अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: हर घर तिरंगा और देशभक्ति की नई लहर

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 17, 2024 09:45 IST2024-08-17T09:44:59+5:302024-08-17T09:45:01+5:30

ऐसे जुलूसों और रैलियों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के वेश में कई छोटे-बड़े अपराधी और स्थानीय गुंडे शामिल होते हैं। क्या उन्हें देशभक्तों में शामिल करना चाहिए?

Tricolor in every house and new wave of patriotism | अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: हर घर तिरंगा और देशभक्ति की नई लहर

अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: हर घर तिरंगा और देशभक्ति की नई लहर

प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता की भावना का जश्न मनाने की अपील के बाद 9 से 15 अगस्त के बीच देश में ‘राष्ट्रवाद’ की एक नई लहर देखी गई। देश के अधिकांश हिस्सों में और मुख्यतः भाजपा शासित राज्यों में, तिरंगे के इर्द-गिर्द सरकार प्रायोजित भव्य रैलियां और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए गए। निस्संदेह, प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्र के प्रति बिना शर्त प्रेम और सम्मान होना चाहिए। इसलिए ‘हर घर तिरंगा’ अभियान एक मायने में सराहनीय है क्योंकि यह लोगों में देशभक्ति की सुप्त भावनाओं को जगाता है।

हालांकि, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों द्वारा शहर की व्यस्त सड़कों पर रैलियों का नेतृत्व करने के कारण ट्रैफिक जाम में फंसे कई नागरिक और अन्य लोग, जिन्होंने एक सप्ताह के दौरान आयोजित भव्य कार्यक्रमों को दूर से देखा, वे सोच रहे थे कि क्या राष्ट्र के प्रति प्रेम व्यक्त करने का यही एकमात्र तरीका बचा है। कई शहरों में भाजपा नेताओं की तस्वीरों वाले नए खर्चीले  होर्डिंग्स लगे थे। कुछ राज्यों में, सरकारी अधिकारियों को भी अनिवार्य रूप से तिरंगा खरीदने और 78 वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने घर और अपने

वाहनों पर लगाने के लिए कहा गया। छोटी रैलियों के लिए स्कूली बच्चों को ‘तिरंगा’ दिया गया। मानव श्रृंखला बनाने सहित लोक नृत्य, चित्रकला प्रतियोगिताएं व अन्य कई गतिविधियां आयोजित की गईं। नेताओं की रैलियों का स्वागत करने के लिए सैकड़ों मंच बनाए गए। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस कई दशकों से प्रत्येक सरकार द्वारा लोगों में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना पैदा करने के लिए पारंपरिक रूप से मनाए जाते रहे हैं। लेकिन इन रैलियों के दौरान नेताओं ने लोगों से अपील की कि ‘हमें लोगों को, देश को विकास के पथ पर ले जाना है और मोदीजी के नेतृत्व में भारत वास्तव में तेजी से प्रगति कर रहा है।’

लेकिन ऐसे अनुत्पादक आयोजनों से देश विकास के पथ पर कैसे अग्रसर होगा? कई साल पहले यानी जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, तब से लोगों में देशभक्ति की भावना भरने के उद्देश्य से इस तरह के खर्चीले आयोजनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। भाजपा के आलोचकों का आरोप है कि पार्टी लगातार सरकारों और पार्टी कार्यकर्ताओं को इवेंट मैनेजमेंट में उलझाए हुए है, जिसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता जिससे लोगों, खासकर युवाओं को कोई फायदा हो। तिरंगा यात्रा और हर घर तिरंगा अभियान को इसी संदर्भ में देखा गया।

सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने के नाते भाजपा के पास ऐसे कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है जो बड़ी संख्या में इस तरह की रैलियों और कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। हम सब जानते हैं कि ये राजनीतिक कार्यकर्ता कौन हैं। भीड़-भाड़ वाले कार्यक्रमों को देखकर लोगों को लगता होगा कि सरकारें उनके लिए कुछ करने में व्यस्त हैं।

इसके दूसरे पहलू को देखें: भारतीयों का एक बड़ा वर्ग इस बात पर हैरान था कि इस तरह के अनुत्पादक आयोजन वास्तव में कैसे लोगों की मदद करेंगे। देशभक्ति महत्वपूर्ण है लेकिन लोगों को अच्छा भोजन और पानी चाहिए; कानून का पालन करने वाला समाज और शिक्षा आदि चाहिए। मध्यम वर्ग के लोगों ने महंगे ईंधन की भारी बर्बादी, बढ़ते प्रदूषण की ओर इशारा किया जबकि गुटखा थूकने वाले, निरंकुश युवाओं को इसने झूठी उम्मीदें दीं।  रैलियों में कई असामाजिक तत्वों की हुल्लड़बाजी आम आदमी को सिरदर्द की तरह ही लगी।

तो असली देशभक्त कौन है? क्या भ्रष्टाचार करने वाला देशभक्त है? क्या कर चोरी करने वाले लोग देशभक्त कहला सकते हैं, भले ही वे तिरंगा लहरा रहे हों? क्या काम से जी चुराने वाले सरकारी कर्मचारी देशभक्त हैं? क्या पुल बनाने वाले वे देशभक्त हैं, जिनके पुल बनते ही ढह जाते हैं? ऐसे जुलूसों और रैलियों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के वेश में कई छोटे-बड़े अपराधी और स्थानीय गुंडे शामिल होते हैं। क्या उन्हें देशभक्तों में शामिल करना चाहिए?

एक समय था जब सिनेमा हॉल में फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद राष्ट्रगान बजाया जाता था, लेकिन कई लोग खड़े नहीं होते थे या हॉल से बाहर चले जाते थे। फिर ज्यादातर हॉल मालिकों ने राष्ट्रगान बजाना बंद कर दिया क्योंकि ऐसा करने से राष्ट्रगान का अपमान होता था। इस पर काफी बहस हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जिसने पहले तो इसे अनिवार्य बना दिया लेकिन फिर इसमें संशोधन कर इसे वैकल्पिक बना दिया।

मैं तिरंगे का सम्मान करने के बिलकुल खिलाफ नहीं हूं, लेकिन अनुत्पादक आयोजनों पर भारी मात्रा में सार्वजनिक धन क्यों खर्च किया जाए? उन परेशान लोगों में से कई की तरह, मुझे भी खुशी होती अगर राजनीतिक नेता और उनके अनुयायी ऐसी रैलियों के बजाय लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली अनगिनत गलत चीजों को सुधारने में मदद करते।

हमें अराजकता से आजादी चाहिए; बेरोजगारी से आजादी चाहिए। अगर पिछले दशक में शिक्षा के स्तर में वास्तव में सुधार हुआ होता, बेहतर स्कूली शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध होतीं और अच्छे संस्थान बने होते, साथ ही अगर भारत में सांप्रदायिक नफरत कम हुई होती और महिलाओं की सुरक्षा हुई होती तो 78 वें स्वतंत्रता दिवस को वाकई अच्छे से मनाया जा सकता था।

Web Title: Tricolor in every house and new wave of patriotism

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