वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सांप्रदायिक विद्वेष का बढ़ना खतरनाक
By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 19, 2022 12:17 PM2022-04-19T12:17:26+5:302022-04-19T12:19:34+5:30
भारत की राजनीति में अनेक दल ऐसे हैं, जिनका आधार शुद्ध संप्रदायवाद या शुद्ध जातिवाद है. यह राष्ट्रीय समस्या है. इसका समाधान केवल अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा नहीं कर सकते हैं.
रामनवमी और हनुमान जयंती के अवसरों पर देश के कई प्रदेशों में हिंसा और तोड़-फोड़ के दृश्य देखे गए. उत्तर भारत के प्रांतों के अलावा ऐसी घटनाएं दक्षिण और पूर्व के प्रांतों में भी हुईं. हालांकि इनमें सांप्रदायिक दंगों की तरह बहुत खून नहीं बहा लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि आजाद भारत में ऐसी हिंसात्मक घटनाएं कभी कई प्रदेशों में एक साथ हुई हों. ऐसा होना काफी चिंता का विषय है.
यह बताता है कि पूरे भारत में सांप्रदायिक विद्वेष की कोई ऐसी अदृश्य धारा बह रही है, जो किसी न किसी बहाने भड़क उठती है. विरोधी दलों ने संयुक्त बयान देकर पूछा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं, वे कुछ बोलते क्यों नहीं हैं? इस प्रश्न का भावार्थ यह है कि विरोधी दलों के नेता इन कार्रवाइयों के लिए सत्ताधारी भाजपा को जिम्मेदार ठहराना चाहते हैं.
यहां यह सवाल भी विचारणीय है कि क्या इस तरह के सांप्रदायिक दंगे और हिंसात्मक घटनाक्रम सिर्फ भाजपा शासनकाल में ही हो रहे हैं? कांग्रेसियों, कम्युनिस्टों और समाजवादियों के शासनकाल में ऐसी घटनाएं क्या बिलकुल नहीं हुई हैं? यह हमारे भारतीय समाज का स्थायी चरित्र बन गया है कि हम अपने राष्ट्र से भी कहीं ज्यादा महत्व अपनी जाति और अपने मजहब को देते हैं.
1947 के बाद जिस नए शक्तिशाली और एकात्म राष्ट्र का हमें निर्माण करना था, उस सपने का थोक वोट की राजनीति ने चूरा-चूरा कर दिया. थोक वोट के लालच में सभी राजनीतिक दल जातिवाद और सांप्रदायिकता का सहारा लेने में जरा भी संकोच नहीं करते. आज भारत की राजनीति में अनेक सक्रिय दल ऐसे हैं, जिनका आधार शुद्ध संप्रदायवाद या शुद्ध जातिवाद है. यह राष्ट्रीय समस्या है.
इसका समाधान अकेले प्रधानमंत्री या उनका अकेला राजनीतिक दल कैसे कर सकता है? इस पर तो सभी दलों की एक राय होनी चाहिए. अकेले प्रधानमंत्री ही नहीं, सभी दलों के नेताओं को मिलकर बोलना चाहिए. किसी भी नेता को वोट बैंक की हानि से डरना नहीं चाहिए.