वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: मिलावटखोरी मौन-हत्या के समान अपराध
By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 2, 2021 02:23 PM2021-03-02T14:23:44+5:302021-03-02T14:25:41+5:30
सिर्फ घी, दूध और मसाले ही मिलावटी नहीं होते, अनाजों में भी मिलावट जारी है. सबसे खतरनाक मिलावट दवाइयों में होती है.
खाद्य-पदार्थो और दवाइयों में मिलावट करनेवाले अब जरा डरेंगे, क्योंकि बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश की तरह अब मध्यप्रदेश भी उन्हें उम्र कैद की सजा देने का प्रावधान कर रहा है. अब तक उनके लिए सिर्फ 6 माह की सजा और 1000 रु . के जुर्माने का ही प्रावधान था. इस ढिलाई का नतीजा यह हुआ है कि आज देश में 30 प्रतिशत से भी ज्यादा चीजों में मिलावट होती है. मिलावट के फलस्वरूप हर साल लाखों लोगों की जान चली जाती है, करोड़ों बीमार पड़ते हैं और उनकी शारीरिक कमजोरी के नुकसान सारे देश को भुगतने पड़ते हैं.
मिलावट-विरोधी कानून पहली बार 1954 में बना था लेकिन आज तक कोई भी कानून सख्ती से लागू नहीं किया गया. 2006 और 2018 में नए कानून भी जुड़े लेकिन उनका भी उल्लंघन होता है. उसके कई कारण हैं. पहला तो यही कि उस अपराध की सजा बहुत कम है. वह नहीं के बराबर है. मैं तो यह कहूंगा कि वह सजा नहीं, बल्कि मिलावटखोर को दिया जानेवाला इनाम है.
यदि उसे 6 माह की जेल और एक हजार रु. जुर्माना होता है तो वह एक हजार रु . यानी लगभग डेढ़ सौ रुपए महीने में जेल में मौज करेगा. उसका खाना-पीना, रहना और दवा - सब मुफ्त. अपराधी के तौर पर कोई सेठ नहीं, उसका नौकर ही पकड़ा जाता है. अब कानून ऐसा बनना चाहिए कि मिलावट के अपराध में कंपनी या दुकान के शीर्षस्थ मालिक को पकड़ा जाए. उसे पहले सरे-आम कोड़े लगवाए जाएं और फिर उसे सश्रम कारावास दिया जाए.
उसकी सारी चल-संपत्ति जब्त की जानी चाहिए. यदि हर प्रांत में ऐसी एक मिसाल भी पेश कर दी जाए तो देखिए मिलावट जड़ से खत्म होती है कि नहीं. थोड़ी-बहुत सजा मिलावटी सामान बेचनेवालों को भी दी जानी चाहिए. इसके अलावा मिलावट की जांच के नतीजे दो-तीन दिन में ही आ जाने चाहिए. मिलावटियों से सांठगांठ करनेवाले अफसरों को नौकरी से हमेशा के लिए निकाल दिया जाना चाहिए.
स्वास्थ्य मंत्नालय सभी भाषाओं में विज्ञापन देकर लोगों को यह बताए कि मिलावटी चीजों को कैसे घर में ही जांचा जाए. दवाइयों और खाद्य-पदार्थो में मिलावट करना एक प्रकार का हत्या-जैसा अपराध है. बल्कि यह हत्या से भी अधिक जघन्य है. यह सामूहिक हत्या है. यह अदृश्य और मौन हत्या है. इस हत्या के विरुद्ध संसद को चाहिए कि वह सारे देश के लिए कठोर कानून पारित करे.