वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सारे चुनाव एक साथ कैसे हों?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 18, 2019 03:57 PM2019-06-18T15:57:16+5:302019-06-18T15:57:16+5:30

सरकारें चाहे पांच साल के पहले भंग होती रहें लेकिन विधानसभाएं और लोकसभाएं पांच साल तक जस की तस टिकी रहें. इस मौके पर शायद हमें अपने दल-बदल कानून पर भी पुनर्विचार करना पड़े.

Ved Pratap Vaidik's blog: How do Loksabha and assembly elections happen together? | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सारे चुनाव एक साथ कैसे हों?

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सारे चुनाव एक साथ कैसे हों?

देश के सारे राजनीतिक दल 19 जून को मिलकर इस मुद्दे पर विचार करेंगे कि क्या लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए? प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी का आग्रह है कि वे एक साथ होने चाहिए. यह बात मैं पिछले कई वर्षो से कह रहा हूं. कई बार मैंने प्रधानमंत्रियों और चुनाव आयोग से भी यह आग्रह किया लेकिन यह आग्रह चिकने घड़े पर पानी की तरह फिसल गया.

इसके कई कारण बताए गए. पहला तो यही कि यदि समस्त विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव की एक ही तारीख तय हुई तो कई लोगों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. कई विधानसभाओं या लोकसभा को भी उसकी पांच साल की अवधि के पहले ही भंग होना पड़ेगा. सभी चुने हुए प्रतिनिधि चाहते हैं कि कम से कम पांच साल तक उनकी सदस्यता कायम रहे. 

इस दुविधा का संतोषजनक समाधान खोज निकालना कठिन नहीं है. दूसरी समस्या इससे भी ज्यादा जटिल है. वह यह कि कई विधानसभाएं और स्वयं लोकसभा भी कई बार पांच साल के पहले ही भंग हो जाती हैं. यदि वे अलग-अलग समय पर भंग हों तब क्या होगा? यदि उन्हें तब तक भंग रखा जाए और उनके चुनाव नहीं करवाए जाएं, जब तक कि वह पंचवर्षीय तारीख न आ जाए तो सरकारें कैसे चलेंगी? क्या उन राज्यों में तब तक राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति का शासन चलेगा? यह घोर अलोकतांत्रिक होगा.

इसीलिए लोग कहते हैं कि विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ नहीं हो सकते. इसका समाधान भी है. यदि किसी विधानसभा या लोकसभा में कोई सरकार अल्पमत में आ जाए और गिर जाए तो ऐसे में वह तब तक इस्तीफा न दे जब तक कि कोई नई सरकार न आ जाए. यानी विधानसभा या लोकसभा को पांच साल के पहले भंग करने की जरूरत ही नहीं पड़गी.

सरकारें चाहे पांच साल के पहले भंग होती रहें लेकिन विधानसभाएं और लोकसभाएं पांच साल तक जस की तस टिकी रहें. इस मौके पर शायद हमें अपने दल-बदल कानून पर भी पुनर्विचार करना पड़े.

Web Title: Ved Pratap Vaidik's blog: How do Loksabha and assembly elections happen together?