वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: किसानों का मुद्दा शीघ्र सुलझना जरूरी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 8, 2021 07:54 AM2021-02-08T07:54:19+5:302021-02-08T07:54:19+5:30
किसानों का आंदोलन लंबे समय से जारी है. ऐसे में सरकार के लिए जरूरी है जल्द ही इन्हें खत्म कराया जाए. केंद्र सरकार इन कानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
शुक्र है कि शनिवार को किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी जैसी कोई घटना नहीं घटी. यह बहुत ही सराहनीय है.
उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं ने जिस अनुशासन और मर्यादा का पालन किया है, उससे यह भी सिद्ध होता है कि 26 जनवरी को हुई लाल किला जैसी घटना के लिए किसान नहीं, बल्कि कुछ अराजक तत्व जिम्मेदार हैं.
जहां तक वर्तमान किसान आंदोलन का सवाल है, यह भी मानना पड़ेगा कि उसमें तीन बड़े परिवर्तन हो गए हैं. एक तो यह कि यह किसान आंदोलन अब पंजाब और हरियाणा के हाथ से फिसलकर उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जाट नेताओं के हाथ में आ गया है.
राकेश टिकैत के आंसुओं ने अपना सिक्का जमा दिया है. दूसरा, इस चक्का-जाम का असर दिल्ली के बाहर कम ही हुआ है. तीसरा, इस किसान आंदोलन में अब राजनीति पूरी तरह से पसर गई है.
चक्का-जाम में तो कई छिटपुट विपक्षी नेता खुलेआम शामिल हुए हैं और दिल्ली के अलावा जहां भी प्रदर्शन आदि हुए हैं, वे विपक्षी दलों द्वारा प्रायोजित हुए हैं.
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने संसद में यह लगभग ठीक ही कहा है कि उन तीनों कृषि कानूनों में काला क्या है, यह अभी तक कोई नहीं बता सका है. जैसे सरकार अभी तक किसानों को तर्कपूर्ण ढंग से इन कानूनों के फायदे नहीं समझा सकी है, वैसे ही किसान भी इसके नुकसान आम जनता को नहीं समझा सके हैं.
इस आंदोलन में यदि कोई बड़ी हिंसा और प्रतिहिंसा हो गई तो देश का बहुत गहरा नुकसान हो जाएगा.
इस समस्या को सुलझाने का सबसे आसान तरीका मैं कई बार सुझा चुका हूं. केंद्र सरकार इन कानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उ.प्र. के बड़े किसानों की मांग पूरी हो जाएगी. उनके लिए तो ये तीनों कानून खत्म हो जाएंगे. वे किसानों के लिए बने हैं या बड़े उद्योगपतियों के लिए, इसका पता अगले दो-तीन साल में अन्य राज्यों से मिल जाएगा.