वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः संसद की गरिमा बनाए रखें
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 20, 2018 05:42 PM2018-12-20T17:42:41+5:302018-12-20T17:42:41+5:30
यदि विपक्ष के सांसद किसी मुद्दे पर शोर मचाते हैं तो पक्ष के सांसद उनसे भी ज्यादा हंगामा खड़ा कर देते हैं.
संसद का 2019 के पूर्व यह आखिरी सत्र है और इसकी हालत क्या है ? एक सप्ताह शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया. इस सत्र में लगभग पचास विधेयक पास होने हैं, उन पर बहस होनी है और जरूरी हो तो उनमें संशोधन भी होने हैं. इन सब कामों के लिए विवेक और धैर्य दोनों की जरूरत है लेकिन हमारे सांसद क्या कर रहे हैं ? यदि विपक्ष के सांसद किसी मुद्दे पर शोर मचाते हैं तो पक्ष के सांसद उनसे भी ज्यादा हंगामा खड़ा कर देते हैं.
वे संसद में पोस्टर तक लहराते हैं ताकि टीवी चैनलों पर उनके चेहरे चमकते रहें. प्रचार की इस लालसा ने हमारी संसद की छवि को विकृत कर दिया है. इसी से दु:खी होकर सुमित्र महाजन जैसी गरिमा की मूर्ति को लोकसभा अध्यक्ष के नाते कहना पड़ा कि हमारे सांसद स्कूली बच्चों से भी ज्यादा गया-बीता बर्ताव करते हैं.
इसमें शक नहीं है कि तीनों हिंदी प्रांतों में भाजपा की हार से विपक्ष में अपूर्व उत्साह का संचार हुआ है लेकिन यदि वह यह मानता है कि छह माह बाद उसे सत्तारूढ़ होना है तो क्या उसे जिम्मेदारी की मिसाल पेश नहीं करनी चाहिए? क्या उसे सरकार की गलतियों को प्रभावशाली तर्को के साथ देश के सामने पेश नहीं करना चाहिए और उसे क्या यह नहीं बताना चाहिए कि यदि वह सत्ता में आया तो वह क्या-क्या करेगा?
यदि राष्ट्र-निर्माण के मुद्दों पर सार्थक और गंभीर बहस हो तो विपक्ष की उत्तम छवि तो बनेगी ही, देश का भी लाभ होगा. संसद में फिजूल शोर-शराबे का एक दुष्परिणाम यह भी होगा कि जनता का ध्यान तीनों नए कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की किसान हितकारी घोषणाओं पर उतना नहीं जाएगा, जितना इस शोर-शराबे पर जाएगा.