वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारत मुकुट थे डॉ. लोहिया
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 15, 2018 09:53 AM2018-10-15T09:53:49+5:302018-10-15T09:53:49+5:30
कल 12 अक्तूबर को डॉ। राममनोहर लोहिया की 51वीं पुण्यतिथि थी। 1967 में जब दिल्ली के विलिंगडन अस्पताल में वे बीमार थे, मैं वहां रोजाना जाया करता था। उन्हें देखने के लिए जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी, जाकिर हुसैन, मोरारजी देसाई भी आते थे। राजनारायण तो पास के एक कमरे में ही रहने लगे थे।
मैं भी आखिरी तीन-चार दिन अस्पताल के सामने बने 216 और 218 नार्थ एवेन्यू के अर्जुनसिंह भदौरिया और जॉर्ज फर्नाडीस के फ्लैट में रहा था। 7 गुरुद्वारा रकाबगंज से जब डॉ। लोहिया की शव-यात्र निकली तो देश के सैकड़ों राजनीतिक और बौद्धिक लोग उनके पीछे-पीछे चल रहे थे लेकिन देखिए भारत की राजनीति का दुर्भाग्य कि आज की नई पीढ़ी उनका नाम नहीं जानती।
मैं समझता हूं कि 20वीं सदी के भारत में लोहिया से बढ़कर कोई राजनीतिक चिंतक नहीं हुआ। उनके विचारों से दीनदयाल उपाध्याय और अटलबिहारी वाजपेयी भी गहरे प्रभावित थे। दीनदयाल शोध संस्थान ने मेरे कहने पर ‘गांधी, लोहिया, दीनदयाल’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की थी। लोहिया के व्यक्तित्व और विचारों में इतनी प्रेरक-शक्ति थी कि मेरे जैसे कई नौजवानों ने उस समय कई सत्याग्रहों का नेतृत्व किया और कई बार जेल काटी।
वर्तमान राजनीतिक दल और नेता वैचारिक दृष्टि से गरीब हैं। न तो उनके पास कोई दृष्टि है, न दिशा है। यदि सरकार लोहिया-साहित्य को छापकर करोड़ों की संख्या में नौजवानों को सस्ते में उपलब्ध करवाए तो देश का बड़ा कल्याण होगा। जहां तक भारत-रत्न का सवाल है, कुछ मित्रों का आग्रह है कि वह लोहियाजी को दिया जाए। जरूर दिया जाए लेकिन मैं मानता हूं कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुत ज्यादा ऊंचा था।