केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने उठाया यूपी के विभाजन का मुद्दा!, कहीं उल्टा न पड़ जाए चुनावी पैंतरा
By राजेंद्र कुमार | Published: October 3, 2023 01:12 PM2023-10-03T13:12:31+5:302023-10-03T13:17:22+5:30
संजीव बालियान ने अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद के आयोजन को संबोधित करते हुए यह बयान दिया। उनके इस बयान के बाद लोगों ने इस पर विरोध जताया है। वही दूसरी तरफ अपनी मांग को जायज बताते हुए संजीव बालियान ने कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की आबादी आठ करोड़ है और उच्च न्यायालय यहां से 750 किलोमीटर दूर है। ऐसे में अलग राज्य की मांग पूरी तरह से जायज है।
लखनऊ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों और जाट समुदाय की नाराजगी को देखते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के बंटवारे का नया सियासी पैंतरा चल दिया है। उन्होने पश्चिम उत्तर प्रदेश को अलग राज्य घोषित किए जाने की मांग का ना सिर्फ समर्थन किया है, बल्कि यह भी कहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाते हुए मेरठ को इसकी राजधानी घोषित करना चाहिए। संजीव बालियान ने अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद के आयोजन को संबोधित करते हुए यह बयान दिया। उनके इस बयान के बाद लोगों ने इस पर विरोध जताया है। वही दूसरी तरफ अपनी मांग को जायज बताते हुए संजीव बालियान ने कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की आबादी आठ करोड़ है और उच्च न्यायालय यहां से 750 किलोमीटर दूर है। ऐसे में अलग राज्य की मांग पूरी तरह से जायज है।
भाजपा को मंजूर नहीं यूपी का विभाजन :
देश की राजनीति में प्रमुख हिस्सेदार रखने वाला उत्तर प्रदेश के विभाजन की मांग पहले भी कई बार की गई। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने तो वर्ष 2011 में यूपी को चार हिस्सों पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में विभाजित करने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराकर उसे केंद्र सरकार को भेजा था। तब उनके इस प्रस्ताव को भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जनता को गुमराह करने वाला बताया था। इसके बाद जब -जब यूपी के विभाजन की मांग राजनीतिक स्तर पर किसी भी दल ने की तो भाजपा नेताओं ने कड़े शब्दों में उसका विरोध किया था। केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान भी भाजपा की इस रीति नीति से भली भांति अवगत हैं। उन्हे यह भी पता है कि कभी हरित प्रदेश का पश्चिम यूपी में आंदोलन चलाने वाले राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के संस्थापक अजित सिंह ने भी बाद में पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाने की मांग यहाँ के निवासियों की खुशहाली को लेकर छोड़ दी थी। अजित सिंह का कहना था कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ की मेरठ में स्थापना कराने के लिए पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाने की मांग उचित नहीं है। भाजपा के शीर्ष नेताओं और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी कुछ ऐसा ही मत है। फिर क्यों मोदी सरकार के राज्य मंत्री संजीव बालियान ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग की?
किसान और जाट समुदाय की नाराजगी दूर करने का दांव :
इस बारे में पश्चिम यूपी के सीनियर पत्रकार राजेंद्र सिंह कहते हैं कि किसान आंदोलन के बाद से समूचे पश्चिम यूपी में किसान और जाट समुदाय के लोग भाजपा से नाराज हैं। जाटों की नाराजगी को खत्म करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं ने बीते विधान सभा चुनावों के पहले रालोद के मुखिया जयंत चौधरी को अपने पाले में लाने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन वह कामयाब नहीं हुए। इस कारण के बीते विधानसभा चुनावों में योगी सरकार में गन्ना मंत्री सहित कई फायरब्रांड विधायक चुनाव हार गए। राजेंद्र सिंह कहते हैं कि भाजपा के कई प्रमुख नेताओं को चुनाव हराने के बाद भी पश्चिम यूपी में अभी लोगों का गुस्सा खत्म नहीं हुआ है। इसी गुस्से को डाइवर्ट करने के लिए ही संजीव बालियान ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने का दांव चला है, ताकि आगामी लोकसभा चुनावों में उनकी सीट खतरे में ना पड़े। संजीव बालियान मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में चुनाव जीते थे। बीते लोकसभा चुनावों में उन्होने रालोद के मुखिया रहे अजित सिंह को बहुत ही नजदीकी मुक़ाबले में हराया था। अजीत सिंह अब जीवित नहीं हैं और मुजफ्फरनगर के लोग संजीव बालियान से खुश नहीं हैं। यहीं वजह ही कि अब संजीव बालियान तरह तरह के हथकंडे अपनाते हुए पश्चिम यूपी में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के प्रयास कर रहे हैं।
उल्टा भी पड़ सकता है, बालियान का चुनावी पैंतरा :
राजेंद्र सिंह कहते हैं, इसी के चलते संजीव बालियान ने पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाने का मुद्दा उठाया है। उनका यह चुनावी पैंतरा उल्टा भी पड़ सकता है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के बंटवारे के लिए न तो किसी क्षेत्र में कोई संघर्ष चल रहा है और न ही भावनात्मक जनांदोलन। इस मामले में रालोद के राष्ट्रीय महासचिव अनिल दुबे कहते हैं कि अगर यूपी को पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, अवध और बुंदेलखंड में बांटने का प्रस्ताव जमीन पर उतरे तो 25 करोड़ की सबसे बड़ी आबादी वाला उत्तर प्रदेश भारत के नक्शे से ही गायब हो जाएगा। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल इसे एक भावनात्मक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। पिछड़ापन दूर करने और विकास के उद्देश्य से छोटे राज्यों के गठन पर कोई भी एतराज नहीं कर सकता, लेकिन हड़बड़ाहट में बिना आर्थिक और सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखे ऐन लोकसभा चुनाव के पहले केंद्रीय राज्यमंत्री का इस तरह से पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाने की मांग करना सवाल खड़े करता है। अनिल दुबे ने जाट संसद में आरक्षण देने संबंधी उठी मांग का समर्थन किया। जाट संसद में केंद्र में ओबीसी वर्ग में आरक्षण देने की मांग की साथ ही बेगम पुल रैपिड स्टेशन का नाम चौधरी चरण सिंह रखने की मांग की गई। इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, सर छोटू राम और राजा महेंद्र सिंह को भारत रत्न देने और देश की नई संसद भवन में महाराजा सूरजमल का स्मारक लगाने की मांग भी जाट संसद में की गई।