वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः आयकर को लेकर अभी काफी काम बाकी है
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 17, 2020 09:58 AM2020-08-17T09:58:37+5:302020-08-17T09:58:37+5:30
आयकर विभाग में भुगतान संबंधी जितने विवाद हर साल आते हैं, शायद अन्य किसी विभाग में नहीं आते होंगे. 2013-14 में आयकर संबंधी 4 लाख विवाद थे और 2018-19 में उनकी संख्या 8 लाख हो गई. यह संख्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी, क्योंकि टैक्स के घेरे में लोगों की संख्या बढ़ रही है.
आयकर के मामले में सरकार की ताजा घोषणा देश के आयकर दाताओं को कुछ राहत जरूर पहुंचाएगी. अब आयकरदाताओं को अपना सारा हिसाब-किताब, शिकायत और कहा-सुनी सब कुछ इंटरनेट पर करना होगा. दूसरे शब्दों में किसी खास अफसर को पटाने-मनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जब अफसर का नाम ही पता नहीं होगा तो कोई करदाता किससे संपर्क करेगा? दूसरे शब्दों में देश के आयकर विभाग में कुछ लोगों की निरंकुशता पर रोक लगेगी लेकिन यहां एक आशंका है कि जो भी अफसर जिसका भी हिसाब देखेगा, उसे उसका नाम-पता तो मालूम होगा. वह उससे संपर्क क्यों नहीं करेगा?
आयकर विभाग में भुगतान संबंधी जितने विवाद हर साल आते हैं, शायद अन्य किसी विभाग में नहीं आते होंगे. 2013-14 में आयकर संबंधी 4 लाख विवाद थे और 2018-19 में उनकी संख्या 8 लाख हो गई. यह संख्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी, क्योंकि टैक्स के घेरे में लोगों की संख्या बढ़ रही है. संख्या के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि आजकल डिजिटल (यांत्रिक) लेन-देन बढ़ गया है. उसे छिपाना मुश्किल होता है लेकिन फिर भी भारत में आयकरदाताओं की संख्या मुश्किल से एक प्रतिशत है. देश के 140 करोड़ लोगों में मुश्किल से डेढ़ करोड़ लोग टैक्स भरते हैं.
फौजी और सरकारी कर्मचारियों को छूट मिल जाए तो यह संख्या एक करोड़ से भी नीचे चली जाएगी जबकि भारत में कम से कम 10 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी आमदनी टैक्स देने लायक है. लाखों ऐसे व्यापारिक संस्थान हैं, जो टैक्स नहीं देते. देश के करोड़ों लोगों को यही पता नहीं कि टैक्स के फार्म कैसे भरें. सरकार को चाहिए कि भारतीय भाषाओं में लोगों को टैक्स भरने के नियम और शैली समझाए. यदि उसकी प्रक्रि या संक्षिप्त और सरल होगी तो लोग खुद ही टैक्स भरेंगे.
यदि सरकार टैक्स थोड़ा घटा दे तो करदाताओं की संख्या बढ़ सकती है. उससे सरकार की आय भी बढ़ेगी. सरकार को यह भी विचार करना चाहिए कि वह क्या खर्च पर भी टैक्स लगा सकती है ताकि देश में फिजूलखर्ची खत्म हो और उपभोक्तावादी पश्चिमी प्रवृत्ति पर रोक लग सके. सरकार को खुद के खर्चो पर भी रोक लगाने के लिए कुछ साहसिक कदम उठाने होंगे. नेताओं और अफसरों पर रोजाना खर्च होने वाले करोड़ों रु. की बचत आसानी से हो सकती है. अरबों रु. की इस बचत के दो फायदे होंगे. एक तो लोगों पर टैक्स कम थोपने होंगे और दूसरा, लोक-कल्याण के काम बड़े पैमाने पर हो सकेंगे.