वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः विश्वगुरु की भूमिका निभाए भारत
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 1, 2021 02:38 PM2021-11-01T14:38:16+5:302021-11-01T14:38:23+5:30
मोदी सरकार ने शिक्षा मंत्नी की जगह ‘मानव संसाधन मंत्नी’ शब्द बदल दिया, यह तो अच्छा किया लेकिन क्या हमारे शिक्षा मंत्रियों और अफसरों को पता है कि विश्व गुरु होने का अर्थ क्या है?
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने अपने पिछले कई भाषणों में इस बात पर बड़ा जोर दिया है कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु था और अब उसे वही भूमिका निभानी चाहिए। इसी बात पर उन्होंने पिछले सप्ताह गोवा के एक कॉलेज-भवन का उद्घाटन करते हुए अपना तर्कपूर्ण भाषण दिया। आश्चर्य है कि हमारे कोई भी शिक्षा मंत्नी इस तरह के विचार तक प्रकट नहीं करते, उन्हें अमलीजामा पहनाना तो बहुत दूर की बात है।
मोदी सरकार ने शिक्षा मंत्नी की जगह ‘मानव संसाधन मंत्नी’ शब्द बदल दिया, यह तो अच्छा किया लेकिन क्या हमारे शिक्षा मंत्रियों और अफसरों को पता है कि विश्व गुरु होने का अर्थ क्या है? यदि उन्हें पता होता तो आजादी के 74 साल बाद भी हम विश्व गुरु क्यों नहीं बन पाते? हमारी लगभग सारी शिक्षा संस्थाएं अमेरिकी और ब्रिटिश स्कूलों और विश्वविद्यालयों की नकल करती रहती हैं। अपने आपको बहुत योग्य और महत्वाकांक्षी समझने वाले लोग विदेशों में पढ़ने और पढ़ाने के लिए बेताब रहते हैं। इन देशों के छात्न और अध्यापक क्या कभी भारत आने की बात भी उसी तरह सोचते हैं, जैसे सदियों पहले चीन से फाह्यान और ह्वेनसांग आए थे? भारत के गुरुकुलों की ख्याति चीन और जापान जैसे देशों तक तो थी ही, मिस्र, इटली और यूनान तक भी थी। प्लेटो और अरस्तू के विचारों पर भारत की गहरी छाप थी।
प्लेटो के ‘रिपब्लिक’ में हमारी कर्मणा वर्ण-व्यवस्था का प्रतिपादन पढ़कर मैं आश्चर्यचकित हो जाया करता था। मैकियावेली का ‘प्रिंस’ तो ऐसा लगता था, जैसे वह कौटिल्य के अर्थशास्त्न का हिस्सा है। इमेनुअल कांट और हीगल के विचार बहुत गहरे थे लेकिन मैं उन्हें दार्शनिक नहीं, विचारक मानता हूं। कपिल, कणाद और गौतम आदि द्वारा रचित हमारे छह दर्शन ग्रंथों के मुकाबले पश्चिमी विद्वानों के ये ग्रंथ दार्शनिक नहीं वैचारिक ग्रंथ प्रतीत होते हैं। जहां तक विज्ञान और तकनीक का सवाल है, पश्चिमी डॉक्टर अभी 100 वर्ष पहले तक मरीजों को बेहोश करना नहीं जानते थे, जबकि हमारे आयुर्वेदिक ग्रंथों में ढाई हजार साल पहले यह विधि वर्णित थी।
अब से 400 साल पहले तक भारत विश्व का सबसे बड़ा व्यापारी देश था। समुद्री मार्गो और वाहनों का जो ज्ञान भारत को था, किसी भी देश को नहीं था। लेकिन विदेशियों की लूटपाट और अल्पदृष्टि ने भारत का कद एकदम बौना कर दिया। अब आजाद होने के बावजूद हम उसी गुलाम मानसिकता के शिकार हैं। वेंकैया नायडू ने पश्चिम की इसी नकल को चुनौती दी है और भारतीय शिक्षा और भारतीय भाषाओं के पुनरुत्थान का आह्वान किया है।