वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः राष्ट्रीय शिष्टाचार बनता जा रहा है भ्रष्टाचार

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 4, 2022 02:32 PM2022-01-04T14:32:30+5:302022-01-04T14:34:23+5:30

अखिलेश का मंतव्य है कि पीयूष के यहां से निकला धन भाजपा का है तो भाजपा नेताओं का कहना है कि पुष्पराज तो समाजवादी पार्टी के विधायक हैं।

Vedpratap Vaidik blog Corruption is becoming a national etiquette | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः राष्ट्रीय शिष्टाचार बनता जा रहा है भ्रष्टाचार

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः राष्ट्रीय शिष्टाचार बनता जा रहा है भ्रष्टाचार

कन्नौज के इत्रवाले दो परिवारों पर पड़े छापों ने इत्र के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति की बदबू को भी उजागर कर दिया है। सच्चाई तो यह है कि इन छापों ने भारत की सारी राजनीति में फैली बदबू को सबके सामने फैला दिया है।

22 दिसंबर को जब पीयूष जैन के यहां छापा पड़ा तो उसमें 197 करोड़ रु।, 26 किलो सोना और 600 किलो चंदन पकड़ा गया और पीयूष को जेल में डाल दिया गया। यह प्रचारित किया गया कि यह छापा समाजवादी पार्टी के कुबेर के संस्थानों पर पड़ा है। दूसरे शब्दों में यह पैसा अखिलेश यादव का है। कानपुर की एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विरोधियों पर हमला करते हुए कहा कि यह भ्रष्टाचार का इत्र है। इसकी बदबू सर्वत्र फैल गई है। यह बदबू 2017 के पहले फैली थी। तब तक अखिलेश उ.प्र. के मुख्यमंत्री थे। लेकिन अखिलेश ने कहा कि यह छापा गलतफहमी में मार दिया गया है। दो जैनों में सरकार भ्रमित हो गई। पीयूष जैन का समाजवादी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने पुष्पराज जैन की जगह गलती से पीयूष जैन के यहां छापा मार दिया। तब सरकार ने पुष्पराज जैन के यहां भी छापा मार दिया। अखिलेश का मंतव्य है कि पीयूष के यहां से निकला धन भाजपा का है तो भाजपा नेताओं का कहना है कि पुष्पराज तो समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। उनके यहां जो भी काला धन पकड़ाएगा, वह सपा का ही होगा। यदि अखिलेश पहले छापे का मजाक नहीं उड़ाते तो शायद उनके जैन पर दूसरा छापा नहीं पड़ता लेकिन अब भाजपा ने हिसाब बराबर कर दिया है।

इन छापों से हमारे सभी नेताओं की छवि खराब होती है। जनता को लगता है कि ये सभी भ्रष्ट हैं। इनमें से कोई दूध का धुला नहीं है। चुनावों के मौसम में की जा रही इस छापेमारी से सत्तारूढ़ दल की छवि भी चौपट होती है। अपने विरोधियों को बदनाम और तंग करने के लिए ही ऐसे छापे इस समय मारे जाते हैं। पिछले कई साल से सरकार क्या कर रही थी? इसके अलावा ये छापे उसी राज्य में क्यों पड़ रहे हैं, जिसमें चुनाव सिर पर हैं? यदि देश में अर्थ-शुद्धि करनी है तो ऐसे छापे सबसे पहले सरकारों को अपने ही पार्टी-नेताओं पर मारने चाहिए। उद्योगपति और व्यापारी तो अपनी बुद्धि और मेहनत से पैसा कमाते हैं, ये बात अलग है कि उनमें से कई टैक्स-चोरी करते हैं। इन छापों ने यह भी सिद्ध किया है कि नोटबंदी के बावजूद यदि करोड़ों रु। इत्नवालों के यहां से नकद पकड़े जा सकते हैं तो बड़े-बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों ने अपने यहां तो अरबों रु. नकद छिपा रखे होंगे। नेताओं और पैसेवालों की सांठगांठ ने ही भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय शिष्टाचार बनाया है।

Web Title: Vedpratap Vaidik blog Corruption is becoming a national etiquette

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