफ इंडियन कांस्टीटय़ूशन’ में डॉ. आंबेडकर को यह कहते हुए उद्धृत किया है, ‘‘मि. अब्दुल्ला, आप चाहते हैं कि भारत कश्मीर को बचाए. आप चाहते हैं कि भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे, आपके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करे, आपको अनाज की आपूर्ति करे और कश्मीर को भारत के समान दर्जा मिले, लेकिन आप यह नहीं चाहते कि भारत और भारत के किसी भी नागरिक के पास कश्मीर में कोई अधिकार हो और भारत सरकार के पास केवल सीमित शक्तियां हों. इस प्रस्ताव को सहमति देना भारत के हितों के साथ विश्वासघात होगा, और भारत के कानून मंत्री के रूप में मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा. मैं अपने देश के हितों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता.’’

 यहां तक कि पं. नेहरू ने भी 27 नवंबर 1963 को संसद में ध्यान दिलाया था कि ‘अनुच्छेद 370 संक्रमणकालीन, अस्थायी व्यवस्था का हिस्सा है. यह संविधान का स्थायी भाग नहीं है.’ इतिहास दिखाता है कि कश्मीर के लोगों को शेष भारत के नजदीक लाने के बजाय, अनुच्छेद 370 ने सिर्फ खाई को ही चौड़ा किया. निहित स्वार्थो ने इस खाई को व्यवस्थित ढंग से बढ़ाया है. एक तरफ जहां अनुच्छेद 370 लोगों को सार्थक तरीके से लाभ पहुंचाने में विफल रहा है, वहीं अलगाववादियों ने इसका दुरुपयोग जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के बीच दरार बढ़ाने में किया है. इसका इस्तेमाल पड़ोसी देश ने आतंकवाद फैलाने के लिए किया. अनुच्छेद 370 को खत्म करने की मांग लंबे समय से चली आ रही थी. वास्तव में, संसद ने इस पर 1964 में ही चर्चा की थी. 
 संसद और सरकार अब आखिर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस तरह के प्रावधान की वर्तमान संदर्भ में कोई प्रासंगिकता नहीं है और समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर को पूरे भारत के साथ एकीकृत किया जाए. राज्य के विकास में अनुच्छेद 370 बाधा बन गया था.

देश की जनता को यह भी जानने की जरूरत है, जैसा कि गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में लोकसभा में इंगित किया, कि अनुच्छेद 370 के कारण देश के नागरिकों के कल्याण के लिए बनाए गए प्रमुख केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किए जा सके. इसके निरस्त होने से अब कुल 106 कानूनों को जम्मू-कश्मीर तक विस्तारित किया जाएगा. कुछ प्रमुख कानूनों में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने से संबंधित अधिनियम शामिल हैं. अनुच्छेद 35ए निष्प्रभावी होने के साथ, जम्मू-कश्मीर की महिलाओं के साथ दशकों पुराने भेदभाव को खत्म कर दिया गया है. अब वे किसी अनिवासी से शादी करने के बाद भी अपने बच्चों के लिए संपत्ति खरीद और हस्तांतरित कर सकती हैं. अनुच्छेद 370 को हटाना वास्तव में भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम है.

सरकार के इस निर्णय के बाद अब जम्मू-कश्मीर में व्यक्तिगत उद्यमियों और प्रमुख निजी कंपनियों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक निवेश करना संभव हो सकेगा, जिसमें आतिथ्य, पर्यटन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र का समावेश है. स्वाभाविक तौर पर इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के व्यापक अवसर पैदा होंगे. 

अंत में, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को हटाना एक राष्ट्रीय मुद्दा है, जिसमें हमारे देश की सुरक्षा, एकता और समान विकास शामिल है. यह सही दिशा में उठाया गया कदम है. यह एक ऐसा कदम है जो एक अपेक्षाकृत उपेक्षित राज्य में सर्वागीण विकास के नए द्वार खोलता है. यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उठाया गया कदम है.

Web Title: Venkaiah Naidu's column: A big step towards inclusive India

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