अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: उच्च शिक्षा का निरंतर गिरता स्तर चिंताजनक

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 22, 2023 10:20 AM2023-09-22T10:20:18+5:302023-09-22T10:21:08+5:30

सच कहूं तो मुझे (और आपको) ऐसा होना चाहिए था क्योंकि यह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पतन का एक और स्तर है. पश्चिम बंगाल के कुलाधिपति बोस ने उन्हें भ्रष्ट करार दिया था.

The continuously declining level of higher education is worrying | अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: उच्च शिक्षा का निरंतर गिरता स्तर चिंताजनक

प्रतीकात्मक तस्वीर

एक समय था जब भारतीय विश्वविद्यालयों के कुलपति समाज में प्राय: एक सम्मानित व्यक्ति होते थे. वे शीर्षस्थ विद्वान, उत्साही शिक्षाविद्, ईमानदार, योग्य प्रशासक और अराजनीतिक माने जाते थे. क्या आज भी उनका सम्मान वैसा ही है, यह बहस का विषय है. मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि एक कुलपति मेरी कॉलोनी में अपने घर तक पैदल चलकर आते थे और हम बच्चे, उनकी एक झलक पाने के लिए सड़क पर दौड़ पड़ते थे. 

वह एक कुलपति की आभा और सामाजिक प्रतिष्ठा थी. मैं 70 के दशक की बात कर रहा हूं. हाल ही में जब 12 पूर्व कुलपतियों ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल (विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति) आनंद बोस को उनकी ऐसी टिप्पणियों के लिए कानूनी नोटिस भेजा, जिससे उनकी ‘सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान’ हुआ, तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ. 

सच कहूं तो मुझे (और आपको) ऐसा होना चाहिए था क्योंकि यह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पतन का एक और स्तर है. पश्चिम बंगाल के कुलाधिपति बोस ने उन्हें भ्रष्ट करार दिया था. किंतु कोलकाता का यह प्रकरण सड़ती हुई हमारी प्रणाली का दिखने वाला एक छोटा सा हिस्सा मात्र है; स्थिति बहुत अधिक दयनीय है और मैं युवाओं के भविष्य के बारे में सोचकर कांप उठता हूं.

राजनेताओं द्वारा उम्मीदें जगाकर देश भर में नए-नए कॉलेज और विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं, लेकिन शिक्षकों और कुलपतियों वगैरह की योग्यता के बारे में किसी को कोई चिंता नहीं दिखती है. क्या यह हमारी शिक्षा प्रणाली में दशकों से चली आ रही गहरी सड़ांध का संकेत है? या बेरुखी के साथ यह कहने का एक और अवसर है: आपको वैसे ही शिक्षकगण मिलते हैं जिनके आप हकदार हैं?

उच्च शिक्षा की तेजी से गिरती गुणवत्ता से तो वाकई हमारे राजनेताओं, नौकरशाहों, समाज सुधारकों, उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों समेत सभी की रातों की नींद हराम हो जानी चाहिए. लेकिन अफसोस! कोई भी ज्यादा परेशान नहीं दिखता. आंकड़ों के अनुसार भारत उच्च शिक्षा पर जीडीपी का मात्र 1.4% खर्च करता है लेकिन फिर भी उच्च शिक्षा का घटता स्तर कोई चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है. 

निश्चित रूप से, चीजें रातोंरात बद से बदतर नहीं हुई हैं, लेकिन देश में उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए ईमानदार प्रयासों की कमी साफ दिखाई देती है. यहां एक स्तब्ध कर देने वाली घटना बताना चाहूंगा जो एक प्रिय मित्र ने हाल ही में सुनाई थी. 

