वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: वांग यी की भारत यात्रा का क्या है अर्थ?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 28, 2022 11:49 AM2022-03-28T11:49:27+5:302022-03-28T11:49:54+5:30
ऐसा लगता है कि चीन इस समय अपनी छवि सुधारने में लगा हुआ है. कोरोना महामारी सारे संसार में फैलाने का जो दोष उसके माथे मढ़ा गया है, वह उसकी सफाई में जुटा हुआ है.
चीनी विदेश मंत्री वांग यी की यह भारत-यात्रा बड़ी रहस्यमय है. इसका अर्थ निकालना आसान नहीं है. वे हमारे विदेश मंत्री जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मिले. वे भारत अपनी मर्जी से आए. उनको बुलावा नहीं दिया गया था. उन्होंने अपनी भारत-यात्रा की घोषणा भी नहीं की थी. वे इसी तरह काबुल भी पहुंच गए थे. अब वे श्रीलंका भी जाएंगे. ऐसा लगता है कि इस वक्त चीन अपनी छवि सुधारने में लगा हुआ है.
कोरोना महामारी सारे संसार में फैलाने का जो दोष उसके माथे मढ़ा गया है, वह उसकी सफाई में जुटा हुआ है और अपनी महाशक्ति की छवि को चमकाने के लिए कृतसंकल्पित है. वांग यी भारत इसलिए नहीं आए हैं कि भारत-चीन सीमा विवाद शांत हो जाए. यदि वे इसलिए आए होते तो उस मुद्दे पर कोई ठोस प्रस्ताव लेकर आते लेकिन डोभाल और जयशंकर से हुई उनकी बातचीत से लगता है कि उनके भारत आने का खास उद्देश्य यही है कि ‘ब्रिक्स’ की अगली बैठक का कहीं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहिष्कार न कर दें.
यदि मोदी ने बहिष्कार कर दिया तो चीन की नाक कट सकती है. इसीलिए जब जयशंकर और डोभाल ने सीमा का मुद्दा उठाया और कहा कि उसे हल किए बिना दोनों देशों के संबंध सहज नहीं हो सकते तो वांग ने कह दिया कि वे सहमत हैं और इस मुद्दे पर संवाद जारी रखेंगे.
यूक्रेन के मुद्दे पर चीन पूरी तरह से अमेरिका के विरोध में है लेकिन भारत की तरह वह तटस्थता का दिखावा भी कर रहा है. ऐसा लगता है कि अब रूस और चीन का एक गुट तथा अमेरिका, नाटो, आकुस और क्वाड का दूसरा गुट बनने जा रहा है. लेकिन भारत को काफी सावधान रहना है. दोनों विदेश मंत्रियों ने युद्ध को रोकने और राष्ट्रीय संप्रभुताओं की रक्षा की बात को दोहराया.
वांग यी ने इस्लामाबाद में कश्मीर पर जो कुछ कहा, उस पर भी आपत्ति की गई लेकिन वांग ने कहा कि दुनिया की ज्यादातर समस्याओं पर भारत और चीन का नजरिया एक-जैसा है. यदि वे परस्पर सहयोग करें तो दोनों देशों के लिए यह बहुत लाभदायक होगा. चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और वांग यी जो कह रहे हैं, यदि वे सचमुच उसका पालन करें तो यह सदी एशिया की सदी बन सकती है.