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आईसीयू को लेकर नए दिशा-निर्देशों का प्रभावी क्रियान्वयन हो

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: January 4, 2024 14:47 IST

आईसीयू को लेकर नए सरकारी दिशानिर्देशों का निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन साथ ही एक ऐसी मशीनरी भी होनी चाहिए जो इन दिशा-निर्देशों का असरदार ढंग से क्रियान्वयन सुनिश्चित करवा सके।

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मरीजों को कुछ भ्रष्ट चिकित्सकों की अवांछित गतिविधियों से बचाने के लिए मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके तहत अब अस्पतालों में सघन चिकित्सा इकाई अर्थात आईसीयू में मरीज को भर्ती करने के लिए उसके परिजनों की सहमति जरूरी होगी। सरकार की मंशा है कि मरीजों को बेवजह आईसीयू में भर्ती कर उनके परिजनों से मनमानी रकम वसूल न की जाए।

इस दिशा-निर्देश को 24 विशेषज्ञों ने तैयार किया है। इसके तहत अगर गंभीर रूप से बीमार मरीज का मर्ज लाइलाज है, उसके स्वस्थ होने या बचने की कोई संभावना नहीं है तो उसे जबरन आईसीयू में भर्ती नहीं किया जा सकता। इस दिशा-निर्देश के बावजूद शायद ही गंभीर रूप से बीमार मरीजों को आईसीयू में भर्ती करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सके।

परिवार का कोई भी सदस्य जब बीमार पड़ जाता है तो परिजनों की पूरी कोशिश रहती है कि उसे स्वस्थ करने के तमाम प्रयास किए जाएं। इसके लिए वे अपनी आर्थिक क्षमता से बाहर जाकर भी कोशिश करते हैं। चिकित्सा पेशा बहुत पवित्र है और डॉक्टरों को भगवान की तरह देखा जाता है मगर इस व्यवसाय में कुछ लालची तत्वों ने इस कदर घुसपैठ कर ली है कि पूरी डॉक्टर कौम की विश्वसनीयता ही संदेह के घेरे में आ गई है।

ये भ्रष्ट चिकित्सक मरीजों तथा उनके परिजनों का भावनात्मक दोहन कर उनसे ज्यादा से ज्यादा धन ऐंठने में पीछे नहीं रहते। अगर मरीज के बचने की संभावना न भी रहे, तब भी झूठे आश्वासन देकर उसके परिजनों का भावनात्मक रूप से शोषण किया जाता है ताकि वे अपने मरीज को आईसीयू में भर्ती करवा दें। आईसीयू में इलाज का खर्च बहुत महंगा होता है. मरीज को बचाने के लिए कई बार उसके परिवार के सदस्य अपना घर, खेत, प्लॉट और जेवर तक बेच देते हैं या गिरवी रख देते हैं। 

अधिकांश चिकित्सक मरीज के इलाज में बेहद पारदर्शिता बरते हैं। वे मरीज के स्वास्थ्य की वास्तविक स्थिति उसके परिजनों को बताते हैं और बेहद जरूरी होने पर ही विभिन्न चिकित्सकीय परीक्षण करवाते हैं। अपने पेशे के प्रति समर्पित ये चिकित्सक इस बात का भी ख्याल रखते हैं कि मरीज को कम से कम दवाएं दें और कोई फायदा होने की संभावना रहने पर ही उसे आईसीयू में भर्ती करवाया जाए।

देश के प्राय: प्रत्येक राज्य में वहां की सरकारों ने अपने नागरिकों को सरकारी तथा निजी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए योजनाएं क्रियान्वित की हैं। केंद्र सरकार ने भी आयुष्मान योजना के तहत नागरिकों को पांच लाख रु. तक की नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाई है। इसके बावजूद इन योजनाओं का पूरा लाभ आम आदमी को नहीं मिल पा रहा है क्योंकि कुछ राज्यों में निजी अस्पताल सरकारी चिकित्सा योजनाओं की सुविधा देने से साफ इनकार कर देते हैं।

सरकारी अस्पतालों में तमाम प्रयासों के बावजूद चिकित्सा सुविधाओं का स्तर सुधरा नहीं है। सरकारी अस्पताल तेजी से अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं. सारे रास्ते बंद हो जाने या निजी अस्पतालों के हाथ खड़ा कर देने के बाद ही सामान्य व्यक्ति सरकारी अस्पताल की शरण लेता है. सरकारी अस्पतालों के प्रति मरीज तथा उसके परिजनों के अविश्वास का पूरा फायदा कुछ निजी अस्पताल उठाते हैं।

मरीज को अगर गंभीर बीमारी न हो, तब भी उसे आईसीयू में भर्ती करवा दिया जाता है और उसके बचने की आशा न हो, तब भी आईसीयू में मरीज को रखकर उसके परिजनों का आर्थिक शोषण किया जाता है। चिकित्सा जैसे नेक तथा पवित्र पेशे में अनैतिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बने हैं।

चिकित्सकों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी पेशे की पवित्रता को बनाए रखने के लिए अपनी ओर से भरसक प्रयास करती है लेकिन अनैतिक तथा गैरकानूनी गतिविधियों से जुड़े मामले में दोषियों के खिलाफ दोषसिद्धि या कठोर सजा सुनाने के मामले उंगलियों पर गिनने लायक ही हैं।

जब मरीज को उसके परिजन अस्पताल में लाते हैं तो उसे पूरे विश्वास के साथ डॉक्टरों के हवाले कर देते हैं. डॉक्टरों के हर सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, जरूरी-गैरजरूरी फैसलों को वह आंख मूंदकर स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि वह चाहते हैं कि मरीज हर हाल में स्वस्थ हो जाए. चिकित्सा से जुड़े नियमों-कानूनों तथा मरीजों के अधिकारों का ज्ञान किसी को नहीं रहता।

अगर होता भी है तो मरीज या परिजन आपत्ति उठाने या विरोध करने में हिचकिचाते हैं क्योंकि डर लगता है कि डॉक्टर इलाज करने से मना न कर दे। चिकित्सा क्षेत्र में अनैतिक गतिविधियों को रोकने के लिए जब कभी सख्त नियम या कानून बनाए गए तो उसका तीखा विरोध हुआ है. राजस्थान में गत वर्ष चिकित्सा का अधिकार कानून बनाया गया।

इसके खिलाफ चिकित्सकों ने हड़ताल कर दी थी। उनकी आशंकाओं का निराकरण करने के लिए राजस्थान की तत्कालीन गहलोत सरकार को दो कदम पीछे हटना पड़ा था। आईसीयू को लेकर नए सरकारी दिशानिर्देशों का निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन साथ ही एक ऐसी मशीनरी भी होनी चाहिए जो इन दिशा-निर्देशों का असरदार ढंग से क्रियान्वयन सुनिश्चित करवा सके।

टॅग्स :मेडिकल ट्रीटमेंटHealth DepartmentHealth and Education Department
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