वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: उच्च शिक्षा स्वभाषा में देने की पहल?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 4, 2020 03:42 PM2020-12-04T15:42:56+5:302020-12-04T15:51:14+5:30

उच्च शिक्षा को भारतीय भाषाओं में देने की बात पहले होती रही है लेकिन कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। ऐसे नमें शिक्षा मंत्री रमेश पोखिरयाल की पहल कैसे आगे सफलता की राह पर बढ़ती है, ये देखने वाली बात होगी।

Vedapratap Vedic blog: Initiative to give higher education in first language | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: उच्च शिक्षा स्वभाषा में देने की पहल?

उच्च शिक्षा स्वभाषा में देने की पहल में कितने कामयाब होंगे डॉ. रमेश पोखिरयाल निशंक (फाइल फोटो)

Highlightsभाजपा या कांग्रेस या जनता दल की सरकार रही हो, शिक्षा का भारतीय भाषाकरण विफल रहा है स्वदेषी भाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पहले उच्च शिक्षा को अपनी भाषा में आगे बढ़ाने की कोशिश करनी होगी

शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखिरयाल निशंक ने गुरुवार को घोषणा की कि उनका मंत्रालय उच्च शिक्षा में भारतीय भाषा के माध्यम को लाने की कोशिश करेगा.

बच्चों की शिक्षा भारतीय भाषाओं या मातृभाषाओं के माध्यम से हो, यह तो नई शिक्षा-नीति में कहा गया है और कोठारी आयोग की रपट में भी इस नीति पर जोर दिया गया था. 

1967 में इंदिरा सरकार के शिक्षा मंत्रियों डॉ. त्रिगुण सेन, भागवत झा आजाद और प्रो. शेर सिंह तथा बाद में डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने भी शिक्षा में भारतीय भाषाओं को बढ़ाने की भरपूर कोशिश की थी लेकिन हमारी सरकारें, चाहे वे भाजपा या कांग्रेस या जनता दल की हों, शिक्षा का भारतीय भाषाकरण करने में विफल क्यों रही हैं? 

अंग्रेजी की गुलामी खत्म होगी?

इसलिए विफल रही हैं कि उन्हें बाल तो सिर पर उगाने थे लेकिन वे मालिश पांव पर करती रहीं. पांव पर मालिश यानी बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाना तो अच्छा है लेकिन वे ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते हैं, अंग्रेजी की गुलामी करने लगते हैं. उन्हें देखकर समझदार और समर्थ लोग पांव की मालिश भी बंद कर देते हैं. वे अपने बच्चों को भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं.

यदि हम देश में शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान का माध्यम स्वदेशी भाषाओं को बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले उच्च-शिक्षा और पीएच.डी. के शोध-कार्यो को अपनी भाषाओं में करने को प्राथमिकता देनी चाहिए.

यदि हमारी सरकारें ऐसी हिम्मत करें तो करोड़ों लोग अपने बच्चों को जानलेवा और जेबकाटू अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में क्यों पढ़ाएंगे? तब सरकारी नौकरियों से भी अंग्रेजी की अनिवार्यता हटानी पड़ेगी. 

'55 साल पहले मुझे रोका गया था'

यह बात मैं पिछले साठ साल से कहता आ रहा हूं लेकिन निशंक जैसे शिक्षा मंत्री के मुंह से यह बात पहली बार सुनी है. अब से 55 साल पहले मैंने इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में जब अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो मुझे ‘स्कूल’ से निकाल बाहर किया गया था. 

देश की सभी पार्टियों के नेताओं ने, द्रमुक के अलावा, मेरा समर्थन किया था. संसद का काम-काज कई बार ठप हुआ लेकिन अंततोगत्वा मेरी विजय हुई लेकिन असली मुद्दा आज भी जहां का तहां खड़ा है, क्योंकि हमारी सभी सरकारें और शिक्षाशास्त्री अंग्रेजी की गुलामी में जुटे हुए हैं.

शायद डॉ. निशंक कुछ कर गुजरें. वे पढ़े-लिखे विद्वान व्यक्ति हैं. यदि वे अंग्रेजी के प्रभुत्व को खत्म करें तो भारत दुनिया की सबल महाशक्ति बन जाएगा.

Web Title: Vedapratap Vedic blog: Initiative to give higher education in first language

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