मैं उज्जैन के ऐसे कार्यक्र म में शामिल हुआ, जिस पर भारत ही नहीं, सारा विश्व गर्व कर सकता है और उससे सीख ले सकता है. यह था, सामूहिक विवाह समारोह. 122 जोड़ों की शादी हुई. आजकल देश में सामूहिक विवाह के कई आयोजन होते हैं लेकिन यह उनसे मुझे काफी अलग नजर आया.
अक्सर ये सामूहिक विवाह कुछ जातीय संगठनों द्वारा आयोजित किए जाते हैं, जिनमें एक ही जाति के युवक-युवतियों की शादियां होती हैं लेकिन इस आयोजन में न जाति का, न मजहब का, न प्रांत का, न भाषा का, कोई भी बंधन नहीं था. सबसे बड़ी बात, जिसने मेरा ध्यान खींचा, वह यह थी कि 122 जोड़ों की शादी में लगभग दर्जन भर जोड़े मुसलमान थे और एक जोड़ा ईसाई था. इनकी शादियां करवाने के लिए मौलवी और पादरी भी पंडितों की तरह एक ही शामियाने के नीचे डटे हुए थे.
विवाह, निकाह और वेडिंग के बाद सभी लोग एक जगह बैठकर भोजन कर रहे थे. हजारों लोग उपस्थित थे. मंच पर सभी धर्मो के पुरोहित बैठे हुए थे. उज्जैन के कमिश्नर, कलेक्टर, पुलिस मुखिया वगैरह भी थे.
इन 122 जोड़ों में 29 जोड़े सेवाधाम उज्जैन के थे. यह सेवाधाम उज्जैन के पास के अंबोदिया ग्राम में है. इसकी स्थापना सुधीर गोयल ने की थी. वे किसी के भी धर्म-परिवर्तन की कोशिश किए बिना उनकी सेवा करते हैं. इस दृष्टि से वह ‘मदर टेरेसा’ की तरह पवित्न काम कर रहे हैं.
मैं इस सेवाधाम का नाम-मात्न का संरक्षक हूं. जब लगभग 20 साल पहले इसका मैं संरक्षक बना, तब इसमें 50 विकलांग लोग किसी तरह गुजर करते थे. अब इसमें 600 दिव्यांग, अनाथ, महिलाएं रहती हैं. इसी तरह के 29 युवक और युवतियों का ब्याह संपन्न हुआ है. इन वर-वधुओं को इंदौर और उज्जैन के लोगों ने उपहारों से लाद दिया. है न, यह अद्भुत विवाह समारोह!