उनके दोस्त, जो मध्य प्रदेश के एक शीर्ष विश्वविद्यालय में भौतिकी के व्याख्याता थे, ने उन्हें बताया कि चूंकि उन्हें कुछ जरूरी काम निपटाने थे, इसलिए उन्होंने ‘मदद’ के तौर पर उत्तरों के मॉडल सेट के साथ अपनी पत्नी को जांचने के लिए परीक्षार्थियों की 300 कापियां दे दीं. मेरे दोस्त ने उससे पूछा कि क्या वह भी भौतिक विषय पढ़ाती हैं तो उसने संकोचपूर्वक कहा कि नहीं. तो ऐसी स्थिति है आज की.

एनएएसी (राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद) के प्रमुख भूषण पटवर्धन ने इस साल की शुरुआत में पद छोड़ दिया. वे असहाय महसूस कर रहे थे क्योंकि वे ‘विश्वविद्यालयों की भ्रष्ट ग्रेडिंग प्रणाली’ में सुधार नहीं कर सके. उन्हें संस्थानों की रेटिंग प्रणाली में भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रहती थीं. बायोमेडिकल वैज्ञानिक और यूजीसी के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. पटवर्धन ने असफल होने के बाद ‘पद की पवित्रता की रक्षा के लिए’ पद छोड़ दिया. 
उन्होंने नैक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की बू आने पर राष्ट्रीय स्तर पर इसकी स्वतंत्र जांच की मांग की, लेकिन इसके बाद कुछ खास नहीं हुआ. यूजीसी के अनुसार भारत में लगभग 1200 विश्वविद्यालय और लगभग 44,000 महाविद्यालय हैं. इनमें से कई एनएएसी मान्यता के बिना चल रहे हैं, जिसका अर्थ है कि उनके शैक्षणिक मानक के बारे में कोई नहीं जानता. 

नैक ग्रेड (ए+, ए++, ए+++) देता है जो कॉलेज को स्वायत्तता हासिल करने, विदेशी छात्रों को प्रवेश देने या वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद करता है - यही कारण है कि वे प्रक्रिया में हेरफेर करते हैं और शिक्षा की गुणवत्ता का निरीक्षण और मूल्यांकन करने वाले विशेषज्ञों को रिश्वत की पेशकश करते हैं. क्या हमारा समाज इन सबके खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता? क्या ऐसी स्थिति में भारत में एक महान पीढ़ी तैयार हो पाएगी? 

क्या इससे भारत को विश्व स्तर पर चमकने में मदद मिलेगी? खैर, एनएएसी का ग्रेडिंग से समझौता इस क्षेत्र की एकमात्र समस्या नहीं है. शिक्षकों की दोषपूर्ण भर्ती प्रक्रिया, पेशे के प्रति उनकी संदिग्ध प्रतिबद्धता, निजी महाविद्यालय खोलने पर नियंत्रण की कमी, परीक्षा में गड़बड़ी, भाई-भतीजावाद और विश्वविद्यालयों का लचर प्रशासन अन्य जटिल मुद्दे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक आका केवल दिखावा करने में व्यस्त हैं. 

समस्या की जड़ तक कोई जाना नहीं चाहता. जैसा कि पहले कहा गया है, कुलपति की संस्था का अत्यधिक क्षरण हो चुका है. यहां तक पाया गया कि कुछ कुलपतियों ने पीएचडी थीसिस तक की चोरी की थी; कई अन्य ने सर्वोच्च शैक्षणिक पद हासिल करने के लिए रिश्वत दी और कुछ ने पढ़ाई-लिखाई की तुलना में निर्माण गतिविधियों में अधिक रुचि दिखाई. 

गुणवत्ता सलाहकार सुनील देशपांडे का कहना है कि पूरा सिस्टम अंदर से लगभग पूरी तरह से सड़ चुका है, कार्य संस्कृति में भारी गिरावट आई है और गुणवत्ता के बारे में बात ही नहीं की जाती है. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि बड़ी संख्या में भारतीय छात्र स्वच्छ अकादमिक परिसरों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तलाश में विदेश जाते रहते हैं.क्या नई शिक्षा नीति से इन मुद्दों का समाधान होगा? केवल आशा ही की जा सकती है.

Web Title: The continuously declining level of higher education is worrying

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