वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भोजन में अनुशासन महत्वपूर्ण
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 14, 2020 08:20 AM2020-02-14T08:20:18+5:302020-02-14T08:20:18+5:30
जब हम भोजन करते हैं तो आंतों की 10 कोशिकाओं में कम से कम 1 तो क्षतिग्रस्त होती ही है. यदि हम रात को देर से भोजन और सुबह नाश्ता जल्दी करें तो उन कोशिकाओं को मरम्मत का समय ही नहीं मिल पाता.
अमेरिका के एक शोध संस्थान के डॉक्टर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि शाम को 6 बजे के बाद लोगों को भोजन नहीं करना चाहिए. उन्होंने कई प्रयोग किए और पाया कि शाम को 6 बजे के बाद पाचनतंत्र निष्क्रिय होना शुरू हो जाता है, पेट में पाचक रस कम पैदा होता है, आंतें सिकुड़ने लगती हैं और हार्मोन इंसुलिन का असर भी कम हो जाता है.
जब हम भोजन करते हैं तो आंतों की 10 कोशिकाओं में कम से कम 1 तो क्षतिग्रस्त होती ही है. यदि हम रात को देर से भोजन और सुबह नाश्ता जल्दी करें तो उन कोशिकाओं को मरम्मत का समय ही नहीं मिल पाता.
इसका नतीजा यह होता है कि लोग हृदयरोग और मधुमेह के शिकार हो जाते हैं.
पता नहीं अमेरिकी शोधकर्ताओं के इस सबक को कितने लोग स्वीकार करेंगे क्योंकि आजकल सारी दुनिया में एक ही ढर्रा चल पड़ा है. सुबह 8-9 बजे ब्रेकफास्ट, 1 बजे लंच और रात 9 या 10 बजे डिनर.
अंग्रेजों की नकल पर अब लोगों ने अपने खाने के समय को बदल लिया है. आप किसी को डिनर पर बुलाएं और उसे शाम 5-6 बजे का समय दें तो वह आप पर हंसेगा लेकिन मैं आपको बताऊं कि अब से 60-70 साल पहले तक भारत में नाश्ते का समय 6 से 8 बजे तक, मध्याह्न् भोज का 10 से 12 बजे तक और रात्रि भोज का समय शाम 5 से 6 के बीच ही हुआ करता था.
कई जैन परिवारों में तो अभी तक यही अनुशासन चलता है. मैं 20 साल की उम्र तक इंदौर में रहा. वहां शादियों के प्रीतिभोज शाम 5 बजे से शुरू होकर 7 बजे तक समाप्त हो जाते थे.
यदि समय के इस अनुशासन के साथ-साथ आप भोजन की मात्र उचित रखें और अखाद्य पदार्थो (मांस, मछली, अंडा) का सेवन न करें तो आपके बीमार होने का कोई कारण ही नहीं है.
मैं अब 76 साल का हूं लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि मैं कभी बीमार हुआ हूं. हमारे देश के करोड़ों लोग नित्य प्रति भोजन और व्यायाम के अनुशासन में रहें तो दवाइयों का खर्च घटे, लोग उत्पादन ज्यादा करें और दिन-रात प्रसन्न रहें. शास्त्रों ने ठीक ही कहा है ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ यानी शरीर ही धर्म का पहला साधन है.