वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: आशा की कुछ किरणें बाकी

By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 7, 2019 12:42 PM2019-11-07T12:42:26+5:302019-11-07T12:42:26+5:30

भारत द्वारा इस समझौते के बहिष्कार से सभी देश प्रभावित हो रहे हैं. सभी चाहते हैं कि भारत इसमें फिर से लौटे. वे किसी न किसी तरह भारत की शर्तों को जरूर मानेंगे.

Ved Prakash Vaidik blog: few rays of hope left | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: आशा की कुछ किरणें बाकी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

कल मैंने लिखा था कि 16 देशों के ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ नामक संगठन से भारत का निकल आना अभी एकदम पक्का नहीं है. आशा की कुछ किरणें बाकी हैं. यह कथन सत्य साबित हुआ है. चीनी सरकार के प्रवक्ता ने भारत को मनाने के लिए काफी रचनात्मक बयान जारी किया है. भारत इस संगठन से इसीलिए निकला है कि अगर वह इसके व्यापार समझौते पर दस्तखत कर देता तो इस बात का डर था कि वह चीन के चंगुल में फंस जाता. यह संगठन अपने 16 देशों के बीच खुले व्यापार को प्रोत्साहित कर रहा है.

भारत को डर यही था कि चीनी माल की भारत में बाढ़ आ जाती और भारत के उद्योग-धंधे और रोजगार ठप्प हो जाते. लेकिन चीनी प्रवक्ता ने कहा है कि भारत का यह भय तथ्यपरक नहीं है.

पिछले दिनों चीन को भारत का निर्यात 15 प्रतिशत बढ़ा है. इसके अलावा एसियान के अन्य देशों के साथ भारत के निर्यात का घाटा चीन से दुगुना है. चीन से व्यापारिक संतुलन लगभग 55 अरब डालर का है तो इन देशों के साथ मिलाकर 105 अरब डॉलर का है. यदि भारत ‘संगठन’ में रहकर अपने  निर्यात और आयात के तटकर पर इन देशों के साथ बहस चलाता तो भारत को ज्यादा फायदा हो सकता था.

जहां तक चीन का प्रश्न है, वह दुनिया के सबसे बड़े मध्यम वर्ग का बड़ा बाजार है. भारत इस बाजार को अपने सस्ते और अच्छे माल से पाटने की कोशिश क्यों नहीं करता?

भारत द्वारा इस समझौते के बहिष्कार से सभी देश प्रभावित हो रहे हैं. सभी चाहते हैं कि भारत इसमें फिर से लौटे. वे किसी न किसी तरह भारत की शर्तों को जरूर मानेंगे.

हमारे व्यापार मंत्री पीयूष गोयल ने भी आशा प्रकट की है कि यदि भारत की शर्तें मान ली जाएं तो भारत लौटने को तैयार है. भारत को इस संगठन में रहना है तो उसे अपनी कमर कसनी होगी. उसे इन देशों की जरूरतों और पसंदगीयों का बारीकी से अध्ययन करना होगा और वे जमकर खरीदें, ऐसी चीजें बड़े पैमाने पर पैदा करनी होंगी.

यदि भारत इस चुनौती को स्वीकार कर ले तो उसकी आमदनी और रोजगार, दोनों एक साथ बढ़ेंगे. वह अपने आशंकित आर्थिक स्तर से भी उबर सकता है.

Web Title: Ved Prakash Vaidik blog: few rays of hope left

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