कपिल सिब्बल का ब्लॉग: उत्तर प्रदेश में असली माफिया और गुंडे कौन?

By कपील सिब्बल | Published: December 28, 2021 09:43 AM2021-12-28T09:43:15+5:302021-12-28T09:49:24+5:30

माफिया और गुंडों में कानून के लिए बहुत कम सम्मान होता है. हाल ही में हरिद्वार में एक सम्मेलन में, हमने उस तमाशे की झलक देखी जो आगे होने वाला है - भाषण में जहर उगला गया और खुले तौर पर नरसंहार का आह्वान किया गया.

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कपिल सिब्बल का ब्लॉग: उत्तर प्रदेश में असली माफिया और गुंडे कौन?

Highlightsअक्सर शासन की आलोचना के लिए ही यूपी में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है.उपमुख्यमंत्री ने कह दिया कि ‘भारत माता की जय’ से इनकार करने वालों को पाकिस्तानी कहा जाएगा.राज्य कानून को धर्मनिरपेक्ष मानता है, लेकिन तथ्य दूसरी तरफ इशारा करते हैं.

पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जिस तरह की चुनावी जुमलेबाजियां सामने आ रही हैं, उनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि इस बार भी परिदृश्य पहले के चुनावों की तरह ही रहेगा. 

पश्चिम बंगाल में यह क्रूर और असभ्य था. लेकिन जो दांव पर लगा है, उसे देखते हुए उस प्रवृत्ति के बदलने की संभावना नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण परिणाम जिस पर बहुत सारे लोगों की दिलचस्पी होगी, वह उत्तर प्रदेश का रहेगा, जो 2024 में लोकसभा के चुनावी नतीजों को भी प्रभावित कर सकता है.

अमित शाह ने 17 दिसंबर 2021 को, जैसा कि वे करने के लिए बाध्य थे, योगी आदित्यनाथ के गुणों की प्रशंसा की. एक गुण जो शाह ने बताया, वह था ‘माफिया और गुंडों’ के राज्य से सफाये में योगी की सफलता. 

उन्होंने आरोप लगाया कि बसपा और सपा दोनों ने उन्हें सुरक्षा दी, जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री के राज में ‘सारे माफिया राज्य से बाहर चले गए’. 

माफिया शब्द का क्या अर्थ है, यह समझे बिना यह एक बड़ा दावा किया गया था. माफिया शब्द का अर्थ है, ‘ऐसे करीबी लोगों का समूह है जो समान गतिविधियों में शामिल हैं और जो एक-दूसरे की मदद और रक्षा करते हैं, कभी-कभी दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए.’ 

यह परिभाषा विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में बिल्कुल फिट बैठती है, जहां निगरानी समूह और गुंडे अपने बाहुबल के साथ डर पैदा करते हैं और जिनको कानून व व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार लोगों में से कुछ का मौन समर्थन प्राप्त है.

माफिया और गुंडों में कानून के लिए बहुत कम सम्मान होता है. हाल ही में हरिद्वार में एक सम्मेलन में, हमने उस तमाशे की झलक देखी जो आगे होने वाला है - भाषण में जहर उगला गया और खुले तौर पर नरसंहार का आह्वान किया गया. 

विडंबना यह है कि कार्यों के बजाय अक्सर शासन की तीखी आलोचना के लिए ही यूपी में यूएपीए के तहत राजद्रोह और अपराध का मामला दर्ज किया गया है. हरिद्वार में जो हुआ, उसके लिए पुलिस की निगरानी में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की बात साफ तौर पर सामने आई है. फिर भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. जबकि पुलिस को खुद कम से कम एफआईआर तो दर्ज करनी चाहिए थी. ये अकेली घटना नहीं है. व्यापक प्रसार वाले संगठनों का एक नेटवर्क बार-बार बिना किसी दंड के भय के कानून का उल्लंघन करता है.

