ब्लॉग: चिकित्सा शिक्षा में हिंदी का बढ़ता इस्तेमाल

By प्रमोद भार्गव | Updated: July 8, 2024 10:30 IST2024-07-08T10:28:12+5:302024-07-08T10:30:36+5:30

हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने में ऐसे उपाय लाभदायी होंगे। ऐसा इसलिए भी किया गया है, जिससे बिहार में हिंदी माध्यम से पढ़ाई कराने वाले जो 85 हजार सरकारी विद्यालय हैं, उनसे पढ़कर आने वाले छात्रों को चिकित्सा शिक्षा हासिल करने का अवसर मिल जाए।

Use of Hindi increases day by day in Medica education | ब्लॉग: चिकित्सा शिक्षा में हिंदी का बढ़ता इस्तेमाल

फाइल फोटो

Highlightsहिंदी भाषा में पढ़ाई छात्रों में स्वत्व की भावना पैदा करेगीजिस तरह से दूसरे विकसित देशों में ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में शोध व आविष्कार अपनी भाषाओं के माध्यम से होते हैं, भारत में भी कालांतर में यह स्थिति बन जाएगी

बिहार सरकार हिंदी में चिकित्सा शिक्षा में स्नातक स्तर का पाठ्यक्रम अगले सत्र से शुरू करने जा रही है। मध्य प्रदेश के बाद इस तरह की पहल करने वाला बिहार दूसरा राज्य है। मध्यप्रदेश में तो एमबीबीएस का एक बैच पास करके निकल भी चुका है।अब बिहार में हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने का विकल्प छात्रों को मिलेगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जल्द पाठ्यपुस्तकें तैयार करने का भरोसा दिया है। हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने में ऐसे उपाय लाभदायी होंगे। ऐसा इसलिए भी किया गया है, जिससे बिहार में हिंदी माध्यम से पढ़ाई कराने वाले जो 85 हजार सरकारी विद्यालय हैं, उनसे पढ़कर आने वाले छात्रों को चिकित्सा शिक्षा हासिल करने का अवसर मिल जाए।

एमबीबीएस की हिंदी माध्यम से पढ़ाई सामाजिक न्याय के साथ समाज को भाषायी धरातल पर उन्नत व विकसित करने की बड़ी पहल है।विश्व के ज्यादातर देश अपनी मातृभाषाओं में चिकित्सा, अभियांत्रिकी एवं अन्य विज्ञान विषयों की पढ़ाई कराते हैं।रूस, चीन, यूक्रेन में जाकर जो बच्चे एमबीबीएस करके आते हैं, उन्हें पहले एक वर्ष इन देशों की मातृभाषा ही पढ़ाई जाती है।

हिंदी भाषा में पढ़ाई छात्रों में स्वत्व की भावना पैदा करेगी। जिस तरह से दूसरे विकसित देशों में ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में शोध व आविष्कार अपनी भाषाओं के माध्यम से होते हैं, भारत में भी कालांतर में यह स्थिति बन जाएगी।

अभी तो हालात ये हैं कि एमबीबीएस और इंजीनियरिंग में जो छात्र मातृभाषाओं में पढ़कर आते है, उन्हें अंग्रेजी नहीं आने के कारण मानसिक प्रताड़ना की ऐसी स्थिति से गुजरना होता है कि आत्महत्या तक को विवश हो जाते हैं।

दिल्ली एम्स में अनिल मीणा नाम के एक छात्र ने सुसाइइ नोट में यह लिखकर आत्महत्या की थी कि मेरी समझ में अंग्रेजी नहीं आती है और शिक्षक व मेरे सहपाठी मेरी मदद भी नहीं करते हैं। आईआईटी जैसे संस्थानों में भी कस्बाई इलाकों से आने वाले छात्रों को ऐसे ही हालात से दो-चार होना पड़ता है।अतएव देर आए, दुरुस्त आए कहावत चिकित्सा शिक्षा में लागू होती है।

Web Title: Use of Hindi increases day by day in Medica education

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