वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: चिकित्सा शिक्षा सस्ती हो
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 23, 2019 03:17 PM2019-11-23T15:17:26+5:302019-11-23T15:17:26+5:30
भारत में डॉक्टरी की पढ़ाई की फीस 25 लाख रु. साल तक जाती है. जो व्यक्ति डॉक्टर बनने के लिए एक-डेढ़ करोड़ रु. खर्च करेगा, वह डॉक्टर बनने के बाद क्या करेगा? उसका ध्यान मरीजों के इलाज पर पहले होगा या पहले वह पैसा बनाने पर ध्यान देगा? जाहिर है कि वह गलत काम करेगा.
किसी भी राष्ट्र को यदि आप सुखी, संपन्न और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले दो बातों पर ध्यान देना जरूरी है. पहली, शिक्षा और दूसरी चिकित्सा. चिकित्सा तन बनाती है और शिक्षा मन को. पिछले 72 साल में हमारी सरकारों ने इन दोनों मामलों में कोई मुस्तैदी नहीं दिखाई लेकिन मुङो खुशी है कि मोदी सरकार में पहले स्वास्थ्य मंत्नी जगत प्रकाश नड्डा ने दवाओं की लूट को रोका और अब डॉ. हर्षवर्धन डॉक्टरी की पढ़ाई में इस लूट के विरुद्ध कमर कस रहे हैं.
भारत में डॉक्टरी की पढ़ाई की फीस 25 लाख रु. साल तक जाती है. जो व्यक्ति डॉक्टर बनने के लिए एक-डेढ़ करोड़ रु. खर्च करेगा, वह डॉक्टर बनने के बाद क्या करेगा? उसका ध्यान मरीजों के इलाज पर पहले होगा या पहले वह पैसा बनाने पर ध्यान देगा? जाहिर है कि वह गलत काम करेगा.
इसी प्रवृत्ति को रोकने के लिए अब मेडिकल कॉलेजों की फीस 70 से 90 प्रतिशत घटाई जाएगी. यदि मेडिकल की पढ़ाई सस्ती हो और भारतीय भाषाओं में भी होने लगे तो हम स्वास्थ्य की दृष्टि से दुनिया के 191 देशों में 112 वें पायदान पर पसरे हुए नहीं मिलेंगे. गांवों, गरीबों और पिछड़ों के बच्चे भी डॉक्टर बनेंगे और वे हमारे बच्चों के मुकाबले ज्यादा सेवा करेंगे.
अभी भारत में 10 हजार लोगों पर सिर्फ 5 डॉक्टर हैं जबकि उन्हें कम से कम दुगुने होना चाहिए. गांवों की तो भयंकर दुर्दशा है. यदि हमारे देश में वैद्य, हकीम और होमियोपैथ न हों तो ग्रामीण और गरीब मरीज को मौत के मुंह में जाने से रोकना मुश्किल है. मैंने अपने स्वास्थ्य मंत्रियों से कई बार कहा है कि मेडिकल की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरू करें.
उन्होंने मुझसे वादा किया लेकिन उसे अभी तक निभाया नहीं. दूसरी बात मैंने यह कही कि सभी चिकित्सा पद्धतियों में समन्वय करें. यह क्रांतिकारी काम होगा, जिसका लाभ दूसरे देश भी उठा सकेंगे. तीसरी बात यह कि डॉक्टरी की पढ़ाई में रोगों के इलाज के साथ-साथ उनकी रोकथाम पर भी पूरा ध्यान दिया जाए. अपने शास्त्नों में सही कहा गया है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ यानी धर्म का पहला साधन शरीर ही है.