वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राज्यपाल-मुख्यमंत्री के बीच अनावश्यक विवाद

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 23, 2022 08:13 IST2022-02-23T08:13:00+5:302022-02-23T08:13:00+5:30

केरल के कम्युनिस्ट नेताओं ने गुहार लगाना शुरू कर दिया है कि राज्यपाल का पद ही खत्म कर दिया जाए या विधानसभा को अधिकार हो कि उसे वह बर्खास्त कर सके. इन बातों को यदि मान लिया जाए तो भारत का संघात्मक ढांचा ही चरमराने लग सकता है.

Ved Pratap Vaidik blog: Arif mohammed khan and pinarayi vijayan unnecessary dispute between Governor and Chief Minister | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राज्यपाल-मुख्यमंत्री के बीच अनावश्यक विवाद

राज्यपाल-मुख्यमंत्री के बीच अनावश्यक विवाद (फाइल फोटो)

केरल में कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) की सरकार है और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है. इन दोनों राज्यों के राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के बीच सतत मुठभेड़ का माहौल बना रहता है. इन दोनों प्रदेशों से आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं जो वहां किसी न किसी संवैधानिक संकट का संदेह पैदा करती हैं. 

भारत की संघात्मक व्यवस्था पर भी ये मुठभेड़ें पुनर्विचार के लिए विवश करती हैं. यदि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने निजी स्टाफ में किसी व्यक्ति को नियुक्त कर लिया तो उन्हीं के वरिष्ठ अधिकारी को यह हिम्मत कहां से आ गई कि वह राज्यपाल को पत्र लिखकर उसका विरोध करे? जाहिर है कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के इशारे के बिना वह यह दुस्साहस नहीं कर सकता था. इस पर राज्यपाल की नाराजगी स्वाभाविक है.

राज्यपाल आरिफ खान का तर्क है कि केरल में मंत्री लोग अपने 20-20 लोगों के व्यक्तिगत स्टाफ को नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं, उन्हें किसी से पूछना नहीं पड़ता है तो राज्यपाल को अपना निजी सहायक नियुक्त करने की स्वतंत्रता क्यों नहीं होनी चाहिए? उन्होंने एक गंभीर दांव-पेंच को भी इस बहस के दौरान उजागर कर दिया है. 

दिल्ली के केंद्रीय मंत्री अपने निजी स्टाफ में दर्जन भर से ज्यादा लोगों को नियुक्त नहीं कर सकते लेकिन केरल में 20 लोगों की नियुक्ति की सुविधा क्यों दी गई है? इतना ही नहीं, ये 20 व्यक्ति प्राय: मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य होते हैं और इन्हें ढाई साल की नौकरी के बाद जीवन भर पेंशन मिलती रहती है. यह पार्टीबाजी का नया पैंतरा सरकारी कर्मचारियों के कुल खर्च में सेंध लगाता है. 

राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच इस बात को लेकर भी पिछले दिनों सख्त विवाद छिड़ गया था कि किसी विश्वविद्यालय में उपकुलपति की नियुक्ति करने का अधिकार राज्यपाल को है या नहीं? मुख्यमंत्री तो प्रस्तावित नामों की सूची भर भेजते हैं. आरिफ खान कुछ अनुपयुक्त नामों से इतने तंग हो गए थे कि वे अपने इस अधिकार को ही तिलांजलि देने को तैयार थे. अब केरल के कम्युनिस्ट नेताओं ने यह गुहार लगाना भी शुरू कर दिया है कि राज्यपाल का पद ही खत्म कर दिया जाए या विधानसभा को अधिकार हो कि उसे वह बर्खास्त कर सके. उसकी सहमति से ही राज्यपाल की नियुक्ति हो. 

यदि केरल के कम्युनिस्ट नेताओं की इस बात को मान लिया जाए तो भारत का संघात्मक ढांचा ही चरमराने लग सकता है. राज्यपाल का पद मुख्यमंत्री से ऊंचा होता है. इसलिए प्रत्येक मुख्यमंत्री के लिए यह जरूरी है कि वह किसी मुद्दे पर अपने राज्यपाल से असहमत हो तो भी वह शिष्टता का पूरा ध्यान रखे. इसी तरह से राज्यपालों को भी चाहिए कि निरंतर तनाव में रहने की बजाय अपने मुख्यमंत्री को सही और संवैधानिक मर्यादा बताकर उसे अपने हाल पर छोड़ दें.

Web Title: Ved Pratap Vaidik blog: Arif mohammed khan and pinarayi vijayan unnecessary dispute between Governor and Chief Minister

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