आरएसएस का हिंदू युवा वाहिनी, बजरंग दल जैसे संगठनों के व्यापक नेटवर्क के साथ लगभग हर जिले में प्रसार है. 'जय श्री राम' का नारा नहीं लगाने वाले एक विशेष समुदाय के सदस्य और यहां तक कि उनके बच्चे भी प्रताड़ित किए जाते हैं. 

9 नवंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ने यहां तक कह दिया कि जो लोग ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाने से इनकार करेंगे, उन्हें पाकिस्तानी करार दिया जाएगा. ‘औरंगजेब-शिवाजी की तुलना’ विधानसभा चुनावों से पहले विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ाने के लिए एक अच्छी तरह से गढ़ा गया मुहावरा है. 
सबसे परेशान करने वाला तथ्य यह है कि इन निगरानी समूहों को पुलिस के हाथों संरक्षण प्राप्त है. यह एक ऐसे शासन के तहत लोकतांत्रिक असहमति का अपराधीकरण करता है, जो समुदायों को निशाना बनाता है और चुनावी लाभ के लिए राजनीति का ध्रुवीकरण करता है. 

राज्य कानून को धर्मनिरपेक्ष मानता है, लेकिन तथ्य दूसरी तरफ इशारा करते हैं. कानूनों को अमल में लाने वाले अधिकारी, हिंदुत्व विचारधारा के साथ तालमेल बिठाते हुए, हर धर्म परिवर्तन को संदिग्ध नजर से देखते हैं. जनता की इस धारणा से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार में प्रभुत्व रखने वाली जाति अपनी ही जाति के सदस्यों की भर्ती करना चाहती है और उन्हें प्रमुख पदों पर रखना चाहती है, जो बदले में सत्ता में बैठे लोगों को चुनावी लाभ पहुंचाते हैं.
 
इसके साथ ही, निगरानी समूहों की कथित आपराधिक गतिविधियों को वैध माना जाता है. शासन का यह तरीका संविधान और कानून के शासन से बाहर है. नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करने वालों पर कड़ी कार्रवाई ने इस जोखिम को दिखाया कि योगी के उत्तर प्रदेश में उनको अपराधी माना जा सकता है. 

कार्रवाई क्रूर थी. प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों और वीडियो फुटेज में पुलिस को मुस्लिम इलाकों में घरों में घुसते और संपत्तियों को नष्ट करते हुए दिखाया गया है. मरने वालों की संख्या 22 थी. पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोली नहीं चलाई थी, फिर भी कई लोगों ने गोली लगने से दम तोड़ दिया.

कोविड-19 महामारी के दौरान असहमति के प्रति असहिष्णुता और भी तेज हो गई. उन पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए जिन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य विफलताओं को उजागर किया और ऑक्सीजन की आपूर्ति और जीवन रक्षक उपायों के अभाव के लिए सरकार की आलोचना की. वास्तव में, राज्य की खराब स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में शिकायत करने के लिए नागरिकों के खिलाफ कथित तौर पर मामले दर्ज किए गए थे.

जैसे-जैसे समय बीतेगा, आने वाले भाषण सांप्रदायिक रंग और कटुता से सराबोर होते जाएंगे. भाजपा शासित राज्यों में पुलिस मूकदर्शक बनी रहेगी और चुनाव आयोग चुनिंदा मुद्दों पर चुप रहेगा.

अब यह स्पष्ट हो गया है कि ये स्वयंभू निगरानी समूह ऐसे समूह हैं जो आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं, एक-दूसरे की मदद करते हैं और अपने लाभ के लिए कुछ समुदायों को निशाना बनाते हैं. मुझे आश्चर्य है कि असली ‘माफिया और गुंडे’ कौन हैं? हो सकता है कि अमित शाह इस पर विचार करें और इस सवाल का जवाब दें.

Web Title: up election 2022 goons hate speech bjp yogi adityanath amit shah

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