वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: निर्णायक साबित होंगे क्षेत्रीय दल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 30, 2019 07:32 AM2019-04-30T07:32:49+5:302019-04-30T07:32:49+5:30
सवाल यह है कि क्या अब राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र आदि में भाजपा का जलवा पहले-जैसा ही रहेगा?
2019 के संसदीय चुनाव का यह चौथा दौर बहुत महत्वपूर्ण है. इस दौर में आज नौ राज्यों की 72 सीटों पर मतदान हुआ. इन 72 सीटों पर भाजपा ने 2014 में 56 सीटें जीत ली थीं यानी 80 प्रतिशत सीटें उसे मिली थीं. पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सीटें निकाल दें तो भाजपा ने 2014 में इन राज्यों की सीटों पर विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया था. लेकिन सवाल यह है कि क्या अब राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र आदि में भाजपा का जलवा पहले-जैसा ही रहेगा? 2014 में तो भाजपा विपक्ष में थी. अब वह सत्ता में है तो क्या उसे इन राज्यों में 5-10 प्रतिशत वोट ज्यादा मिलेंगे? इस वक्त भाजपा के पास संगठन है, प्रचार है, कार्यकर्ता हैं और प्रखर नेता हैं. क्या वह विपक्ष को इस बार हरा पाएगी?
जरा मुश्किल है. क्योंकि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें हैं. वे पूरा जोर लगाएंगी कि इस बार वे ज्यादा से ज्यादा सीटें ले जाएं. बिहार में भी उसे जातिवादी चुनौती है. उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन ने थोक वोटों पर कब्जे का दावा कर रखा है. प. बंगाल और ओडिशा में भाजपा को थोड़ी बढ़त मिल सकती है. अब तक जो मतदान हुआ है, उनमें मतदाताओं ने बहुत ज्यादा जोश नहीं दिखाया. 2014 के मुकाबले सिर्फ डेढ़-पौने दो प्रतिशत मतदाता इस बार बढ़े जबकि 1977, 1984 और 2014 में मतदाताओं की संख्या पिछले चुनावों के मुकाबले 5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत तक बढ़ती रही.
इस चुनाव में न तो किसी नेता का जलवा दिखाई पड़ रहा है और न ही कोई बड़ा मुद्दा उछल रहा है, जैसा कि कभी गरीबी हटाओ बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था. सत्तापक्ष बालाकोट को भुनाने की कोशिश कर रहा है और विपक्ष के पास राफेल-सौदे के अलावा कुछ खास दिखाई नहीं पड़ रहा है. इस बार क्षेत्नीय दलों का महत्व बढ़ा है और हो सकता है कि चुनाव के बाद वे ही तय करें कि भारत का प्रधानमंत्नी कौन बनेगा?