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उत्तराखंडः 6300 से अधिक स्थान भूस्खलन जोन के रूप में चिन्हित किए गए, कथित विकास से धंसते हिमालय की त्रासदी का जिम्मेदार कौन?

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: January 12, 2023 15:36 IST

जिन पहाड़ों, पेड़ों, नदियों ने पांच हजार साल से अधिक तक मानवीय सभ्यता, अध्यात्म, धर्म, पर्यावरण को विकसित होते देखा था, वह बिखर चुके थे। न सड़क बच रही है न मकान, न ही नदी के किनारे। सरकार ने भी कह दिया कि जोशीमठ को खाली करना होगा।

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छह जनवरी 2023 को जब उत्तराखंड राज्य सरकार के आपदा सचिव रंजीत सिन्हा के नेतृत्व में वैज्ञानिक, इंजीनियर आदि की टीम जोशीमठ का निरीक्षण करने पहुंची तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जिन पहाड़ों, पेड़ों, नदियों ने पांच हजार साल से अधिक तक मानवीय सभ्यता, अध्यात्म, धर्म, पर्यावरण को विकसित होते देखा था, वह बिखर चुके थे। न सड़क बच रही है न मकान, न ही नदी के किनारे। सरकार ने भी कह दिया कि जोशीमठ को खाली करना होगा। अस्थाई आसरे और  चार हजार रुपए महीने के मुआवजे की घोषणा हुई है लेकिन इन हजारों लोगों के जीविकोपार्जन का क्या होगा? 

आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित स्थान, मूल्य और संस्कार का क्या होगा? आंसुओं से भरे चेहरे और आशंकाओं से भरे दिल अनिश्चितता और आशंका के बीच त्रिशंकु हैं। जब दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का कहर सामने दिख रहा है, हिमालय पहाड़ पर, विकास की नई परिभाषा गढ़ने की तत्काल जरूरत महसूस हो रही है। जान लें यह केवल जोशीमठ की बात नहीं है, पहाड़ पर जहां-जहां सर्पीली सड़क पहुंच रही है, पर्यटकों का बोझा बढ़ रहा है, पहाड़ों के दरकने-सरकने की घटनाएं बढ़ रही हैं।

 उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग और विश्व बैंक ने सन् 2018 में एक अध्ययन करवाया था जिसके अनुसार  छोटे से उत्तराखंड में 6300 से अधिक स्थान भूस्खलन जोन के रूप में चिन्हित किए गए। रिपोर्ट कहती है कि राज्य में चल रही हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं पहाड़ों को काट कर या जंगल उजाड़ कर ही बन रही हैं और इसी से भूस्खलन जोन की संख्या में इजाफा हो रहा है। 

सनद रहे हिमालय पहाड़ न केवल हर साल बढ़ रहा है बल्कि इसमें भूगर्भीय उठापटक चलती रहती हैं। यहां पेड़ भूमि को बांध कर रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं जो कि कटाव व पहाड़ ढहने से रोकने का एकमात्र उपाय है। हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र में भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के साथ टकराव होता है और इसी से प्लेट बाउंड्री पर तनाव ऊर्जा संग्रहित हो जाती है जिससे क्रिस्टल छोटा हो जाता है और चट्टानों का विरूपण होता है। ये ऊर्जा भूकंपों के रूप में कमजोर जोनों एवं फाल्टों के जरिये सामने आती है।  जब पहाड़ पर तोड़फोड़ या धमाके होते हैं तो भूकंप के खतरे बढ़ते हैं।

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