वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अलग राह पर चला केरल
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 2, 2020 12:51 PM2020-01-02T12:51:29+5:302020-01-02T12:51:29+5:30
यहां असली सवाल यह है कि किसी राज्य का इस तरह केंद्र सरकार और संसद के विरुद्ध जाना क्या उचित है, क्या संवैधानिक है, क्या संघात्मक शासन प्रणाली के अनुकूल है? इन तीनों प्रश्नों का जवाब नकारात्मक हो सकता है और अदालत भी वैसा कह सकती है लेकिन यदि मान लें कि दर्जन भर विधानसभाएं ऐसा प्रस्ताव पारित कर देती हैं तो उसके अर्थ क्या होंगे. उसका पहला अर्थ यह होगा कि शरण देने का यह जो कानून बना है, यह घोर असंतोषजनक और गलत है.
केरल विधानसभा ने वह काम कर दिया है, जो आज तक देश की किसी विधानसभा ने नहीं किया. मेरी जानकारी में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि केंद्र सरकार और संसद ने स्पष्ट बहुमत से कोई कानून पारित किया हो और उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी हो गए हों, इसके बावजूद किसी राज्य की विधानसभा ने लगभग सर्वानुमति से उस कानून को लागू नहीं करने का फैसला किया हो.
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पूरी विधानसभा ने वोट दिया और पक्ष में भाजपा के अकेले विधायक ने. इसी कानून के खिलाफ सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने जब मिला-जुला विरोध प्रदर्शन किया तो केरल के कई कांग्रेसी नेताओं को लगा कि कम्युनिस्टों के साथ किसी भी मुद्दे पर हाथ मिलाना ठीक नहीं है. लेकिन अब विधानसभा में दोनों परस्पर विरोधी पार्टियों का मिल-जुल कर वोट करना तो हाथ मिलाना क्या, दिलो-दिमाग मिलाना हो गया.
यहां असली सवाल यह है कि किसी राज्य का इस तरह केंद्र सरकार और संसद के विरुद्ध जाना क्या उचित है, क्या संवैधानिक है, क्या संघात्मक शासन प्रणाली के अनुकूल है? इन तीनों प्रश्नों का जवाब नकारात्मक हो सकता है और अदालत भी वैसा कह सकती है लेकिन यदि मान लें कि दर्जन भर विधानसभाएं ऐसा प्रस्ताव पारित कर देती हैं तो उसके अर्थ क्या होंगे. उसका पहला अर्थ यह होगा कि शरण देने का यह जो कानून बना है, यह घोर असंतोषजनक और गलत है.
दूसरा, यदि कुछ राज्य इसे लागू नहीं करेंगे तो केंद्र क्या कर लेगा? यह कानून ताक पर धरा रह जाएगा. तीसरा, इस गलत कानून की वजह से देश का संघात्मक ढांचा चरमरा सकता है. उसमें सेंध लग सकती है. केंद्रीय कानूनों और संसद की अवहेलना सामान्य-सी बात बन सकती है. यह राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक संकेत है. केंद्र सरकार ने बैठे-बिठाए यह मुसीबत क्यों मोल ले ली है, समझ में नहीं आता.